भामंडल: Difference between revisions
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<span class="GRef"> पद्मपुराण/ </span>सर्ग/श्लोक सीता का भाई था (26/121) पूर्व वैर से किसी देव ने जन्म लेते ही इसको चुराकर (26/121) आकाश से नीचे गिरा दिया (26/129)। बीच में ही किसी विद्याधर ने पकड़ लिया और इसका पोषण किया। (26/132)। युवा होने पर बहन सीता पर मुग्ध हो गया। (28/22) परंतु जाति-स्मरण होने पर अत्यंत पश्चात्ताप किया (30/38)। अंत में वज्रपात के गिरने से मर गया (111/12)। | <span class="GRef"> पद्मपुराण/ </span>सर्ग/श्लोक सीता का भाई था (26/121) पूर्व वैर से किसी देव ने जन्म लेते ही इसको चुराकर (26/121) आकाश से नीचे गिरा दिया (26/129)। बीच में ही किसी विद्याधर ने पकड़ लिया और इसका पोषण किया। (26/132)। युवा होने पर बहन सीता पर मुग्ध हो गया। (28/22) परंतु जाति-स्मरण होने पर अत्यंत पश्चात्ताप किया (30/38)। अंत में वज्रपात के गिरने से मर गया (111/12)। | ||
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<p id="1"> (1) अष्ट प्रातिहार्यों में एक प्रातिहार्य । यह भगवान् के दिव्य औदारिक शरीर से उत्पन्न होता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 15, 12-13, 19 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) अष्ट प्रातिहार्यों में एक प्रातिहार्य । यह भगवान् के दिव्य औदारिक शरीर से उत्पन्न होता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 15, 12-13, 19 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजा जनक और रानी विदेहा का सीता के साथ (युगल संतान के रूप में) उत्पन्न पुत्र । पूर्वभव के बेरी महाकाल असुर ने इसे जन्म लेते ही मारने के लिए विदेहा के पास से अपहरण किया था । पश्चात् विचारों में परिवर्तन आने से उसने दयार्द्र होकर इसे मारने का विचार त्यागा तथा इसे दैदीप्यमान किरणों वाले कुंडल पहिना कर और पर्णलब्धी-विद्या का इसने प्रवेश कराकर आकाश से सुखकर स्थान में छोड़ दिया था । आकाश से इसे गिरते हुए देखकर विद्याधर चंद्रगति ने बीच में ही रोक लिया था और रथनूपुर ले जाकर नगर में इसका जन्मोत्सव मनाया था । कुंडलों के किरण समूह से घिरे हुए होने से उसने इसका ‘‘भामंडल’’ नाम रखा था । यह सीता पर मुग्ध था । सीता को भामंडल की पत्नी बनाने के लिए चंद्रगति ने चपलवेग विद्याधर को भेजकर जनक को रथनूपुर बुलाया था और उनमें सीता की याचना को थी किंतु जनक ने अपने निश्चय के अनुसार सीता देने को स्वीकृति नहीं दी । यह सीता को पाने के लिए उसके स्वयंवर में भी गया था किंतु विदग्ध देश में अपने पूर्वभव के मनोहर नगर को देखते ही इसे जाति-स्मरण हुआ था । सचेत होने पर इसने अत्यंत पश्चाताप भी किया । पश्चात् सीता एवं परिजनों से मिलकर और मिथिला का राज्य कनक के लिए सौंपकर तथा माता-पिता को साथ लेकर यह अपने नगर लौट आया । इसका दूसरा नाम प्रभामंडल था युद्ध में मेघवाहन के नाग बाणों से छिदकर यह भूमि पर गिर गया था । लक्ष्मण की शक्ति दूर करने के लिए विशल्या को लेने यही गया था । लंका की विजय के बाद राम ने इसे रथनूपुर का राजा बनाया था । भोग-भोगते हुए इसके सैकड़ों वर्ष निकल गये किंतु यह दीक्षित न हो सका था । अचानक महल की सातवीं मंजिल के ऊपर मस्तिष्क पर वज्रपात होने से इसकी मृत्यु हुई । इसने और इसकी पत्नी मालिनी दोनों ने मिलकर वज्रांक और उसके अशोक तथा तिलक दोनों पुत्रों को मुनि अवस्था में आहार कराया था । इस दान के प्रभाव से मरकर यह मेरु पर्वत के दक्षिण में विद्यमान देवकुरु भोगभूमि में तीन पल्य की आयु का धारी आर्य (भोगभूमिज) हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 26.2, 121-148, 28.22, 117-125, 30-29-38, 167-169, 54.37, 60.98-103, 64.32, 88-41, 111.1-14, 123. 86-105 </span></p> | <p id="2">(2) राजा जनक और रानी विदेहा का सीता के साथ (युगल संतान के रूप में) उत्पन्न पुत्र । पूर्वभव के बेरी महाकाल असुर ने इसे जन्म लेते ही मारने के लिए विदेहा के पास से अपहरण किया था । पश्चात् विचारों में परिवर्तन आने से उसने दयार्द्र होकर इसे मारने का विचार त्यागा तथा इसे दैदीप्यमान किरणों वाले कुंडल पहिना कर और पर्णलब्धी-विद्या का इसने प्रवेश कराकर आकाश से सुखकर स्थान में छोड़ दिया था । आकाश से इसे गिरते हुए देखकर विद्याधर चंद्रगति ने बीच में ही रोक लिया था और रथनूपुर ले जाकर नगर में इसका जन्मोत्सव मनाया था । कुंडलों के किरण समूह से घिरे हुए होने से उसने इसका ‘‘भामंडल’’ नाम रखा था । यह सीता पर मुग्ध था । सीता को भामंडल की पत्नी बनाने के लिए चंद्रगति ने चपलवेग विद्याधर को भेजकर जनक को रथनूपुर बुलाया था और उनमें सीता की याचना को थी किंतु जनक ने अपने निश्चय के अनुसार सीता देने को स्वीकृति नहीं दी । यह सीता को पाने के लिए उसके स्वयंवर में भी गया था किंतु विदग्ध देश में अपने पूर्वभव के मनोहर नगर को देखते ही इसे जाति-स्मरण हुआ था । सचेत होने पर इसने अत्यंत पश्चाताप भी किया । पश्चात् सीता एवं परिजनों से मिलकर और मिथिला का राज्य कनक के लिए सौंपकर तथा माता-पिता को साथ लेकर यह अपने नगर लौट आया । इसका दूसरा नाम प्रभामंडल था युद्ध में मेघवाहन के नाग बाणों से छिदकर यह भूमि पर गिर गया था । लक्ष्मण की शक्ति दूर करने के लिए विशल्या को लेने यही गया था । लंका की विजय के बाद राम ने इसे रथनूपुर का राजा बनाया था । भोग-भोगते हुए इसके सैकड़ों वर्ष निकल गये किंतु यह दीक्षित न हो सका था । अचानक महल की सातवीं मंजिल के ऊपर मस्तिष्क पर वज्रपात होने से इसकी मृत्यु हुई । इसने और इसकी पत्नी मालिनी दोनों ने मिलकर वज्रांक और उसके अशोक तथा तिलक दोनों पुत्रों को मुनि अवस्था में आहार कराया था । इस दान के प्रभाव से मरकर यह मेरु पर्वत के दक्षिण में विद्यमान देवकुरु भोगभूमि में तीन पल्य की आयु का धारी आर्य (भोगभूमिज) हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 26.2, 121-148, 28.22, 117-125, 30-29-38, 167-169, 54.37, 60.98-103, 64.32, 88-41, 111.1-14, 123. 86-105 </span></p> | ||
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Revision as of 16:55, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
पद्मपुराण/ सर्ग/श्लोक सीता का भाई था (26/121) पूर्व वैर से किसी देव ने जन्म लेते ही इसको चुराकर (26/121) आकाश से नीचे गिरा दिया (26/129)। बीच में ही किसी विद्याधर ने पकड़ लिया और इसका पोषण किया। (26/132)। युवा होने पर बहन सीता पर मुग्ध हो गया। (28/22) परंतु जाति-स्मरण होने पर अत्यंत पश्चात्ताप किया (30/38)। अंत में वज्रपात के गिरने से मर गया (111/12)।
पुराणकोष से
(1) अष्ट प्रातिहार्यों में एक प्रातिहार्य । यह भगवान् के दिव्य औदारिक शरीर से उत्पन्न होता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 15, 12-13, 19
(2) राजा जनक और रानी विदेहा का सीता के साथ (युगल संतान के रूप में) उत्पन्न पुत्र । पूर्वभव के बेरी महाकाल असुर ने इसे जन्म लेते ही मारने के लिए विदेहा के पास से अपहरण किया था । पश्चात् विचारों में परिवर्तन आने से उसने दयार्द्र होकर इसे मारने का विचार त्यागा तथा इसे दैदीप्यमान किरणों वाले कुंडल पहिना कर और पर्णलब्धी-विद्या का इसने प्रवेश कराकर आकाश से सुखकर स्थान में छोड़ दिया था । आकाश से इसे गिरते हुए देखकर विद्याधर चंद्रगति ने बीच में ही रोक लिया था और रथनूपुर ले जाकर नगर में इसका जन्मोत्सव मनाया था । कुंडलों के किरण समूह से घिरे हुए होने से उसने इसका ‘‘भामंडल’’ नाम रखा था । यह सीता पर मुग्ध था । सीता को भामंडल की पत्नी बनाने के लिए चंद्रगति ने चपलवेग विद्याधर को भेजकर जनक को रथनूपुर बुलाया था और उनमें सीता की याचना को थी किंतु जनक ने अपने निश्चय के अनुसार सीता देने को स्वीकृति नहीं दी । यह सीता को पाने के लिए उसके स्वयंवर में भी गया था किंतु विदग्ध देश में अपने पूर्वभव के मनोहर नगर को देखते ही इसे जाति-स्मरण हुआ था । सचेत होने पर इसने अत्यंत पश्चाताप भी किया । पश्चात् सीता एवं परिजनों से मिलकर और मिथिला का राज्य कनक के लिए सौंपकर तथा माता-पिता को साथ लेकर यह अपने नगर लौट आया । इसका दूसरा नाम प्रभामंडल था युद्ध में मेघवाहन के नाग बाणों से छिदकर यह भूमि पर गिर गया था । लक्ष्मण की शक्ति दूर करने के लिए विशल्या को लेने यही गया था । लंका की विजय के बाद राम ने इसे रथनूपुर का राजा बनाया था । भोग-भोगते हुए इसके सैकड़ों वर्ष निकल गये किंतु यह दीक्षित न हो सका था । अचानक महल की सातवीं मंजिल के ऊपर मस्तिष्क पर वज्रपात होने से इसकी मृत्यु हुई । इसने और इसकी पत्नी मालिनी दोनों ने मिलकर वज्रांक और उसके अशोक तथा तिलक दोनों पुत्रों को मुनि अवस्था में आहार कराया था । इस दान के प्रभाव से मरकर यह मेरु पर्वत के दक्षिण में विद्यमान देवकुरु भोगभूमि में तीन पल्य की आयु का धारी आर्य (भोगभूमिज) हुआ । पद्मपुराण 26.2, 121-148, 28.22, 117-125, 30-29-38, 167-169, 54.37, 60.98-103, 64.32, 88-41, 111.1-14, 123. 86-105