मृदंगमध्य व्रत: Difference between revisions
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<li class="HindiText"><strong> बृहत् विधि</strong>-यंत्र में दिखाये अनुसार एक वृद्धि क्रम से 1 से 9 पर्यंत और तत्पश्चात् एक हानि क्रम से 9 से 1 पर्यंत, इस प्रकार कुल 81 उपवास करे । मध्य के स्थानों में एक-एक पारणा करे । नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे । (व्रतविधान संग्रह/पृ. 80) । </li> | <li class="HindiText"><strong> बृहत् विधि</strong>-यंत्र में दिखाये अनुसार एक वृद्धि क्रम से 1 से 9 पर्यंत और तत्पश्चात् एक हानि क्रम से 9 से 1 पर्यंत, इस प्रकार कुल 81 उपवास करे । मध्य के स्थानों में एक-एक पारणा करे । नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे । (व्रतविधान संग्रह/पृ. 80) । </li> | ||
<li class="HindiText"><strong>लघु विधि−</strong>यंत्र में दिखाये अनुसार एक वृद्धि क्रम से 2 से 5 पर्यंत और तत्पश्चात् एक हानि क्रम से 5 से 2 पर्यंत, इस प्रकार कुल 23 उपवास करे । मध्य के स्थानों में एक-एक पारणा करे । ( हरिवंशपुराण /34/64-65 ) । </li> | <li class="HindiText"><strong>लघु विधि−</strong>यंत्र में दिखाये अनुसार एक वृद्धि क्रम से 2 से 5 पर्यंत और तत्पश्चात् एक हानि क्रम से 5 से 2 पर्यंत, इस प्रकार कुल 23 उपवास करे । मध्य के स्थानों में एक-एक पारणा करे । (<span class="GRef"> हरिवंशपुराण /34/64-65 </span>) । </li> | ||
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Revision as of 13:01, 14 October 2020
इस व्रत की विधि दो प्रकार है−बृहत् व लघु ।
- बृहत् विधि-यंत्र में दिखाये अनुसार एक वृद्धि क्रम से 1 से 9 पर्यंत और तत्पश्चात् एक हानि क्रम से 9 से 1 पर्यंत, इस प्रकार कुल 81 उपवास करे । मध्य के स्थानों में एक-एक पारणा करे । नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे । (व्रतविधान संग्रह/पृ. 80) ।
- लघु विधि−यंत्र में दिखाये अनुसार एक वृद्धि क्रम से 2 से 5 पर्यंत और तत्पश्चात् एक हानि क्रम से 5 से 2 पर्यंत, इस प्रकार कुल 23 उपवास करे । मध्य के स्थानों में एक-एक पारणा करे । ( हरिवंशपुराण /34/64-65 ) ।