बोधपाहुड़ गाथा 23: Difference between revisions
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<div class="HindiGatha"><div>मति धनुष श्रुतज्ञान डोरी रत्नत्रय के बाण हों ।</div> | <div class="HindiGatha"><div>मति धनुष श्रुतज्ञान डोरी रत्नत्रय के बाण हों ।</div> | ||
<div>परमार्थ का हो लक्ष्य तो मुनि मुक्तिमग नहीं चूकते ॥२३॥</div> | <div>परमार्थ का हो लक्ष्य तो मुनि मुक्तिमग नहीं चूकते ॥२३॥</div> | ||
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<div class="HindiBhavarth"><div>जिस मुनि के मतिज्ञानरूप धनुष स्थिर हो, श्रुतज्ञानरूप गुण अर्थात् प्रत्यंचा हो, रत्नत्रयरूप उत्तम बाण हो और परमार्थस्वरूप निजशुद्धात्मस्वरूप का संबंधरूप लक्ष्य हो, वह मुनि मोक्षमार्ग को नहीं चूकता है ।</div> | |||
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<div class="HindiBhavarth"><div>धनुष की सब सामग्री यथावत् मिले तब निशाना नहीं चूकता है वैसे ही मुनि के मोक्षमार्ग की यथावत् सामग्री मिले तब मोक्षमार्ग से भ्रष्ट नहीं होता है । उसके साधन से मोक्ष को प्राप्त होता है । यह ज्ञान का माहात्म्य है, इसलिए जिनागम के अनुसार सत्यार्थ ज्ञानियों का विनय करके ज्ञान का साधन करना ॥२३॥</div> | <div class="HindiBhavarth"><div>धनुष की सब सामग्री यथावत् मिले तब निशाना नहीं चूकता है वैसे ही मुनि के मोक्षमार्ग की यथावत् सामग्री मिले तब मोक्षमार्ग से भ्रष्ट नहीं होता है । उसके साधन से मोक्ष को प्राप्त होता है । यह ज्ञान का माहात्म्य है, इसलिए जिनागम के अनुसार सत्यार्थ ज्ञानियों का विनय करके ज्ञान का साधन करना ॥२३॥</div> |
Revision as of 16:09, 2 November 2013
मइधणुहं जस्स थिरं सुदगुण बाणा सुअत्थि रयणत्तं ।
परमत्थबद्धलक्खो णवि चुक्कदि मोक्खमग्गस्स ॥२३॥
मतिधनुर्यस्य स्थिरं श्रुतं गुण: बाणा: सुसन्ति रत्नत्रयं ।
परमार्थबद्धलक्ष्य: नापि स्खलति मोक्षमार्गस्य ॥२३॥
आगे इसी को दृढ़ करते हैं -
हरिगीत
मति धनुष श्रुतज्ञान डोरी रत्नत्रय के बाण हों ।
परमार्थ का हो लक्ष्य तो मुनि मुक्तिमग नहीं चूकते ॥२३॥
जिस मुनि के मतिज्ञानरूप धनुष स्थिर हो, श्रुतज्ञानरूप गुण अर्थात् प्रत्यंचा हो, रत्नत्रयरूप उत्तम बाण हो और परमार्थस्वरूप निजशुद्धात्मस्वरूप का संबंधरूप लक्ष्य हो, वह मुनि मोक्षमार्ग को नहीं चूकता है ।
धनुष की सब सामग्री यथावत् मिले तब निशाना नहीं चूकता है वैसे ही मुनि के मोक्षमार्ग की यथावत् सामग्री मिले तब मोक्षमार्ग से भ्रष्ट नहीं होता है । उसके साधन से मोक्ष को प्राप्त होता है । यह ज्ञान का माहात्म्य है, इसलिए जिनागम के अनुसार सत्यार्थ ज्ञानियों का विनय करके ज्ञान का साधन करना ॥२३॥
इसप्रकार ज्ञान का निरूपण किया ।