संक्रांति: Difference between revisions
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Revision as of 16:39, 19 August 2020
1. सर्वार्थसिद्धि/9/44/455/10 संक्रांति: परिवर्तनम् । द्रव्यं विहाय पर्यायमुपैति पर्यायं त्यक्त्वा द्रव्यमित्यर्थ संक्रांति:। एकं श्रुतवचनमुपादाय वचनांतरमालंबते तदपि विहायान्यदिति व्यंजनसंक्रांति:। काययोगं त्यक्त्वा योगांतरं गृह्णाति योगांतरं च त्यक्त्वा काययोगमिति योगसंक्रांति:।
संक्रांति का अर्थ परिवर्तन है। द्रव्य को छोड़कर पर्याय को प्राप्त होता है और पर्याय को छोड़कर द्रव्य को प्राप्त होता है। यह अर्थ संक्रांति है। एक श्रुत वचन का आलंबन लेकर दूसरे वचन का आलंबन लेता है और उसे भी त्यागकर अन्य वचन का आलंबन लेता है यह व्यंजन संक्रांति है। काययोग को छोड़कर दूसरे योग को स्वीकार करता है और दूसरे योग को छोड़कर काययोग को स्वीकार करता है। यह योग संक्रांति है। ( राजवार्तिक/9/44/1/634/10 ), ( भावपाहुड़ टीका/78/227 ), 2. ध्यान में योग संक्रांति संबंधी शंका समाधान - देखें शुक्लध्यान - 4।