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<p> हरिवंशी राजा अंधकवृष्टि और उसकी रानी सुभद्रा की पूरी । इसके वसुदेव आदि दस भाई तथा कुंती बहिन थी । इसका राजा पांडु के साथ पाणिग्रहण पूर्वक प्राजापात्य विवाह हुआ था । नकुल और सहदेव इसी के पुत्र थे । दूसरे पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के सेठ धनदत्त और सेठानी नंदयशा की ज्येष्ठा नाम की पुत्री थी । प्रियदर्शना इसकी एक बड़ी बहिन तथा धनपाल आदि नौ भाई थे । यह और इसके सभी भाई-बहिन तथा माता-पिता दीक्षित हुए । इसकी माँ ने परजन्म में भी इस जन्म की भाँति पुत्र-पुत्रियों से संबंध बना रहने का निदान किया था । अंत में यह और इसके भाई-बहिन और मां सभी आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुए । वे सब यहाँ से चयकर इस पर्याय में आये । इनमें ज्येष्ठा का जीव इस नाम से उत्पन्न हुआ । इसका दूसरा नाम मद्री था । <span class="GRef"> महापुराण 70.94-97, 114-116, 182-198, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.12-15, 123-124, 45.38 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> हरिवंशी राजा अंधकवृष्टि और उसकी रानी सुभद्रा की पूरी । इसके वसुदेव आदि दस भाई तथा कुंती बहिन थी । इसका राजा पांडु के साथ पाणिग्रहण पूर्वक प्राजापात्य विवाह हुआ था । नकुल और सहदेव इसी के पुत्र थे । दूसरे पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के सेठ धनदत्त और सेठानी नंदयशा की ज्येष्ठा नाम की पुत्री थी । प्रियदर्शना इसकी एक बड़ी बहिन तथा धनपाल आदि नौ भाई थे । यह और इसके सभी भाई-बहिन तथा माता-पिता दीक्षित हुए । इसकी माँ ने परजन्म में भी इस जन्म की भाँति पुत्र-पुत्रियों से संबंध बना रहने का निदान किया था । अंत में यह और इसके भाई-बहिन और मां सभी आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुए । वे सब यहाँ से चयकर इस पर्याय में आये । इनमें ज्येष्ठा का जीव इस नाम से उत्पन्न हुआ । इसका दूसरा नाम मद्री था । <span class="GRef"> महापुराण 70.94-97, 114-116, 182-198, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.12-15, 123-124, 45.38 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
हरिवंशी राजा अंधकवृष्टि और उसकी रानी सुभद्रा की पूरी । इसके वसुदेव आदि दस भाई तथा कुंती बहिन थी । इसका राजा पांडु के साथ पाणिग्रहण पूर्वक प्राजापात्य विवाह हुआ था । नकुल और सहदेव इसी के पुत्र थे । दूसरे पूर्वभव में यह भद्रिलपुर नगर के सेठ धनदत्त और सेठानी नंदयशा की ज्येष्ठा नाम की पुत्री थी । प्रियदर्शना इसकी एक बड़ी बहिन तथा धनपाल आदि नौ भाई थे । यह और इसके सभी भाई-बहिन तथा माता-पिता दीक्षित हुए । इसकी माँ ने परजन्म में भी इस जन्म की भाँति पुत्र-पुत्रियों से संबंध बना रहने का निदान किया था । अंत में यह और इसके भाई-बहिन और मां सभी आनत स्वर्ग में उत्पन्न हुए । वे सब यहाँ से चयकर इस पर्याय में आये । इनमें ज्येष्ठा का जीव इस नाम से उत्पन्न हुआ । इसका दूसरा नाम मद्री था । महापुराण 70.94-97, 114-116, 182-198, हरिवंशपुराण 18.12-15, 123-124, 45.38