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<p> मूल शरीर से नहीं छोड़ते हुए आत्म प्रदेशों का बाहर निकलना । यह सात प्रकार का होता है― 1. वेदना 2. कषाय 3. वैक्रियिक 4. मारणांतिक 5. तैजस 6. आहारक और 7. केवलि । इन सातों में आदि के चार सभी आत्माओं के तथा अंत के तीन योगियों के होते हैं । यह तीनों योगों का निरोध करने के लिए किया जाता है । इसमें आत्मा के प्रदेश पहले समय में चौदह राजू ऊँचे दंडाकार होते हैं । दूसरे समय में कपाट के आकार, तीसरे समय में प्रतररूप और चौथे समय में समस्त लोकाकाश में भर जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 21.189-190, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.109-110 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> मूल शरीर से नहीं छोड़ते हुए आत्म प्रदेशों का बाहर निकलना । यह सात प्रकार का होता है― 1. वेदना 2. कषाय 3. वैक्रियिक 4. मारणांतिक 5. तैजस 6. आहारक और 7. केवलि । इन सातों में आदि के चार सभी आत्माओं के तथा अंत के तीन योगियों के होते हैं । यह तीनों योगों का निरोध करने के लिए किया जाता है । इसमें आत्मा के प्रदेश पहले समय में चौदह राजू ऊँचे दंडाकार होते हैं । दूसरे समय में कपाट के आकार, तीसरे समय में प्रतररूप और चौथे समय में समस्त लोकाकाश में भर जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 21.189-190, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 16.109-110 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
मूल शरीर से नहीं छोड़ते हुए आत्म प्रदेशों का बाहर निकलना । यह सात प्रकार का होता है― 1. वेदना 2. कषाय 3. वैक्रियिक 4. मारणांतिक 5. तैजस 6. आहारक और 7. केवलि । इन सातों में आदि के चार सभी आत्माओं के तथा अंत के तीन योगियों के होते हैं । यह तीनों योगों का निरोध करने के लिए किया जाता है । इसमें आत्मा के प्रदेश पहले समय में चौदह राजू ऊँचे दंडाकार होते हैं । दूसरे समय में कपाट के आकार, तीसरे समय में प्रतररूप और चौथे समय में समस्त लोकाकाश में भर जाते हैं । महापुराण 21.189-190, वीरवर्द्धमान चरित्र 16.109-110