कीर्तिधर: Difference between revisions
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<li> <span class="GRef"> पद्मपुराण/ </span>मू./123/166 के आधार पर; <span class="GRef"> पद्मपुराण/ </span>प्र.21/पं॰ पन्नालाल—बड़े प्राचीन आचार्य हुए हैं। कृति–रामकथा (पद्यचरित)। इसी को आधार करके रविषेणाचार्य ने पद्मपुराण की और स्वयंभू कवि ने पउमचरिउ की रचना की। समय–ई॰ 600 लगभग। </li> | <li> <span class="GRef"> पद्मपुराण/ </span>मू./123/166 के आधार पर; <span class="GRef"> पद्मपुराण/ </span>प्र.21/पं॰ पन्नालाल—बड़े प्राचीन आचार्य हुए हैं। कृति–रामकथा (पद्यचरित)। इसी को आधार करके रविषेणाचार्य ने पद्मपुराण की और स्वयंभू कवि ने पउमचरिउ की रचना की। समय–ई॰ 600 लगभग। </li> | ||
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<p id="1"> (1) एक महामुनि । ये शिवमंदिरनगर के राजा कनकपुंख और रानी जयदेवी के पुत्र तथा दमितारि के पिता थे । प्रभाकरी नगरी के राजा स्तिमितसागर के पुत्र अपराजित और अनंदवीर्य जिन्होंने दमितारि को मारा था, इन्हीं से दीक्षित हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 62. 412-414, 483-484, 487-489, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.277 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) एक महामुनि । ये शिवमंदिरनगर के राजा कनकपुंख और रानी जयदेवी के पुत्र तथा दमितारि के पिता थे । प्रभाकरी नगरी के राजा स्तिमितसागर के पुत्र अपराजित और अनंदवीर्य जिन्होंने दमितारि को मारा था, इन्हीं से दीक्षित हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 62. 412-414, 483-484, 487-489, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.277 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजा पुरंदर और उसकी रानी पृथिवीमति के पुत्र । इनका विवाह कौशल देश के राजा की पुत्री सहदेवी से हुआ था । सूर्यग्रहण को देखकर ये संसार से विरक्त हो गये थे । पुत्र के उत्पन्न होते ही ये दीक्षित हो गये । <span class="GRef"> पद्मपुराण 21. 140-165 </span>एक समय गृहपंक्ति के क्रम से प्राप्त अपने पूर्व घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करते देख इनकी गृहस्थावस्था की पत्नी सहदेवी ने इन्हें घर से बाहर निकलवा दिया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 22.1-13 </span>धाय वसंतलता से माँ के कृत्य को सुनकर सुकोशल अपनी पत्नी विचित्रमाला के गर्भ में स्थित पुत्र को राज्य देकर (यदि गर्भ में पुत्र है तो) इनसे ही दीक्षित हो गया । सहदेवी आर्त्तध्यान से मरकर तिर्यंच योनि में उत्पन्न हुई । चातुर्मासोपवास का नियम पूर्ण कर पारणा के निमित्त पिता-पुत्र दोनों नगर जाने के लिए उद्यत हुए ही थे कि सहदेवी के जीव व्याघ्री ने सुकोशल के शरीर को चीर डाला, पैर की ओर से उन्हें खाती रही और दोनों—‘‘यदि इस उपसर्ग से बचे तो आहार-जल ग्रहण करेंगे अन्यथा नहीं’’ इस प्रतिज्ञा का निर्वाह करते हुए कायोत्सर्ग से खड़े रहे, इन्होंने इस व्याघ्री को संबोधा था जिसके फलस्वरूप संन्यास ग्रहण कर व्याघ्री स्वर्ग गयी और इन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 22.31-49, 84-98 </span></p> | <p id="2">(2) राजा पुरंदर और उसकी रानी पृथिवीमति के पुत्र । इनका विवाह कौशल देश के राजा की पुत्री सहदेवी से हुआ था । सूर्यग्रहण को देखकर ये संसार से विरक्त हो गये थे । पुत्र के उत्पन्न होते ही ये दीक्षित हो गये । <span class="GRef"> पद्मपुराण 21. 140-165 </span>एक समय गृहपंक्ति के क्रम से प्राप्त अपने पूर्व घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करते देख इनकी गृहस्थावस्था की पत्नी सहदेवी ने इन्हें घर से बाहर निकलवा दिया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 22.1-13 </span>धाय वसंतलता से माँ के कृत्य को सुनकर सुकोशल अपनी पत्नी विचित्रमाला के गर्भ में स्थित पुत्र को राज्य देकर (यदि गर्भ में पुत्र है तो) इनसे ही दीक्षित हो गया । सहदेवी आर्त्तध्यान से मरकर तिर्यंच योनि में उत्पन्न हुई । चातुर्मासोपवास का नियम पूर्ण कर पारणा के निमित्त पिता-पुत्र दोनों नगर जाने के लिए उद्यत हुए ही थे कि सहदेवी के जीव व्याघ्री ने सुकोशल के शरीर को चीर डाला, पैर की ओर से उन्हें खाती रही और दोनों—‘‘यदि इस उपसर्ग से बचे तो आहार-जल ग्रहण करेंगे अन्यथा नहीं’’ इस प्रतिज्ञा का निर्वाह करते हुए कायोत्सर्ग से खड़े रहे, इन्होंने इस व्याघ्री को संबोधा था जिसके फलस्वरूप संन्यास ग्रहण कर व्याघ्री स्वर्ग गयी और इन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 22.31-49, 84-98 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- पद्मपुराण/ मू./123/166 के आधार पर; पद्मपुराण/ प्र.21/पं॰ पन्नालाल—बड़े प्राचीन आचार्य हुए हैं। कृति–रामकथा (पद्यचरित)। इसी को आधार करके रविषेणाचार्य ने पद्मपुराण की और स्वयंभू कवि ने पउमचरिउ की रचना की। समय–ई॰ 600 लगभग।
- पद्मपुराण/21 श्लोक ‘‘सुकौशल स्वामी के पिता थे। पुत्र सुकौशल के उत्पन्न होते ही दीक्षा धारण की (157−165) तदनंतर स्त्री ने शेरनी बनकर पूर्व वैर से खाया, परंतु आपने उपसर्ग को साम्य से जीत मुक्ति प्राप्त की। (22/98)।
पुराणकोष से
(1) एक महामुनि । ये शिवमंदिरनगर के राजा कनकपुंख और रानी जयदेवी के पुत्र तथा दमितारि के पिता थे । प्रभाकरी नगरी के राजा स्तिमितसागर के पुत्र अपराजित और अनंदवीर्य जिन्होंने दमितारि को मारा था, इन्हीं से दीक्षित हुए थे । महापुराण 62. 412-414, 483-484, 487-489, पांडवपुराण 4.277
(2) राजा पुरंदर और उसकी रानी पृथिवीमति के पुत्र । इनका विवाह कौशल देश के राजा की पुत्री सहदेवी से हुआ था । सूर्यग्रहण को देखकर ये संसार से विरक्त हो गये थे । पुत्र के उत्पन्न होते ही ये दीक्षित हो गये । पद्मपुराण 21. 140-165 एक समय गृहपंक्ति के क्रम से प्राप्त अपने पूर्व घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करते देख इनकी गृहस्थावस्था की पत्नी सहदेवी ने इन्हें घर से बाहर निकलवा दिया था । पद्मपुराण 22.1-13 धाय वसंतलता से माँ के कृत्य को सुनकर सुकोशल अपनी पत्नी विचित्रमाला के गर्भ में स्थित पुत्र को राज्य देकर (यदि गर्भ में पुत्र है तो) इनसे ही दीक्षित हो गया । सहदेवी आर्त्तध्यान से मरकर तिर्यंच योनि में उत्पन्न हुई । चातुर्मासोपवास का नियम पूर्ण कर पारणा के निमित्त पिता-पुत्र दोनों नगर जाने के लिए उद्यत हुए ही थे कि सहदेवी के जीव व्याघ्री ने सुकोशल के शरीर को चीर डाला, पैर की ओर से उन्हें खाती रही और दोनों—‘‘यदि इस उपसर्ग से बचे तो आहार-जल ग्रहण करेंगे अन्यथा नहीं’’ इस प्रतिज्ञा का निर्वाह करते हुए कायोत्सर्ग से खड़े रहे, इन्होंने इस व्याघ्री को संबोधा था जिसके फलस्वरूप संन्यास ग्रहण कर व्याघ्री स्वर्ग गयी और इन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था । पद्मपुराण 22.31-49, 84-98