धूमप्रभा: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/3/1/203/8 </span><span class="PrakritText">धूमप्रभा सहचरिता भूमिर्धूमप्रभा। </span>=<span class="HindiText">जिस पृथिवी की प्रभा धुआँ के समान है वह भूमि धूमप्रभा है। (<span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/2/21 </span>), (<span class="GRef"> राजवार्तिक/3/1/3/159/19 </span>) <span class="GRef"> जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/121 </span>अवसेसा पुढवीओ बोद्धव्वा होंति पंकबहुलाओ।=रत्नप्रभा को छोड़कर (नरक की) शेष छ: पृथिवियों को पंक बहुल जानना चाहिए। </span> | |||
<ul> | <ul> | ||
<li class="HindiText"> इस पृथिवी का विस्तार‒देखें [[ लोक#5 | लोक - 5]]।</li> | <li class="HindiText"> इस पृथिवी का विस्तार‒देखें [[ लोक#5 | लोक - 5]]।</li> |
Revision as of 13:00, 14 October 2020
== सिद्धांतकोष से == सर्वार्थसिद्धि/3/1/203/8 धूमप्रभा सहचरिता भूमिर्धूमप्रभा। =जिस पृथिवी की प्रभा धुआँ के समान है वह भूमि धूमप्रभा है। ( तिलोयपण्णत्ति/2/21 ), ( राजवार्तिक/3/1/3/159/19 ) जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/121 अवसेसा पुढवीओ बोद्धव्वा होंति पंकबहुलाओ।=रत्नप्रभा को छोड़कर (नरक की) शेष छ: पृथिवियों को पंक बहुल जानना चाहिए।
पुराणकोष से
नरक की पाँचवी पृथिवी । इसका रूढ़ नाम अरिष्टा है । इसकी मोटाई बीस हजार योजन है । इसमें तीन लाख बिल तथा नगरों के आकार में तम, भ्रम, इष, अर्त और तामिस्र नाम के पाँच इंद्रक बिल है । महापुराण 10.31, हरिवंशपुराण 4.44-46, 83 इन इंद्रक बिलों की चारों महादिशाओं और विदिशाओं से श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या इस प्रकार है―
क्र0 नाम इंद्रक महादिशाओं के विदिशाओं के बिलों की स0 विदिशाओं के बिलों की सं0
1. तम 36 32
2. भ्रम 32 28
3. झष 28 24
4. अर्त/अंध्र 24 20
5. तमिस्र 20 16
इस पृथिवी में 2. 99,735 प्रकीर्णक बिल होते हैं । सारे बिलों की संख्या तीन लाख है । हरिवंशपुराण 4.138-144 तम इंद्रक बिल के पूर्व में निरुद्ध, पश्चिम में अतिनिरुद्ध, दक्षिण में विमर्दन और उत्तर में महाविमर्दन महानरक है । इंद्रक बिलों की मुटाई तीन कोस श्रेणिबद्ध बिलों की चार कोस और प्रकीर्णकों की सात कोस होती है । हरिवंशपुराण 4.156, 222 इंद्रक बिलों की स्थिति इस प्रकार है―
नाम इंद्रक उत्कृष्ट स्थिति जघन्य स्थिति ऊँचाई
तम 11 5/2 सागर 10 सागर, 75 धनुष
भ्रम 12 5/4 सागर 11 5/2 सागर, 87 धनुष
झष 14 5/1 सागर 12 5/4 सागर, 100 धनुष
अंध्र 15 5/3 सागर 14 5/1 सागर, 111 धनुष 2 हाथ
तमिस्र 17 सागर 15 5/3 सागर, 125 धनुष
हरिवंशपुराण 4. 286-290, 333-335 इंद्रक बिल तिकोने और तीन द्वार वाले तथा श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिल दो से सात द्वार वाले होते हैं । इसके साठ हजार बिल संख्यात योजन विस्तार वाले तथा दो लाख चालीस हजार बिल असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं । इस पृथिवी के ऊपरी भाग में नील और अधोभाग में कृष्ण लेश्या होती है । यहाँ नारकी उष्ण और शीत दोनों प्रकार के कष्ट सहते हैं । इस पृथ्वी के निगोदों में नारकी अत्यंत दु:खी होकर एक सौ पच्चीस योजन आकाश में उछल कर नीचे गिरते हैं । सिंह इस पृथिवी के आगे नहीं जन्मता । यहाँ से निकले जीव पुन: यहाँ तीन बार तक आ जाते हैं । यहाँ से निकलकर जीव संयम तो धारण कर लेते हैं किंतु वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाते । मोक्ष पाने के लिए उन्हें आगे जन्म ग्रहण करने पड़ते हैं । महापुराण 10.97, हरिवंशपुराण 4.165, 344, 346, 352, 359, 374-379