इच्छाकार: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 126,131 इट्ठे इच्छाकारो तहेव अवराधे।....।126। संजमणाणुवकरणे अण्णुवकरणे च जायणे अण्णे। जोगग्गहणादिसु अ इच्छाकारो दु कादव्वो ॥131॥</p> | <p class="SanskritText">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 126,131 इट्ठे इच्छाकारो तहेव अवराधे।....।126। संजमणाणुवकरणे अण्णुवकरणे च जायणे अण्णे। जोगग्गहणादिसु अ इच्छाकारो दु कादव्वो ॥131॥</p><br> | ||
<p class="HindiText">= सम्यग्दर्शनादि शुद्ध परिणाम व व्रतादिक शुभपरिणामोंमें हर्ष होना अपनी इच्छासे प्रवर्तना वह इच्छाकार है।...॥126॥ संयमके पीछी आदि उपकरणोंमें तथा श्रुतज्ञानके पुस्तकादि उपकरणोंमें और अन्य भी तप आदिके कमंडलु आहारादि उपकरणोंमें, औषधिमें, उष्णकालादिमें, आतापनादि योगोंमें इच्छाकार करना अर्थात् मनको प्रवर्ताना ॥131॥</p> | |||
<p class="SanskritText"><span class="GRef"> | <p class="HindiText">= सम्यग्दर्शनादि शुद्ध परिणाम व व्रतादिक शुभपरिणामोंमें हर्ष होना अपनी इच्छासे प्रवर्तना वह इच्छाकार है।...॥126॥ संयमके पीछी आदि उपकरणोंमें तथा श्रुतज्ञानके पुस्तकादि उपकरणोंमें और अन्य भी तप आदिके कमंडलु आहारादि उपकरणोंमें, औषधिमें, उष्णकालादिमें, आतापनादि योगोंमें इच्छाकार करना अर्थात् मनको प्रवर्ताना ॥131॥</p><br> | ||
<p class="SanskritText"><span class="GRef"> सूत्रपाहुड़ 14-15 </span>इच्छायार महत्थं सुत्तठिओ जो हु छंडए कम्मं। ठाणे ट्ठियसम्मत्तं परलोयसुहंकरो होइ ॥14॥ अह पुण अप्पा णिच्छदि धम्माइं करेदि निरवसेसाइं। तह वि ण पावदि सिद्धिं संसारत्थो पुणो भणिदो ॥15॥</p><br> | |||
<p class="HindiText">= जो पुरुष जिन सूत्र विषैं तिष्ठता संता इच्छाकार शब्दका महान् अर्थ ताहि जानै है, बहुरि स्थान जो श्रावकके भेद रूप प्रतिमा तिनिमैं तिष्ठस्या सम्यक्त्व सहित वर्तता आरंभ आदि कर्मनिकूं छोडै है सो परलोकविषैं सुख करनेवाला होय है ॥14॥ इच्छाकारका प्रधान अर्थ आत्माका चाहना है अपने स्वरूप विषैं रुचि करना है सो याकूं जो नांही इष्ट करै है अन्य धर्मके सर्व आचरण करे है तौउ सिद्धि कहिये मोक्ष कं नहीं पावै है ताकं संसारविषै ही तिष्ठनेवाला कह्या।</p> | <p class="HindiText">= जो पुरुष जिन सूत्र विषैं तिष्ठता संता इच्छाकार शब्दका महान् अर्थ ताहि जानै है, बहुरि स्थान जो श्रावकके भेद रूप प्रतिमा तिनिमैं तिष्ठस्या सम्यक्त्व सहित वर्तता आरंभ आदि कर्मनिकूं छोडै है सो परलोकविषैं सुख करनेवाला होय है ॥14॥ इच्छाकारका प्रधान अर्थ आत्माका चाहना है अपने स्वरूप विषैं रुचि करना है सो याकूं जो नांही इष्ट करै है अन्य धर्मके सर्व आचरण करे है तौउ सिद्धि कहिये मोक्ष कं नहीं पावै है ताकं संसारविषै ही तिष्ठनेवाला कह्या।</p> | ||
<p>• श्रावक श्राविका व आर्यिका तीनोंकी विनयके लिए `इच्छाकार' शब्दका प्रयोग किया जाता है। - देखें [[ विनय#3 | विनय - 3]]।</p> | <p>• श्रावक श्राविका व आर्यिका तीनोंकी विनयके लिए `इच्छाकार' शब्दका प्रयोग किया जाता है। - देखें [[ विनय#3 | विनय - 3]]।</p> |
Revision as of 15:38, 14 August 2022
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 126,131 इट्ठे इच्छाकारो तहेव अवराधे।....।126। संजमणाणुवकरणे अण्णुवकरणे च जायणे अण्णे। जोगग्गहणादिसु अ इच्छाकारो दु कादव्वो ॥131॥
= सम्यग्दर्शनादि शुद्ध परिणाम व व्रतादिक शुभपरिणामोंमें हर्ष होना अपनी इच्छासे प्रवर्तना वह इच्छाकार है।...॥126॥ संयमके पीछी आदि उपकरणोंमें तथा श्रुतज्ञानके पुस्तकादि उपकरणोंमें और अन्य भी तप आदिके कमंडलु आहारादि उपकरणोंमें, औषधिमें, उष्णकालादिमें, आतापनादि योगोंमें इच्छाकार करना अर्थात् मनको प्रवर्ताना ॥131॥
सूत्रपाहुड़ 14-15 इच्छायार महत्थं सुत्तठिओ जो हु छंडए कम्मं। ठाणे ट्ठियसम्मत्तं परलोयसुहंकरो होइ ॥14॥ अह पुण अप्पा णिच्छदि धम्माइं करेदि निरवसेसाइं। तह वि ण पावदि सिद्धिं संसारत्थो पुणो भणिदो ॥15॥
= जो पुरुष जिन सूत्र विषैं तिष्ठता संता इच्छाकार शब्दका महान् अर्थ ताहि जानै है, बहुरि स्थान जो श्रावकके भेद रूप प्रतिमा तिनिमैं तिष्ठस्या सम्यक्त्व सहित वर्तता आरंभ आदि कर्मनिकूं छोडै है सो परलोकविषैं सुख करनेवाला होय है ॥14॥ इच्छाकारका प्रधान अर्थ आत्माका चाहना है अपने स्वरूप विषैं रुचि करना है सो याकूं जो नांही इष्ट करै है अन्य धर्मके सर्व आचरण करे है तौउ सिद्धि कहिये मोक्ष कं नहीं पावै है ताकं संसारविषै ही तिष्ठनेवाला कह्या।
• श्रावक श्राविका व आर्यिका तीनोंकी विनयके लिए `इच्छाकार' शब्दका प्रयोग किया जाता है। - देखें विनय - 3।