अननुभाषण: Difference between revisions
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<p class="SanskritText"><span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/5/2/16/316 </span>विज्ञातस्य परिषदा त्रिरभिहितस्याप्यप्रत्युच्चारणमननुभाषणम् ॥16॥ </p> | <p class="SanskritText"><span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/5/2/16/316 </span>विज्ञातस्य परिषदा त्रिरभिहितस्याप्यप्रत्युच्चारणमननुभाषणम् ॥16॥ </p> | ||
<p class="HindiText">= सभा अर्थात् सभासदने जिस अर्थ को जान लिया और | <p class="HindiText">= सभा अर्थात् सभासदने जिस अर्थ को जान लिया और वादी ने जिसको तीन बार कह दिया ऐसे जाने और तीन बार कहे हुए को सुनकर भी जो प्रतिवादी कुछ न कहे तो उसको `अननुभाषण' नामक निग्रहस्थान कहते हैं। </p> | ||
<p>(<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक 4/ </span>न्या. 231/409/10)।</p> | <p>(<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक 4/ </span>न्या. 231/409/10)।</p> | ||
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Revision as of 14:10, 26 September 2022
न्यायदर्शन सूत्र/5/2/16/316 विज्ञातस्य परिषदा त्रिरभिहितस्याप्यप्रत्युच्चारणमननुभाषणम् ॥16॥
= सभा अर्थात् सभासदने जिस अर्थ को जान लिया और वादी ने जिसको तीन बार कह दिया ऐसे जाने और तीन बार कहे हुए को सुनकर भी जो प्रतिवादी कुछ न कहे तो उसको `अननुभाषण' नामक निग्रहस्थान कहते हैं।
( श्लोकवार्तिक 4/ न्या. 231/409/10)।