अष्टापद: Difference between revisions
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<p class="SanskritText"><span class="GRef"> महापुराण 27/70 </span>शरभः खं सभुत्पत्य पतन्नुत्तापितोऽवि सन्। नैव दुःखासिका वेद चरणैः पृष्ठवर्तिभिः ॥70॥</p> | <p class="SanskritText"><span class="GRef"> महापुराण 27/70 </span>शरभः खं सभुत्पत्य पतन्नुत्तापितोऽवि सन्। नैव दुःखासिका वेद चरणैः पृष्ठवर्तिभिः ॥70॥</p> | ||
<p class="HindiText">= यह अष्टापद आकाशमें उछलकर यद्यपि पीठके बल गिरता है. तथापि पीठपर रहनेवाले सैरोंसे यह दुःखका अनुभव नहीं करता। भावार्थ - अष्टापद एक जंगली जानवर होता है। उसकी पीठपर चार पाँव होते हैं। जब कभी वह आकाशमें छलांग मारनेके पश्चात् पीठके बल गिरता है तो अपने पीठपर के पैरोंसे संभल कर खड़ा हो जाता है।</p> | <p class="HindiText">= यह अष्टापद आकाशमें उछलकर यद्यपि पीठके बल गिरता है. तथापि पीठपर रहनेवाले सैरोंसे यह दुःखका अनुभव नहीं करता। भावार्थ - अष्टापद एक जंगली जानवर होता है। उसकी पीठपर चार पाँव होते हैं। जब कभी वह आकाशमें छलांग मारनेके पश्चात् पीठके बल गिरता है तो अपने पीठपर के पैरोंसे संभल कर खड़ा हो जाता है।</p> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) कैलास पर्वत । ऋषभदेव की निर्वाणभूमि । इस पर्वत पर सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्रों ने दंडरत्न से आठ पादस्थान बनाकर इसकी भूमि खोदना आरंभ किया था । इस कारण इसका यह नाम प्रसिद्ध हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 15.76, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 13.27-29,19.87 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) कैलास पर्वत । ऋषभदेव की निर्वाणभूमि । इस पर्वत पर सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्रों ने दंडरत्न से आठ पादस्थान बनाकर इसकी भूमि खोदना आरंभ किया था । इस कारण इसका यह नाम प्रसिद्ध हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 15.76, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 13.27-29,19.87 </span></p> | ||
<p id="2">(2) शरभ नाम का एक पशु । इसकी पीठ पर भी चार पैर होते हैं जिससे आकाश में उछलकर पीठ के बल गिरने पर भी पृष्ठवर्ती पैरों के कारण यह दु:ख का अनुभव नहीं करता । <span class="GRef"> महापुराण 27.70 </span></p> | <p id="2">(2) शरभ नाम का एक पशु । इसकी पीठ पर भी चार पैर होते हैं जिससे आकाश में उछलकर पीठ के बल गिरने पर भी पृष्ठवर्ती पैरों के कारण यह दु:ख का अनुभव नहीं करता । <span class="GRef"> महापुराण 27.70 </span></p> | ||
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Revision as of 16:51, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
महापुराण 27/70 शरभः खं सभुत्पत्य पतन्नुत्तापितोऽवि सन्। नैव दुःखासिका वेद चरणैः पृष्ठवर्तिभिः ॥70॥
= यह अष्टापद आकाशमें उछलकर यद्यपि पीठके बल गिरता है. तथापि पीठपर रहनेवाले सैरोंसे यह दुःखका अनुभव नहीं करता। भावार्थ - अष्टापद एक जंगली जानवर होता है। उसकी पीठपर चार पाँव होते हैं। जब कभी वह आकाशमें छलांग मारनेके पश्चात् पीठके बल गिरता है तो अपने पीठपर के पैरोंसे संभल कर खड़ा हो जाता है।
पुराणकोष से
(1) कैलास पर्वत । ऋषभदेव की निर्वाणभूमि । इस पर्वत पर सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्रों ने दंडरत्न से आठ पादस्थान बनाकर इसकी भूमि खोदना आरंभ किया था । इस कारण इसका यह नाम प्रसिद्ध हुआ । पद्मपुराण 15.76, हरिवंशपुराण 13.27-29,19.87
(2) शरभ नाम का एक पशु । इसकी पीठ पर भी चार पैर होते हैं जिससे आकाश में उछलकर पीठ के बल गिरने पर भी पृष्ठवर्ती पैरों के कारण यह दु:ख का अनुभव नहीं करता । महापुराण 27.70