पारिषद: Difference between revisions
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<p> वैमानिक देवों का एक वर्ग । ये देव सौधर्मेंद्र की सभा में उपस्थित रहते हैं । इनका इंद्र के साथ पीठमर्द (मित्र) जैसा संबंध होता है और ये इंद्रसभा के सदस्य होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 13.17-18, 22. 26, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.131-132 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> वैमानिक देवों का एक वर्ग । ये देव सौधर्मेंद्र की सभा में उपस्थित रहते हैं । इनका इंद्र के साथ पीठमर्द (मित्र) जैसा संबंध होता है और ये इंद्रसभा के सदस्य होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 13.17-18, 22. 26, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.131-132 </span></p> | ||
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Revision as of 16:55, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- पारिषद देवों का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/4/4/239/4 वयस्यपीठमर्दसदृशाः परिषदि भवाः पारिषदाः। = जो सभा में मित्र और प्रेमी जनों के समान होते हैं वे पारिषद कहलाते हैं। ( राजवार्तिक/4/4/4/212/26 ); ( महापुराण/22/26 )।
तिलोयपण्णत्ति/3/67 बाहिरमज्झब्भंतरतंडयसरिसा हवंति तिप्परिसा। 67। = राजा की बाह्य, मध्य और अभ्यंतर समिति के समान देवों में भी तीन प्रकार की परिषद् होती हैं। इन परिषदों में बैठने योग्य देव क्रमशः बाह्य पारिषद, मध्यम पारिषद और अभ्यंतर पारिषद कहलाते हैं। ( त्रिलोकसार/224 ); ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/270 )।
जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/271-382 सविदा चंदा य जदू परिसाणंतिण्णि होंति णामाणि। अब्भंतरमज्झिमबाहिरा य कमसो मुणेयव्वा। 271। बाहिर-परिसा णेया अइरुंदा णिट्ठुरा पयंडा य। बंठा उज्जुदसत्था अवसारं तत्थ घोसंति। 280। वेत्तलदागहियकरा मज्झिम आरूढवेसधारी य। कंचुइकद अंतेउरमहदरा बहुधा। 281। वव्वरिचिलादिखुज्जाकम्मंतियदासिचेडिवग्गो य। अंतेउराभिओगा करंति णाणाविधे वेसे। 282। = अभ्यंतर, मध्यम और बाह्य, इन तीन परिषदों के, क्रमशः समिता, चंदा व जतु ये तीन नाम जानना चाहिए। 271। (ति.सा./229) बाह्य पारिषद देव अत्यंत स्थूल, निष्ठुर, क्रोधी, अविवाहित और शस्त्रों से उद्युक्त जानना चाहिए। वे वहाँ ‘अपसर’ (दूर हटो) की घोषणा करते हैं। 280। वेत रूपी लता को हाथ में ग्रहण करनेवाले, आरूढ़ वेष के धारक तथा कंचुकी की पोषाक पहने हुए मध्यम (पारिषद) बहुधा अंतःपुर के महत्तर होते हैं। 281। वर्वरो, किराती, कुब्जा, कर्मांतिका, दासी और चेटी इनका समुदाय (अभ्यंतर पारिषद) नाना प्रकार के वेष में अंतःपुर के अभियोग को करता है। 282।
- भवनवासी आदि इंद्रों के परिवार में पारिषदों का प्रमाण- देखें भवनवासी आदि भेद ।
- कल्पवासी इंद्रों के पारिषदों की देवियों का प्रमाण
तिलोयपण्णत्ति/8/324-327 आदिमदो जुगलेसुं बम्हादिसु चउसु आणदचउक्केण पुह पुह सव्विंदाणं अब्भंतरपरिसदेवीओ। 324। पंचसयचउसयाणिं तिसया दोसयाणि एक्कसयं। पण्णासं पुव्वोदिदठाणेसुं मज्झिमपरिसाए देवीओ। 32॥ सत्तच्छपंचचउतियदुगएक्कसयाणि पुव्वठाणेसुं। सव्विदाणं होंति हु बाहिरपरिसाए देवीओ। 327। = आदि के दो युगल, ब्रह्मादिक चार युगल और आनतादिक चार में सब इंद्रों की अभ्यंतर पारिषद देवियाँ क्रमशः पृथक्-पृथक् 500, 400, 300, 200, 100, 50 और पच्चीस जाननी चाहिए। 324-325। पूर्वोक्त स्थानों में मध्यम पारिषद देवियाँ क्रम से 600, 500, 400, 300, 200, 100 और 50 हैं। 326। पूर्वोक्त स्थानों में सब इंद्रों के बाह्य पारिषद देवियाँ क्रम से 700, 600, 500, 400, 300, 200 और 100 हैं। 327।
पुराणकोष से
वैमानिक देवों का एक वर्ग । ये देव सौधर्मेंद्र की सभा में उपस्थित रहते हैं । इनका इंद्र के साथ पीठमर्द (मित्र) जैसा संबंध होता है और ये इंद्रसभा के सदस्य होते हैं । महापुराण 13.17-18, 22. 26, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.131-132