मात्सर्य: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/6/10/327/12 </span><span class="SanskritText">कुतश्चित्कारणाद् भावितमपि विज्ञानं दानार्हमपि यतो न दीयते तन्मात्सर्यम्। </span>= <span class="HindiText">विज्ञान का अभ्यास किया है, वह देने योग्य भी है तो भी जिस कारण से वह नहीं दिया जाता वह मात्सर्य है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/6/10/3/517/15 </span>)।</span><br /> | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/6/10/327/12 </span><span class="SanskritText">कुतश्चित्कारणाद् भावितमपि विज्ञानं दानार्हमपि यतो न दीयते तन्मात्सर्यम्। </span>= <span class="HindiText">विज्ञान का अभ्यास किया है, वह देने योग्य भी है तो भी जिस कारण से वह नहीं दिया जाता वह मात्सर्य है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/6/10/3/517/15 </span>)।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/36/372/1 </span><span class="SanskritText">प्रयच्छतोऽप्यादराभावोऽन्यदातृगुणासहनं वा मात्सर्यम्।</span> = <span class="HindiText">दान करते हुए भी आदर का न होना या दूसरे दाता के गुणों को न सह सकना मात्सर्य है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/7/36/4/558/26 </span>)। </span></p> | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/36/372/1 </span><span class="SanskritText">प्रयच्छतोऽप्यादराभावोऽन्यदातृगुणासहनं वा मात्सर्यम्।</span> = <span class="HindiText">दान करते हुए भी आदर का न होना या दूसरे दाता के गुणों को न सह सकना मात्सर्य है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/7/36/4/558/26 </span>)। </span></p> | ||
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<p> अतिथिसंविभाग व्रत का चौथा अतीचार-अन्य दाता के गुणों को सहन नहीं करना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.183 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> अतिथिसंविभाग व्रत का चौथा अतीचार-अन्य दाता के गुणों को सहन नहीं करना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.183 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/6/10/327/12 कुतश्चित्कारणाद् भावितमपि विज्ञानं दानार्हमपि यतो न दीयते तन्मात्सर्यम्। = विज्ञान का अभ्यास किया है, वह देने योग्य भी है तो भी जिस कारण से वह नहीं दिया जाता वह मात्सर्य है। ( राजवार्तिक/6/10/3/517/15 )।
सर्वार्थसिद्धि/7/36/372/1 प्रयच्छतोऽप्यादराभावोऽन्यदातृगुणासहनं वा मात्सर्यम्। = दान करते हुए भी आदर का न होना या दूसरे दाता के गुणों को न सह सकना मात्सर्य है। ( राजवार्तिक/7/36/4/558/26 )।
पुराणकोष से
अतिथिसंविभाग व्रत का चौथा अतीचार-अन्य दाता के गुणों को सहन नहीं करना । हरिवंशपुराण 58.183