लोकानुप्रेक्षा: Difference between revisions
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<p> बारह भावनाओं में दसवीं भावना । इसमें लोक की स्थिति, विस्तार, वहाँ के निवासियों के सुख-दुःख, तथा इसके अनादि अनिधन अकृत्रिम आदि स्वरूप का बार-बार चिंतन किया जाता है । <span class="GRef"> पांडवपुराण 25. 108-110 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11.88-112 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> बारह भावनाओं में दसवीं भावना । इसमें लोक की स्थिति, विस्तार, वहाँ के निवासियों के सुख-दुःख, तथा इसके अनादि अनिधन अकृत्रिम आदि स्वरूप का बार-बार चिंतन किया जाता है । <span class="GRef"> पांडवपुराण 25. 108-110 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11.88-112 </span></p> | ||
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Revision as of 16:57, 14 November 2020
बारह भावनाओं में दसवीं भावना । इसमें लोक की स्थिति, विस्तार, वहाँ के निवासियों के सुख-दुःख, तथा इसके अनादि अनिधन अकृत्रिम आदि स्वरूप का बार-बार चिंतन किया जाता है । पांडवपुराण 25. 108-110 वीरवर्द्धमान चरित्र 11.88-112