सांपरायिक आस्रव: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Revision as of 16:38, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से == देखें आस्रव - 1.5।
पुराणकोष से
आस्रव के दो भेदों में प्रथम भेद । यह कषायपूर्वक होता है । मिथ्यादृष्टि से सूक्ष्मतसांपराय गुणस्थान तक के जीवों के सकषाय होने से यह आस्रव होता है । इसके पांच इंद्रियाँ, चार कषाय, पाँच अव्रत, और पच्चीस क्रियाएँ ये 39 द्वार हैं― पच्चीस क्रियाओं के नाम निम्न प्रकार है―
1. सम्यक्त्व 2. मिथ्यात्व 3. प्रयोग 4. समादान 5. कायिकी 6. क्रियाधिकरणी 7. पारितापिकी 8. प्राणातिपातिकी 9. दर्शन 10. स्पर्शन 11. प्रत्यायिकी 12. समंतानुपातिनी 13. अनाभोग 14. स्वहस्त 15. निसर्ग 16. विदारण 18. आज्ञाव्यापादिकी 19. अनाकांक्षी 20. प्रारंभ 21 पारिग्रहिकी 22. माया 24. मिथ्यादर्शन और 25 अप्रत्याख्यान । हरिवंशपुराण 58.58-82