नंदयशा: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) जंबूद्वीप में मंगला देश के सद्भद्रिलपुर नगर के सेठ धनदत्त की स्त्री । इसकी प्रियदर्शना (अपरनाम सुदर्शना) और ज्येष्ठा ये दो पुत्रियाँ तथा धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अर्हद्दत्त, अर्हद्दास, जिनदत्त, प्रियमित्र और धर्मरुचि ये नौ पुत्र थे । इसके पति और सभी पुत्र दीक्षित हो गये थे । गर्भवती होने से यह दीक्षा नहीं ले सकी थी किंतु धनमित्र नामक पुत्र के जन्म लेते ही इसने भी अपनी दोनों पुत्रियों के साथ सुदर्शना आर्यिका से दीक्षा ले ली थी । अपने पुत्रों को मुनि अवस्था मे देखकर इसने अग्रिम भव में भी इन्हीं पुत्रों की जननी होने का निदान किया था । अंत में समाधिपूर्वक मरण कर यह तथा इसके पुत्र और पुत्रियाँ अच्युत स्वर्ग में देव हुए । निदान के फलस्वरूप स्वर्ग से चयकर यह अंधकवृष्टि को सुभद्रा रानी हुई । पूर्वभव के सभी पुत्र समुद्रविजय आदि हुए । पूर्वभव की दोनों पुत्रियां कुंती और माद्री हुई । <span class="GRef"> महापुराण 70.182-198, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18. 113-124 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) जंबूद्वीप में मंगला देश के सद्भद्रिलपुर नगर के सेठ धनदत्त की स्त्री । इसकी प्रियदर्शना (अपरनाम सुदर्शना) और ज्येष्ठा ये दो पुत्रियाँ तथा धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अर्हद्दत्त, अर्हद्दास, जिनदत्त, प्रियमित्र और धर्मरुचि ये नौ पुत्र थे । इसके पति और सभी पुत्र दीक्षित हो गये थे । गर्भवती होने से यह दीक्षा नहीं ले सकी थी किंतु धनमित्र नामक पुत्र के जन्म लेते ही इसने भी अपनी दोनों पुत्रियों के साथ सुदर्शना आर्यिका से दीक्षा ले ली थी । अपने पुत्रों को मुनि अवस्था मे देखकर इसने अग्रिम भव में भी इन्हीं पुत्रों की जननी होने का निदान किया था । अंत में समाधिपूर्वक मरण कर यह तथा इसके पुत्र और पुत्रियाँ अच्युत स्वर्ग में देव हुए । निदान के फलस्वरूप स्वर्ग से चयकर यह अंधकवृष्टि को सुभद्रा रानी हुई । पूर्वभव के सभी पुत्र समुद्रविजय आदि हुए । पूर्वभव की दोनों पुत्रियां कुंती और माद्री हुई । <span class="GRef"> महापुराण 70.182-198, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18. 113-124 </span></p> | ||
<p id="2">(2) श्वेतिका नगर के राजा वासव और उसकी रानी वसुंधरा की पुत्री । इसका विवाह हस्तिनापुर के राजा गंगदेव के साथ हुआ था । यह युगल रूप में उत्पन्न गंग और गंगदत्त, गंगरक्षित और नंद तथा सुनंद और नंदिषेण की जननी थी । इसके सातवें पुत्र निर्नामक का रेवती धाय ने पालन किया था । इसने अंत में रेवती घाय और बंधुमती सेठानी के साथ सुव्रता आर्यिका के पास दीक्षा ले ली थी । यह इस पर्याय के पुत्र भावी पर्याय में भी प्राप्त हों इस निदान के साथ मरणकर तप के प्रभाव से महाशुक्र स्वर्ग में देव हुई तथा वहाँ से चयकर मृगावती देश के दशार्णनगर के राजा देवसेन की रानी धनदेवी की देव की पुत्री हुई । पूर्वभव में यह एक अंधी सर्पिणी थी । अकामनिर्जरा सं मरण कर इसने मनुष्यगति का बंध किया था । <span class="GRef"> महापुराण 71.260-266, 283-292, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.142-145, 159-165 </span></p> | <p id="2">(2) श्वेतिका नगर के राजा वासव और उसकी रानी वसुंधरा की पुत्री । इसका विवाह हस्तिनापुर के राजा गंगदेव के साथ हुआ था । यह युगल रूप में उत्पन्न गंग और गंगदत्त, गंगरक्षित और नंद तथा सुनंद और नंदिषेण की जननी थी । इसके सातवें पुत्र निर्नामक का रेवती धाय ने पालन किया था । इसने अंत में रेवती घाय और बंधुमती सेठानी के साथ सुव्रता आर्यिका के पास दीक्षा ले ली थी । यह इस पर्याय के पुत्र भावी पर्याय में भी प्राप्त हों इस निदान के साथ मरणकर तप के प्रभाव से महाशुक्र स्वर्ग में देव हुई तथा वहाँ से चयकर मृगावती देश के दशार्णनगर के राजा देवसेन की रानी धनदेवी की देव की पुत्री हुई । पूर्वभव में यह एक अंधी सर्पिणी थी । अकामनिर्जरा सं मरण कर इसने मनुष्यगति का बंध किया था । <span class="GRef"> महापुराण 71.260-266, 283-292, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.142-145, 159-165 </span></p> | ||
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Revision as of 16:55, 14 November 2020
(1) जंबूद्वीप में मंगला देश के सद्भद्रिलपुर नगर के सेठ धनदत्त की स्त्री । इसकी प्रियदर्शना (अपरनाम सुदर्शना) और ज्येष्ठा ये दो पुत्रियाँ तथा धनपाल, देवपाल, जिनदेव, जिनपाल, अर्हद्दत्त, अर्हद्दास, जिनदत्त, प्रियमित्र और धर्मरुचि ये नौ पुत्र थे । इसके पति और सभी पुत्र दीक्षित हो गये थे । गर्भवती होने से यह दीक्षा नहीं ले सकी थी किंतु धनमित्र नामक पुत्र के जन्म लेते ही इसने भी अपनी दोनों पुत्रियों के साथ सुदर्शना आर्यिका से दीक्षा ले ली थी । अपने पुत्रों को मुनि अवस्था मे देखकर इसने अग्रिम भव में भी इन्हीं पुत्रों की जननी होने का निदान किया था । अंत में समाधिपूर्वक मरण कर यह तथा इसके पुत्र और पुत्रियाँ अच्युत स्वर्ग में देव हुए । निदान के फलस्वरूप स्वर्ग से चयकर यह अंधकवृष्टि को सुभद्रा रानी हुई । पूर्वभव के सभी पुत्र समुद्रविजय आदि हुए । पूर्वभव की दोनों पुत्रियां कुंती और माद्री हुई । महापुराण 70.182-198, हरिवंशपुराण 18. 113-124
(2) श्वेतिका नगर के राजा वासव और उसकी रानी वसुंधरा की पुत्री । इसका विवाह हस्तिनापुर के राजा गंगदेव के साथ हुआ था । यह युगल रूप में उत्पन्न गंग और गंगदत्त, गंगरक्षित और नंद तथा सुनंद और नंदिषेण की जननी थी । इसके सातवें पुत्र निर्नामक का रेवती धाय ने पालन किया था । इसने अंत में रेवती घाय और बंधुमती सेठानी के साथ सुव्रता आर्यिका के पास दीक्षा ले ली थी । यह इस पर्याय के पुत्र भावी पर्याय में भी प्राप्त हों इस निदान के साथ मरणकर तप के प्रभाव से महाशुक्र स्वर्ग में देव हुई तथा वहाँ से चयकर मृगावती देश के दशार्णनगर के राजा देवसेन की रानी धनदेवी की देव की पुत्री हुई । पूर्वभव में यह एक अंधी सर्पिणी थी । अकामनिर्जरा सं मरण कर इसने मनुष्यगति का बंध किया था । महापुराण 71.260-266, 283-292, हरिवंशपुराण 33.142-145, 159-165