निष्क्रांति: Difference between revisions
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<p> गर्भान्वय की तिरेपन क्रियाओं में अड़तालीसवीं क्रिया । इसमें तीर्थंकर संसार से विरक्त होने पर गृहस्थ का दायित्व अपने पुत्र को सौंपते हैं । इस समय लौकांतिक देव आते हैं । इन्हें पालकी में बैठाकर पहले कुछ देर तो मनुष्य फिर देव वन में ले जाते हैं । दीक्षित होने पर देव उनकी पूजा करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 38.62, 266-294 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> गर्भान्वय की तिरेपन क्रियाओं में अड़तालीसवीं क्रिया । इसमें तीर्थंकर संसार से विरक्त होने पर गृहस्थ का दायित्व अपने पुत्र को सौंपते हैं । इस समय लौकांतिक देव आते हैं । इन्हें पालकी में बैठाकर पहले कुछ देर तो मनुष्य फिर देव वन में ले जाते हैं । दीक्षित होने पर देव उनकी पूजा करते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 38.62, 266-294 </span></p> | ||
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Revision as of 16:54, 14 November 2020
गर्भान्वय की तिरेपन क्रियाओं में अड़तालीसवीं क्रिया । इसमें तीर्थंकर संसार से विरक्त होने पर गृहस्थ का दायित्व अपने पुत्र को सौंपते हैं । इस समय लौकांतिक देव आते हैं । इन्हें पालकी में बैठाकर पहले कुछ देर तो मनुष्य फिर देव वन में ले जाते हैं । दीक्षित होने पर देव उनकी पूजा करते हैं । महापुराण 38.62, 266-294