कनकावली: Difference between revisions
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<li class="HindiText"> (<span class="GRef"> हरिवंशपुराण/34/74-75 </span>) समय–522 दिन; उपवास = 434; पारणा =88। यंत्र-1,2,9 बार 3./1, वृद्धिक्रम से 1 से लेकर 16 तक, 34 बार 3, एक हानिक्रम से 16 से लेकर 1 तक, 9 बार 3,2,1।<br /> | <li class="HindiText"> (<span class="GRef"> हरिवंशपुराण/34/74-75 </span>) समय–522 दिन; उपवास = 434; पारणा =88। यंत्र-1,2,9 बार 3./1, वृद्धिक्रम से 1 से लेकर 16 तक, 34 बार 3, एक हानिक्रम से 16 से लेकर 1 तक, 9 बार 3,2,1।<br /> | ||
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<p id="1"> (1) कनकाभ नगर के राजा कनक और उसकी रानी कनकश्री की पुत्री । इसका विवाह माल्यवान् से हुआ था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 6. 567 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) कनकाभ नगर के राजा कनक और उसकी रानी कनकश्री की पुत्री । इसका विवाह माल्यवान् से हुआ था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 6. 567 </span></p> | ||
<p id="2">(2) किंसूर्य नामक विद्याधर की भार्या । यह काचनपुर नगर की उत्तरदिशा मे इंद्र द्वारा नियुक्त लोकपाल कुवेर की जननी थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.112-113 </span></p> | <p id="2">(2) किंसूर्य नामक विद्याधर की भार्या । यह काचनपुर नगर की उत्तरदिशा मे इंद्र द्वारा नियुक्त लोकपाल कुवेर की जननी थी । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.112-113 </span></p> | ||
<p id="3">(3) एक व्रत । इसमें चार सौ चौतीस उपवास और अठासी पारिणाएँ की जाती है । कुछ समय एक वर्ष पाँच मास और बारह दिन लगता है । इसमें क्रमश एक उपवास, एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, पश्चात् तीन-तीन उपवासों के बाद एक पारणा ऐसा नौ बार करने के पश्चात् एक से सोलह संख्या तक के उपवास और पारणाएँ, इसके बाद चौतीस बार तीन-तीन उपवासों के बाद पारणा, पश्चात सोलह से लेकर एक तक जितनी संख्या हो उतने उपवास और उनके बाद पारणाएँ, तदुपरांत नौ बार तीन-तीन लगातार उपवास और हर तीन उपवास के बाद एक पारणा, इसके बाद दो उपवास एक पारणा और एक उपवास इस प्रकार चार सौ चौतीस उपवास किये जाते हैं । लौकांतिक देवपद, प्राणत आदि स्वर्ग की प्राप्ति इस व्रत का फल है । <span class="GRef"> महापुराण 7.39,71.395, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34. 74-77 </span></p> | <p id="3">(3) एक व्रत । इसमें चार सौ चौतीस उपवास और अठासी पारिणाएँ की जाती है । कुछ समय एक वर्ष पाँच मास और बारह दिन लगता है । इसमें क्रमश एक उपवास, एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, पश्चात् तीन-तीन उपवासों के बाद एक पारणा ऐसा नौ बार करने के पश्चात् एक से सोलह संख्या तक के उपवास और पारणाएँ, इसके बाद चौतीस बार तीन-तीन उपवासों के बाद पारणा, पश्चात सोलह से लेकर एक तक जितनी संख्या हो उतने उपवास और उनके बाद पारणाएँ, तदुपरांत नौ बार तीन-तीन लगातार उपवास और हर तीन उपवास के बाद एक पारणा, इसके बाद दो उपवास एक पारणा और एक उपवास इस प्रकार चार सौ चौतीस उपवास किये जाते हैं । लौकांतिक देवपद, प्राणत आदि स्वर्ग की प्राप्ति इस व्रत का फल है । <span class="GRef"> महापुराण 7.39,71.395, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34. 74-77 </span></p> | ||
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Revision as of 16:52, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- ( हरिवंशपुराण/34/74-75 ) समय–522 दिन; उपवास = 434; पारणा =88। यंत्र-1,2,9 बार 3./1, वृद्धिक्रम से 1 से लेकर 16 तक, 34 बार 3, एक हानिक्रम से 16 से लेकर 1 तक, 9 बार 3,2,1।
विधि–उपरोक्त यंत्र के अनुसार एक-एक बार में इतने-इतने उपवास करे। प्रत्येक अंतराल में एक पारणा करे। नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे। यह बृहद् विधि है। (व्रत विधान संग्रह/.78)। - समय–एक वर्ष। उपवास 72। विधि–एक वर्ष तक बराबर प्रतिमास की शु. 1,5,10 तथा कृ. 2,6,12 इन 6 तिथियों में उपवास करे। नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे। (व्रत-विधान संग्रह/78) (किशन सिंह/क्रियाकोश)।
पुराणकोष से
(1) कनकाभ नगर के राजा कनक और उसकी रानी कनकश्री की पुत्री । इसका विवाह माल्यवान् से हुआ था । पद्मपुराण 6. 567
(2) किंसूर्य नामक विद्याधर की भार्या । यह काचनपुर नगर की उत्तरदिशा मे इंद्र द्वारा नियुक्त लोकपाल कुवेर की जननी थी । पद्मपुराण 7.112-113
(3) एक व्रत । इसमें चार सौ चौतीस उपवास और अठासी पारिणाएँ की जाती है । कुछ समय एक वर्ष पाँच मास और बारह दिन लगता है । इसमें क्रमश एक उपवास, एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, पश्चात् तीन-तीन उपवासों के बाद एक पारणा ऐसा नौ बार करने के पश्चात् एक से सोलह संख्या तक के उपवास और पारणाएँ, इसके बाद चौतीस बार तीन-तीन उपवासों के बाद पारणा, पश्चात सोलह से लेकर एक तक जितनी संख्या हो उतने उपवास और उनके बाद पारणाएँ, तदुपरांत नौ बार तीन-तीन लगातार उपवास और हर तीन उपवास के बाद एक पारणा, इसके बाद दो उपवास एक पारणा और एक उपवास इस प्रकार चार सौ चौतीस उपवास किये जाते हैं । लौकांतिक देवपद, प्राणत आदि स्वर्ग की प्राप्ति इस व्रत का फल है । महापुराण 7.39,71.395, हरिवंशपुराण 34. 74-77