क्षांति: Difference between revisions
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सं.स्तो./16/39 <span class="SanskritText">क्षांति: क्षमा।</span> <span class="HindiText">क्षमा व शांति एकार्थवाची हैं। </span><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/6/12/331/5 </span><span class="SanskritText">क्रोधादिनिवृत्ति: क्षांति:।</span>=<span class="HindiText">क्रोधादि दोषों का निराकरण करना क्षांति है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/6/12/9/523/1 </span>); (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/802/980/14 </span>)। </span> | सं.स्तो./16/39 <span class="SanskritText">क्षांति: क्षमा।</span> <span class="HindiText">क्षमा व शांति एकार्थवाची हैं। </span><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/6/12/331/5 </span><span class="SanskritText">क्रोधादिनिवृत्ति: क्षांति:।</span>=<span class="HindiText">क्रोधादि दोषों का निराकरण करना क्षांति है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/6/12/9/523/1 </span>); (<span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/802/980/14 </span>)। </span> | ||
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<p id="1"> (1) इस नान की एक आर्यिका । <span class="GRef"> महापुराण 72.249 </span>देखें [[ क्षांता ]]</p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) इस नान की एक आर्यिका । <span class="GRef"> महापुराण 72.249 </span>देखें [[ क्षांता ]]</p> | ||
<p id="2">(2) क्षलाभाव-क्रोध के कारण उपस्थित होने पर भी क्रोध का न आना । <span class="GRef"> पांडवपुराण 23.64 </span></p> | <p id="2">(2) क्षलाभाव-क्रोध के कारण उपस्थित होने पर भी क्रोध का न आना । <span class="GRef"> पांडवपुराण 23.64 </span></p> | ||
<p id="3">(3) सातावेदनीय का एक आस्रव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.95 </span></p> | <p id="3">(3) सातावेदनीय का एक आस्रव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.95 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
सं.स्तो./16/39 क्षांति: क्षमा। क्षमा व शांति एकार्थवाची हैं। सर्वार्थसिद्धि/6/12/331/5 क्रोधादिनिवृत्ति: क्षांति:।=क्रोधादि दोषों का निराकरण करना क्षांति है। ( राजवार्तिक/6/12/9/523/1 ); ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/802/980/14 )।
पुराणकोष से
(1) इस नान की एक आर्यिका । महापुराण 72.249 देखें क्षांता
(2) क्षलाभाव-क्रोध के कारण उपस्थित होने पर भी क्रोध का न आना । पांडवपुराण 23.64
(3) सातावेदनीय का एक आस्रव । हरिवंशपुराण 58.95