शाल्मलीवृक्ष: Difference between revisions
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<p id="1">(1) जंबूद्वीप में स्थित वृक्ष । यह मेरु पर्वत की दक्षिण-पश्चिम दिशा में विद्यमान शाल्मली स्थल में पृथिवीकाय रूप में स्थित है । इसकी चारो दिशाओं में चार शाखाएँ है । दक्षिण-शाखा पर अकृत्रिम जिनमंदिर बने है । शेष तीन शाखाओं पर भवन बने हुए हैं, जिनमें वेणु और वेणुदारी देव रहते हैं । यह मूल में एक कोश चौड़ा है इसकी शाखाएं आठ योजन तक फैली है । <span class="GRef"> महापुराण 5.184 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.177, 187-190 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) जंबूद्वीप में स्थित वृक्ष । यह मेरु पर्वत की दक्षिण-पश्चिम दिशा में विद्यमान शाल्मली स्थल में पृथिवीकाय रूप में स्थित है । इसकी चारो दिशाओं में चार शाखाएँ है । दक्षिण-शाखा पर अकृत्रिम जिनमंदिर बने है । शेष तीन शाखाओं पर भवन बने हुए हैं, जिनमें वेणु और वेणुदारी देव रहते हैं । यह मूल में एक कोश चौड़ा है इसकी शाखाएं आठ योजन तक फैली है । <span class="GRef"> महापुराण 5.184 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.177, 187-190 </span></p> | ||
<p id="2">(2) विक्रिया ऋद्धि से निर्मित कृत्रिम, लौह-निर्मित, कंटकाकीर्ण नरक के वृक्ष । इन वृक्षों को धौंकनी से प्रदीप्त कर नारकियों को बलपूर्वक उन पर चढ़ने के लिए बाध्य किया जाता है । वृक्षों पर चढ़ते समय उन्हें कोई नारकी नीचे की ओर घसीटता है कोई ऊपर की ओर । इस प्रकार इन वृक्षों के द्वारा नारकियों को दुःख सहन करने पड़ते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 10.52-53, 79, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 26.79-80, 32.92 </span></p> | <p id="2">(2) विक्रिया ऋद्धि से निर्मित कृत्रिम, लौह-निर्मित, कंटकाकीर्ण नरक के वृक्ष । इन वृक्षों को धौंकनी से प्रदीप्त कर नारकियों को बलपूर्वक उन पर चढ़ने के लिए बाध्य किया जाता है । वृक्षों पर चढ़ते समय उन्हें कोई नारकी नीचे की ओर घसीटता है कोई ऊपर की ओर । इस प्रकार इन वृक्षों के द्वारा नारकियों को दुःख सहन करने पड़ते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 10.52-53, 79, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 26.79-80, 32.92 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
(1) जंबूद्वीप में स्थित वृक्ष । यह मेरु पर्वत की दक्षिण-पश्चिम दिशा में विद्यमान शाल्मली स्थल में पृथिवीकाय रूप में स्थित है । इसकी चारो दिशाओं में चार शाखाएँ है । दक्षिण-शाखा पर अकृत्रिम जिनमंदिर बने है । शेष तीन शाखाओं पर भवन बने हुए हैं, जिनमें वेणु और वेणुदारी देव रहते हैं । यह मूल में एक कोश चौड़ा है इसकी शाखाएं आठ योजन तक फैली है । महापुराण 5.184 हरिवंशपुराण 5.177, 187-190
(2) विक्रिया ऋद्धि से निर्मित कृत्रिम, लौह-निर्मित, कंटकाकीर्ण नरक के वृक्ष । इन वृक्षों को धौंकनी से प्रदीप्त कर नारकियों को बलपूर्वक उन पर चढ़ने के लिए बाध्य किया जाता है । वृक्षों पर चढ़ते समय उन्हें कोई नारकी नीचे की ओर घसीटता है कोई ऊपर की ओर । इस प्रकार इन वृक्षों के द्वारा नारकियों को दुःख सहन करने पड़ते हैं । महापुराण 10.52-53, 79, पद्मपुराण 26.79-80, 32.92