निगमन: Difference between revisions
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न्या.सू/भाष्य/1/1/39/38/12 <span class="SanskritText">उदाहरणस्थयोर्धर्मयो: साध्यसाधनभावोपपत्तौ साध्ये विपरीतप्रसंगप्रतिषेधार्थं निगमनम् ।</span> =<span class="HindiText">हेतु पूर्वक पुन: प्रतिज्ञा या पक्ष का वचन कहना निगमन है। (<span class="GRef"> न्यायदीपिका/3/32/79/1 </span>)। साधनभूत का साध्यधर्म के साथ समान अधिकरण (एक आश्रय) होने का प्रतिपादन करना उपनय है। उदाहरण में जो दो धर्म हैं उनके साध्य साधनभाव सिद्ध होने में विपरीत प्रसंग के खंडन के लिए निगमन होता है। | <span class="GRef"> न्या.सू/भाष्य/1/1/39/38/12 </span> <span class="SanskritText">उदाहरणस्थयोर्धर्मयो: साध्यसाधनभावोपपत्तौ साध्ये विपरीतप्रसंगप्रतिषेधार्थं निगमनम् ।</span> =<span class="HindiText">हेतु पूर्वक पुन: प्रतिज्ञा या पक्ष का वचन कहना निगमन है। (<span class="GRef"> न्यायदीपिका/3/32/79/1 </span>)। साधनभूत का साध्यधर्म के साथ समान अधिकरण (एक आश्रय) होने का प्रतिपादन करना उपनय है। उदाहरण में जो दो धर्म हैं उनके साध्य साधनभाव सिद्ध होने में विपरीत प्रसंग के खंडन के लिए निगमन होता है। <br> | ||
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Revision as of 07:36, 16 August 2022
- निगमन का लक्षण
न्यायदर्शन सूत्र/ मू./1/1/39 हेत्वपदेशात्प्रतिज्ञाया: पुनर्वचनं निगमनम् ।
न्या.सू/भाष्य/1/1/39/38/12 उदाहरणस्थयोर्धर्मयो: साध्यसाधनभावोपपत्तौ साध्ये विपरीतप्रसंगप्रतिषेधार्थं निगमनम् । =हेतु पूर्वक पुन: प्रतिज्ञा या पक्ष का वचन कहना निगमन है। ( न्यायदीपिका/3/32/79/1 )। साधनभूत का साध्यधर्म के साथ समान अधिकरण (एक आश्रय) होने का प्रतिपादन करना उपनय है। उदाहरण में जो दो धर्म हैं उनके साध्य साधनभाव सिद्ध होने में विपरीत प्रसंग के खंडन के लिए निगमन होता है।
परीक्षामुख/3/51 प्रतिज्ञास्तु निगमनं।51। =प्रतिज्ञा का उपसंहार करना निगमन है।
न्यायदीपिका/3/72/111 साधनानुवादपुरस्सरं साध्यनियमवचनं निगमनम् । तस्मादग्निमानेवेति। =साधन को दुहराते हुए साध्य के निश्चयरूप वचन को निगमन कहते हैं। जैसे–धूमवाला होने से यह अग्निवाला ही है। - निगमनाभास का लक्षण
न्यायदीपिका/3/72/112 अनयोर्व्यत्ययेन कथनमनयोराभास:।=उपनय की जगह निगमन और निगमन की जगह उपनय का कथन करना उपनयाभास तथा निगमनाभास हैं।