यतिवृषभ: Difference between revisions
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दिगंबर आचार्यों में इनका स्थान ऊँचा है क्योंकि इनके ज्ञान व रचनाओं का संबंध भगवान् वीर की मूल परंपरा से आगत सूत्रों के साथ माना जाता है। आर्य मंक्षु व नागहस्ति के शिष्य थे। कृति - कषाय प्राभृत के चूर्णसूत्र, तिल्लोयपण्णत्ति । समय−वी. नि.670-700, वि. 200-230, ई. 143-173 (विशेष देखें [[ कोश भाग#1. | कोश भाग - 1.]]परिशिष्ट/3/5)। | दिगंबर आचार्यों में इनका स्थान ऊँचा है क्योंकि इनके ज्ञान व रचनाओं का संबंध भगवान् वीर की मूल परंपरा से आगत सूत्रों के साथ माना जाता है। आर्य मंक्षु व नागहस्ति के शिष्य थे। कृति - कषाय प्राभृत के चूर्णसूत्र, तिल्लोयपण्णत्ति । समय−वी. नि.670-700, वि. 200-230, ई. 143-173 (विशेष देखें [[ कोश भाग#1. | कोश भाग - 1.]]परिशिष्ट/3/5)। | ||
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<p> विदेहक्षेत्र के एक ऋषि । सुसीमा नगरी का राजा सिंहरथ उल्कापात देखने से विरक्त होकर इन्हीं से संयमी हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 64.2-9 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> विदेहक्षेत्र के एक ऋषि । सुसीमा नगरी का राजा सिंहरथ उल्कापात देखने से विरक्त होकर इन्हीं से संयमी हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 64.2-9 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
दिगंबर आचार्यों में इनका स्थान ऊँचा है क्योंकि इनके ज्ञान व रचनाओं का संबंध भगवान् वीर की मूल परंपरा से आगत सूत्रों के साथ माना जाता है। आर्य मंक्षु व नागहस्ति के शिष्य थे। कृति - कषाय प्राभृत के चूर्णसूत्र, तिल्लोयपण्णत्ति । समय−वी. नि.670-700, वि. 200-230, ई. 143-173 (विशेष देखें कोश भाग - 1.परिशिष्ट/3/5)।
पुराणकोष से
विदेहक्षेत्र के एक ऋषि । सुसीमा नगरी का राजा सिंहरथ उल्कापात देखने से विरक्त होकर इन्हीं से संयमी हुआ था । महापुराण 64.2-9