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== सिद्धांतकोष से == | | ||
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<p>इस शब्दका साधारण अर्थ यद्यपि वस्तुओंका संस्थान होता है, परंतु यहाँ ज्ञान प्रकरणमें इसका अर्थ चेतन प्रकाशमें प्रतिभासित होनेवाले पदार्थोंकी विशेष आकृतिमें लिया गया है और अध्यात्म प्रकरणमें देशकालवच्छिन्न सभी पदार्थ साकार कहे जाते हैं।</p> | <p>इस शब्दका साधारण अर्थ यद्यपि वस्तुओंका संस्थान होता है, परंतु यहाँ ज्ञान प्रकरणमें इसका अर्थ चेतन प्रकाशमें प्रतिभासित होनेवाले पदार्थोंकी विशेष आकृतिमें लिया गया है और अध्यात्म प्रकरणमें देशकालवच्छिन्न सभी पदार्थ साकार कहे जाते हैं।</p> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> ज्ञानोपयोग से वस्तुओं का भेद ग्रहण । <span class="GRef"> महापुराण 24.101-102 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> ज्ञानोपयोग से वस्तुओं का भेद ग्रहण । <span class="GRef"> महापुराण 24.101-102 </span></p> | ||
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Revision as of 16:52, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
इस शब्दका साधारण अर्थ यद्यपि वस्तुओंका संस्थान होता है, परंतु यहाँ ज्ञान प्रकरणमें इसका अर्थ चेतन प्रकाशमें प्रतिभासित होनेवाले पदार्थोंकी विशेष आकृतिमें लिया गया है और अध्यात्म प्रकरणमें देशकालवच्छिन्न सभी पदार्थ साकार कहे जाते हैं।
1. भेद व लक्षण
1. आकारका लक्षण - (ज्ञानज्ञेय विकल्प व भेद)
राजवार्तिक अध्याय 1/12/1/53/6 आकारो विकल्पः।
= आकारः अर्थात विकल्प (ज्ञानमें भेद रूप प्रतिभास)।
कषायपाहुड़ पुस्तक 1/1,15/$301/331/1 पमाणदो पुधभूदं कम्ममायारो।
= प्रमाणसे पृथग्भूत कर्मको आकार कहते है। अर्थात् प्रमाणमें (या ज्ञानमें) अपने से भिन्न बहिर्भूत जो विषय प्रभिभासमान होता है उसे आकार कहते हैं।
कषायपाहुड़ पुस्तक 1/1,15/$307/338/3 आयारो कम्मकारयं सयलत्थसत्थादो पुध काऊण बुद्धिगीयरमुवणीयं।
= सकल पदार्थोंके समुदायसे अगल होकर बुद्धिके विषय भावको प्राप्त हुआ कर्मकारण आकार कहलाता है।
( धवला पुस्तक 13/5,5,19/207/7)
महापुराण सर्ग संख्या 24/102 भेदग्रहणमाकारः प्रतिकर्मव्यवस्था... ॥102॥
= घट पट आदिकी व्यवस्था लिए हुए किसी वस्तुके भेद ग्रहण करनेको आकार कहते हैं।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 43/186/6 आकारं विकल्पं;...केन रूपेण। शुक्लोऽयं, कृष्णोऽयं, दीर्घोऽयं, घटोऽयं, पटोऽयमित्यादि।
= विकल्प को आकार कहते हैं। वह भी किस रूपसे? `यह शुक्ल है, यह कृष्ण है, यह बड़ा है, यह छोटा है, वह घट है, यह पट है' इत्यादि। - देखें आकार - 2.1,2,3
(ज्ञेयरूपेण ग्राह्य)।
2. उपयोगके साकार अनाकार दो भेद
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 2/9 स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः ॥9॥
= वह उपयोक क्रमसे दो प्रकार, आठ प्रकार व चार प्रकार है।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2/9/163/7 स उपयोगो द्विविधः-ज्ञानोपयोगो, दर्शनोपयोगश्चेति। ज्ञानोपयोगोऽष्टभेद...दर्शनोपयोगश्चतुर्भेदः।
= वह उपयोग दो प्रकारका है-ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग। ज्ञानोपयोग आठ प्रकारका है और दर्शनोपयोग चार प्रकारका है।
( नियमसार / मूल या टीका गाथा .10), ( पंचास्तिकाय / / मूल या टीका गाथा 40), ( नयचक्रवृहद् गाथा 119); ( तत्त्वार्थसार अधिकार 2/46); ( द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 4)।
पंचसंग्रह / प्राकृत 1/178 ..। उवओगो सो दुविहो सागारो चेव अणागारो।
= उपयोग दो प्रकारका है-साकार और अनाकार।
( सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2/9/163/10), (राजवार्तिक अध्याय 2/9/1/123.30), ( धवला पुस्तक 2/1,1/420/1), ( धवला पुस्तक 13/5,5,19/207/4), ( गोम्मट्टसार जीवकांड / मूल गाथा 672), (पंचसंग्रह / संस्कृत / अधिकार 1/332)।
3. साकोरोपयोगका लक्षण
पंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार 1/179 मइसुओहिमणेहि य जं सयविसयं विसेसविण्णाणं। अंतोमुहुत्तकालो उवओगो सो हु सागारो ॥179॥
= मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्ययज्ञानके द्वारा जो अपने-अपने विषयका विशेष विज्ञान होता है, उसे साकार उपयोग कहते हैं। यह अंतर्मूहूर्तकाल तक होता है ॥179॥
कषायपाहुड़ पुस्तक 1/1,15/$307/338/4 तेण आयारेण सह वट्टम णं सायारं।
= उस आकारके साथ जो पाया जाता है वह साकार उपयोग कहलाता है।
(घ.13/5,5,19/207/7)
4. अनाकार उपयोगका लक्षण
पंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार 1/180 इंद्रियमणोहिणा वा अत्थे अविसेसिऊण जं गहण। अंतोमुहुत्तकालो अवओगो सो अणागारो ॥180॥
= इंद्रिय, मन और अवधिके द्वारा पदार्थोंकी विशेषताको ग्रहण न करके जो सामान्य अंशका ग्रहण होता है, उसे अनाकार उपयोग कहते हैं। यह भी अंतर्मूहूर्त काल तक होता है ॥180॥
कषायपाहुड़ पुस्तक 1/1,15/$307/4 तव्विवरीयं अणायारं।
= उस साकारसे विपरीत अनाकार है। अर्थात् जो आकारके साथ नहीं वर्तता वह अनाकार है।
( धवला पुस्तक 13/5,5,19/207/6)।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 394 यत्सामान्यमनाकारं साकारं तद्विशेषभाक्।
= जो सामान्य धर्मसे युक्त होता है वह अनाकार है और जो विशेष धर्मसे युक्त होता है वह साकार है।
5. ज्ञान साकारोपयोगी है
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2/9/163/10 साकारं ज्ञानम्।
= ज्ञान साकार है।
(राजवार्तिक अध्याय 2/9/1/132/31), ( धवला पुस्तक 13/5,5,29/207/5), ( महापुराण सर्ग संख्या 24/201)
धवला पुस्तक 1/1,1,115/353/10 जानानीति ज्ञानं साकारोपयोगः।
= जो जानता है उसको ज्ञान कहते हैं, अर्थात् साकारोपयोगको ज्ञान कहते हैं।
समयसार / आत्मख्याति परिशिष्ट /शक्ति नं.4 साकारोपयोगमयी ज्ञानशक्तिः।
= साकार उपयोगमयी ज्ञानशक्तिः।
6. दर्शन अनाकारोपयोगी है
पंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार 1/138 जं सामण्णं गहणं भावाणं णेव कट्टु आयारं। अविसेसिऊण अत्थे दंसणमिदिभण्णदे समए ॥138॥
= सामान्य विशेषात्मक पदार्थोके आकार विशेषको ग्रणह न करके जो केवल निर्विकल्प रूपसे अंशका या स्वरूपमात्रका सामान्य ग्रहण होता है, उसे परमागममें दर्शन कहा गया है।
( द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 43) ( गोम्मट्टसार जीवकांड / मूल गाथा 482/888) (पंचसंग्रह / संस्कृत / अधिकार 1/249) ( धवला पुस्तक 1/1,1,4/93/149)
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2/9/163/10 अनाकारं दर्शनमति।
= अनाकार दर्शनोपयोग है।
(राजवार्तिक अध्याय 2/9/1/123/31); ( धवला पुस्तक 13/5,5,19/207/6) ( महापुराण सर्ग संख्या 24/101)
2. शंका समाधान
1. ज्ञानको साकार कहनेका कारण
तत्त्वार्थसार अधिकार 2/11 कृत्वा विशेषं गृह्णाति वस्तुजातं यतस्ततः। साकारमिष्यते ज्ञानं ज्ञानयाथात्म्यवेदिभिः ॥11॥
= ज्ञानपदार्थोंको विशेष करके जानता है, इसलिए उसे साकार कहते हैं। यथार्थरूपसे ज्ञानका स्वरूप जाननेवालोंने ऐसा कहा है।
2. दर्शनको निराकार कहनेका कारण
तत्त्वार्थसार अधिकार 2/12 यद्विशेषमकृत्वैव गृह्णीते वस्तुमात्रकम्। निराकारं ततः प्रोक्तं दर्शनं विश्वदर्शिभिः ॥12॥
= पदार्थोंकी विशेषता न समझकर जो केवल सामान्यका अथवा सत्ता-स्वभावका ग्रहण करता है, उसे दर्शन कहते हैं उसे निराकार कहनेका भी यही प्रयोजन है कि वह ज्ञेय वस्तुओंको आकृति विशेषको ग्रहण नहीं कर पाता।
गोम्मट्टसार जीवकांड / गोम्मट्टसार जीवकांड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 482/888/12 भावानां सामान्यविशेषात्मकबाह्यपदार्थानां आकारं-भेदग्रहणं अकृत्वा यत्सामान्यग्रहणं-स्वरूपमात्रावभासनं तत् दर्शनमिति परमागमे भण्यते।
= भाव जे सामान्य विशेषात्मक बाह्यपदार्थ तिनिका आकार कहिये भेदग्रहण ताहि न करकै जो सत्तामात्र स्वरूपका प्रतिभासना सोई दर्शन परमागम विषै कहा है।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 392-395 नाकारः स्यादनाकारो वस्तुतो निर्विकल्पता। शेषानंतगुणानां तल्लक्षणं ज्ञानमंतरा ॥392॥ ज्ञानाद्विना गुणाः सर्वे प्रोक्ताः सल्लक्षणांकिताः। सामान्याद्वा विशेषाद्वा सत्यं नाकारमात्रकाः ॥395॥
= जो आकार न हो सो अनाकार है, इसलिए वास्तवमें ज्ञानके बिना शेष अनंतों गुणोंमें निर्विकल्पता होती है। अतः ज्ञानने बिना शेष सब गुणोंका लक्षण अनाकार होता है ॥392॥ ज्ञानके बिना शेष सब गुण केवल सत् रूप लक्षणसे ही लक्षित होते हैं इसलिए सामान्य अथवा विशेष दोनों ही अपेक्षओंसे वास्तवमें वे अनाकाररूप ही होते हैं ॥395॥
3. निराकार उपयोग क्या वस्तु है
धवला पुस्तक 13/5,5,19/207/8 विसयाभावादो अणागारुवजोगो णत्थि त्ति सणिच्छयं णाणं सायारो, अणिच्छयमणागारो त्ति ण वोत्तुं सक्किज्जदे, संसय-विवज्जय-अणज्झवसायणमणायारत्तप्पसंगादो। एदं पि णत्थि, केवलिहि दंसणाभावप्पसंगादो। ण एस दोतो अंतरंगविस यस्स उवजोगस्स आणायारत्तब्भुगमादो। ण अंतरंग उवजोगो वि सायारो, कत्तारादो दव्वादो पुह कम्माणुवलंभादो। ण च दोण्णं पि उवजोगाणमेयत्त, बहिरंगतरंगत्थविसयाणमेयत्तविरोहादो। ण च एदम्हि अत्थे अवलं बिज्जमाणे सायार अणायार उवजोगाणमसमाणत्तं, अणणोणभेदेहिं पुहाणमसमाणत्तविरोहादो।
= प्रश्न - साकार उपयोगके द्वारा सब पदार्थ विषय कर लिये जाते हैं, (दर्शनोपयोगके लिए कोई विषय शेष नहीं रह जाता) अतः विषयका अभाव होनेके कारण अनाकार उपयोग नहीं बनता; इसलिए निश्चय सहित ज्ञानका नाम साकार और निश्चियरहित ज्ञानका नाम अनाकार उपयोग है। यदि ऐसा कोई कहे तो कहना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा माननेपर संशय विपर्यय और अनवध्यवसायकी अनाकारता प्राप्त होती है। यदि कोई कहे कि ऐसा हो ही जाओ, सो भी बात नहीं है; क्योंकि, ऐसा माननेपर केवली जिनके दर्शनका अभाव प्राप्त होता है।
( कषायपाहुड़ पुस्तक 1/1,15/$306/337/4); ( कषायपाहुड़ पुस्तक 1/1-22/$327/358/3)
उत्तर - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अंतरंगको विषय करनेवाले उपयोगको अनाकार उपयोगरूपसे स्वीकार किया है। अंतरंग उपयोग विषयाकार होता है यह बात भी नहीं है, क्योंकि, इसमें कर्ता द्रव्यसे पृथग्भूत कर्म नहीं पाया जाता। यदि कहा जाय कि दोनों उपयोग एक हैं; सो भी बात नहीं है, क्योंकि एक (ज्ञान) बहिरंग अर्थको विषय करता है और दूसरा (दर्शन) अंतरंग अर्थको विषय करता है, इसलिए, इन दोनोंको एक माननेमें विरोध आता है। यदि कहा जाय कि इस अर्थके स्वीकार करनेपर साकार और अनाकार उपयोगमें समानता न रहेगी, सो भी बात नहीं है, क्योंकि परस्परके भेदसे ये अलग हैं इसलिए इनमें असमानता माननेमें विरोध आता है।
( कषायपाहुड़ पुस्तक 1/1-20/$327/358/7)
• देशकालावच्छिन्न सभी पदार्थ या भाव साकार है - देखें मूर्तीक
पुराणकोष से
ज्ञानोपयोग से वस्तुओं का भेद ग्रहण । महापुराण 24.101-102