पुष्पनंदि: Difference between revisions
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<li>आप तोरणाचार्य के शिष्य और प्रभाचंद्र के गुरु थे। समय - वि. 760 (ई. 703)। (जैन सिद्धांत प्रकाशिनी संस्था द्वारा प्रकाशित समयसार की प्रस्तावना में K.B. Pathak)। </li> | <li>आप तोरणाचार्य के शिष्य और प्रभाचंद्र के गुरु थे। समय - वि. 760 (ई. 703)। (जैन सिद्धांत प्रकाशिनी संस्था द्वारा प्रकाशित समयसार की प्रस्तावना में K.B. Pathak)। </li> | ||
<li> राष्टकूट वंशी राजा गोविंद तृतीय के समय के अर्थात् श. सं.724 और 719 के दो ताम्र पत्रों के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और प्रभाचंद्र नं.2 के गुरु थे। तथा कुंदकुंदांवय में थे। तदनुसार आपका समय शक सं. 650 (ई. 728) होना चाहिए। (ष.प्रा./प्र. 4-5/प्रेमी जी), ( समयसार/ प्र./K.B. Pathak)। </li> | <li> राष्टकूट वंशी राजा गोविंद तृतीय के समय के अर्थात् श. सं.724 और 719 के दो ताम्र पत्रों के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और प्रभाचंद्र नं.2 के गुरु थे। तथा कुंदकुंदांवय में थे। तदनुसार आपका समय शक सं. 650 (ई. 728) होना चाहिए। (ष.प्रा./प्र. 4-5/प्रेमी जी), (<span class="GRef"> समयसार/ </span>प्र./K.B. Pathak)। </li> | ||
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Revision as of 13:01, 14 October 2020
- आप तोरणाचार्य के शिष्य और प्रभाचंद्र के गुरु थे। समय - वि. 760 (ई. 703)। (जैन सिद्धांत प्रकाशिनी संस्था द्वारा प्रकाशित समयसार की प्रस्तावना में K.B. Pathak)।
- राष्टकूट वंशी राजा गोविंद तृतीय के समय के अर्थात् श. सं.724 और 719 के दो ताम्र पत्रों के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और प्रभाचंद्र नं.2 के गुरु थे। तथा कुंदकुंदांवय में थे। तदनुसार आपका समय शक सं. 650 (ई. 728) होना चाहिए। (ष.प्रा./प्र. 4-5/प्रेमी जी), ( समयसार/ प्र./K.B. Pathak)।