साकारमंत्रभेद: Difference between revisions
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<span class="SanskritText"> सर्वार्थसिद्धि/7/26/366/11 अर्थप्रकरणांगविकारभ्रूविक्षेपादिभि: पराकूतमुपलभ्य तदाविष्करणमसूयादिनिमित्तं यत्तत्साकारमंत्रभेद इति कथ्यते।</span> = <span class="HindiText">अर्थवश, प्रकरणवश, शरीर के विकारवश या भ्रूक्षेप आदि के कारण दूसरे के अभिप्राय को जानकर डाह से उसका प्रगट कर देना साकारमंत्रभेद है। ( राजवार्तिक/7/26/5/554/1 )।</span> | <span class="SanskritText"><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/26/366/11 </span>अर्थप्रकरणांगविकारभ्रूविक्षेपादिभि: पराकूतमुपलभ्य तदाविष्करणमसूयादिनिमित्तं यत्तत्साकारमंत्रभेद इति कथ्यते।</span> = <span class="HindiText">अर्थवश, प्रकरणवश, शरीर के विकारवश या भ्रूक्षेप आदि के कारण दूसरे के अभिप्राय को जानकर डाह से उसका प्रगट कर देना साकारमंत्रभेद है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/7/26/5/554/1 </span>)।</span> | ||
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Revision as of 13:02, 14 October 2020
सर्वार्थसिद्धि/7/26/366/11 अर्थप्रकरणांगविकारभ्रूविक्षेपादिभि: पराकूतमुपलभ्य तदाविष्करणमसूयादिनिमित्तं यत्तत्साकारमंत्रभेद इति कथ्यते। = अर्थवश, प्रकरणवश, शरीर के विकारवश या भ्रूक्षेप आदि के कारण दूसरे के अभिप्राय को जानकर डाह से उसका प्रगट कर देना साकारमंत्रभेद है। ( राजवार्तिक/7/26/5/554/1 )।