विग्रह: Difference between revisions
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<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/2/5/182/7 </span><span class="SanskritText">विरुद्धो ग्रहो विग्रहो ब्याघातः। कर्मादानेऽति नोकर्म पुद्गलादाननिरोधः इत्यर्थः। </span><br /> | |||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/2/27/184/7 </span><span class="SanskritText">विग्रहो व्याघातः कौटिल्यमित्यर्थः। </span>= </p> | |||
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<li class="HindiText"> विग्रह का अर्थ देह है। ( राजवार्तिक/2/25/1/ | <li class="HindiText"> विग्रह का अर्थ देह है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/2/25/1/ </span><span class="GRef"> तत्त्वसार/2/96 </span>); (136/29; <span class="GRef"> धवला 1/1, 1, 60/299/1 </span>)। </li> | ||
<li class="HindiText"> अथवा विरुद्ध ग्रह का विग्रह कहते हैं, जिसका अर्थ व्याघात है। तात्पर्य यह है कि जिस अवस्था में कर्म के ग्रहण होने पर भी नोकर्मरूप पुद्गलों का ग्रहण नहीं होता वह विग्रह है। ( राजवार्तिक/2/25/2/137/4 ); ( धवला 1/1, 1, 60/299/3 )। </li> | <li class="HindiText"> अथवा विरुद्ध ग्रह का विग्रह कहते हैं, जिसका अर्थ व्याघात है। तात्पर्य यह है कि जिस अवस्था में कर्म के ग्रहण होने पर भी नोकर्मरूप पुद्गलों का ग्रहण नहीं होता वह विग्रह है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/2/25/2/137/4 </span>); (<span class="GRef"> धवला 1/1, 1, 60/299/3 </span>)। </li> | ||
<li><span class="HindiText"> अथवा विग्रह का अर्थ व्याघात या कुटिलता है। ( राजवार्तिक/2/27/ ...../138/8); ( धवला 1/1, 1, 60/299/4 )। </span><br /> | <li><span class="HindiText"> अथवा विग्रह का अर्थ व्याघात या कुटिलता है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/2/27/ </span>...../138/8); (<span class="GRef"> धवला 1/1, 1, 60/299/4 </span>)। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/2/25/1/136/29 </span><span class="SanskritText">औदारिकादिशरीरनामोदयात् तन्निवृत्तिसमर्थान् विविधान् पुद्गलान् गृह्वाति, विगृह्यते वासौ ससारिणेति विग्रहो देहः।</span> = <span class="HindiText">औदारिकादि नामकर्म के उदय से उन शरीरों के योग्य पुद्गलों का ग्रहण विग्रह कहलाता है। अतएव संसारी जीव के द्वारा शरीर का ग्रहण किया जाता है। इसलिए देह को विग्रह कहते हैं। (<span class="GRef"> धवला 1/1, 1, 60/299/4 </span>) । </span><br /> | |||
<span class="GRef"> धवला 4/1, 3, 2/29/8 </span><span class="PrakritText"> विग्गहो वक्को कुटिलोत्ति एगट्ठो। </span>=<span class="HindiText"> विग्रह, वक्र और कुटिल ये सब एकार्थवाची नाम हैं। </span></li> | |||
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Revision as of 13:02, 14 October 2020
== सिद्धांतकोष से ==
विग्रहो देहः।.....अथवा।
सर्वार्थसिद्धि/2/5/182/7 विरुद्धो ग्रहो विग्रहो ब्याघातः। कर्मादानेऽति नोकर्म पुद्गलादाननिरोधः इत्यर्थः।
सर्वार्थसिद्धि/2/27/184/7 विग्रहो व्याघातः कौटिल्यमित्यर्थः। =
- विग्रह का अर्थ देह है। ( राजवार्तिक/2/25/1/ तत्त्वसार/2/96 ); (136/29; धवला 1/1, 1, 60/299/1 )।
- अथवा विरुद्ध ग्रह का विग्रह कहते हैं, जिसका अर्थ व्याघात है। तात्पर्य यह है कि जिस अवस्था में कर्म के ग्रहण होने पर भी नोकर्मरूप पुद्गलों का ग्रहण नहीं होता वह विग्रह है। ( राजवार्तिक/2/25/2/137/4 ); ( धवला 1/1, 1, 60/299/3 )।
- अथवा विग्रह का अर्थ व्याघात या कुटिलता है। ( राजवार्तिक/2/27/ ...../138/8); ( धवला 1/1, 1, 60/299/4 )।
राजवार्तिक/2/25/1/136/29 औदारिकादिशरीरनामोदयात् तन्निवृत्तिसमर्थान् विविधान् पुद्गलान् गृह्वाति, विगृह्यते वासौ ससारिणेति विग्रहो देहः। = औदारिकादि नामकर्म के उदय से उन शरीरों के योग्य पुद्गलों का ग्रहण विग्रह कहलाता है। अतएव संसारी जीव के द्वारा शरीर का ग्रहण किया जाता है। इसलिए देह को विग्रह कहते हैं। ( धवला 1/1, 1, 60/299/4 ) ।
धवला 4/1, 3, 2/29/8 विग्गहो वक्को कुटिलोत्ति एगट्ठो। = विग्रह, वक्र और कुटिल ये सब एकार्थवाची नाम हैं।
पुराणकोष से
(1) राजा के छः-संधि, विग्रह, आसन, यान, संशय और द्वैधीभाव गुणों में दूसरा गुण । शत्रु तथा उसके विजेता दोनों का परस्पर में एक दूसरे का उपकार करना विग्रह कहलाता है । महापुराण 68.66, 68
(2) भोगों का आयतन-शरीर । पद्मपुराण 17.174