वीरनिर्वाण संवत्: Difference between revisions
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देखें [[ इतिहास#2.2 | इतिहास - 2.2]], 10 (विशेष देखें [[ कोश#1. | कोश - 1.]]परिशिष्ट/1. 1)। | <span class="GRef">कषायपाहुड़ 1/ $56/75/2</span><p class=" PrakritText "> एदाणि [पण्णरसदिवसेहि अट्ठमासेहि य अहिय-] पंचहत्तरिवासेसु सोहिदे वड्ढमाणजिणिदे णिव्वुदे संते जो सेसो चउत्थकालो तस्स पमाणं होदि।</p> <p class="HindiText">= इद बहत्तर वर्ष प्रमाण कालको (महावीर का जन्मकाल-देखें महावीर ) पन्द्रह दिन और आठ महीना अधिक पचहत्तरवर्षमेंसे घटा देनेपर, वर्द्धमान जिनेन्द्रके मोक्ष जानेपर जितना चतुर्थ कालका प्रमाण [या पंचम कालका प्रारम्भ] शेष रहता है, उसका प्रमाण होता है। अर्थात् 3 वर्ष 8 महीने और पन्द्रह दिन। ( <span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति 4/1474</span> )।</p> | ||
<span class="GRef">धवला 1 (प्रस्तावना 32 H. L. Jain)</span> <p class="HindiText">साधारणतः वीर निर्वाण संवत् व विक्रम संवत्में 470 वर्ष का अन्तर रहता है। परन्तु विक्रम संवत्के प्रारम्भ के सम्बन्ध में प्राचीन काल से बहुत मतभेद चला आ रहा है, जिसके कारण भगवान् महावीर के निर्वाण काल के सम्बन्ध में भी कुछ मतभेद उत्पन्न हो गया है। उदाहरणार्थ-नन्दि संघकी पट्टावली में आ. इन्द्रनन्दि ने वीरके निर्वाण से 470 वर्ष पश्चात् विक्रम का जन्म और 488 वर्ष पश्चात् उसका राज्याभिषेक बताया है। इसे प्रमाण मानकर बैरिस्टर श्री काशीलाल जायसवाल वीर निर्वाण के काल को 18 वर्ष ऊपर उठाने का सुझाव देते हैं, क्योंकि उनके अनुसार विक्रम संवत्का प्रारम्भ उसके राज्याभिषेक से हुआ था। परन्तु दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों ही आम्नायों में विक्रम संवत्का प्रचार वीर निर्वाण के 470 वर्ष पश्चात् माना गया है। इसका कारण यह है कि सभी प्राचीन शास्त्रों में शक संवत्का प्रचार वीर निर्वाण के 605 वर्ष पश्चात् कहा गया है और उसमें तथा प्रचलित विक्रम संवत्में 135 वर्षका अन्तर प्रसिद्ध है। </p> | |||
<p class="HindiText">देखें [[ इतिहास#2.2 | इतिहास - 2.2]], 10 (विशेष देखें [[ कोश#1. | कोश - 1.]]परिशिष्ट/1. 1)। </p> | |||
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कषायपाहुड़ 1/ $56/75/2
एदाणि [पण्णरसदिवसेहि अट्ठमासेहि य अहिय-] पंचहत्तरिवासेसु सोहिदे वड्ढमाणजिणिदे णिव्वुदे संते जो सेसो चउत्थकालो तस्स पमाणं होदि।
= इद बहत्तर वर्ष प्रमाण कालको (महावीर का जन्मकाल-देखें महावीर ) पन्द्रह दिन और आठ महीना अधिक पचहत्तरवर्षमेंसे घटा देनेपर, वर्द्धमान जिनेन्द्रके मोक्ष जानेपर जितना चतुर्थ कालका प्रमाण [या पंचम कालका प्रारम्भ] शेष रहता है, उसका प्रमाण होता है। अर्थात् 3 वर्ष 8 महीने और पन्द्रह दिन। ( तिलोयपण्णत्ति 4/1474 )।
धवला 1 (प्रस्तावना 32 H. L. Jain)
साधारणतः वीर निर्वाण संवत् व विक्रम संवत्में 470 वर्ष का अन्तर रहता है। परन्तु विक्रम संवत्के प्रारम्भ के सम्बन्ध में प्राचीन काल से बहुत मतभेद चला आ रहा है, जिसके कारण भगवान् महावीर के निर्वाण काल के सम्बन्ध में भी कुछ मतभेद उत्पन्न हो गया है। उदाहरणार्थ-नन्दि संघकी पट्टावली में आ. इन्द्रनन्दि ने वीरके निर्वाण से 470 वर्ष पश्चात् विक्रम का जन्म और 488 वर्ष पश्चात् उसका राज्याभिषेक बताया है। इसे प्रमाण मानकर बैरिस्टर श्री काशीलाल जायसवाल वीर निर्वाण के काल को 18 वर्ष ऊपर उठाने का सुझाव देते हैं, क्योंकि उनके अनुसार विक्रम संवत्का प्रारम्भ उसके राज्याभिषेक से हुआ था। परन्तु दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों ही आम्नायों में विक्रम संवत्का प्रचार वीर निर्वाण के 470 वर्ष पश्चात् माना गया है। इसका कारण यह है कि सभी प्राचीन शास्त्रों में शक संवत्का प्रचार वीर निर्वाण के 605 वर्ष पश्चात् कहा गया है और उसमें तथा प्रचलित विक्रम संवत्में 135 वर्षका अन्तर प्रसिद्ध है।
देखें इतिहास - 2.2, 10 (विशेष देखें कोश - 1.परिशिष्ट/1. 1)।