लोकसेन: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
पंचस्तूपसंघ की गुर्वावली के अनुसार (देखें [[ इतिहास ]]) आप आचार्य गुणभद्र के प्रमुख शिष्य थे। राजा अकालवर्ष के समकालीन राजा लोकादित्य की राजधानी बंकापुर में रहकर, आचार्य गुणभद्र रचित अधूरे उत्तर पुराण को श्रावण कृ 5 श. 820 में पूरा किया था। तदनुसार इनका समय−ई. 897−930 (जीवंधरचंपू प्र./8/A. N. Up.); (<span class="GRef"> महापुराण/ </span>प्र. 35/पं. पन्नालाल)−देखें [[ इतिहास ]]/7/7। | पंचस्तूपसंघ की गुर्वावली के अनुसार (देखें [[ इतिहास ]]) आप आचार्य गुणभद्र के प्रमुख शिष्य थे। राजा अकालवर्ष के समकालीन राजा लोकादित्य की राजधानी बंकापुर में रहकर, आचार्य गुणभद्र रचित अधूरे उत्तर पुराण को श्रावण कृ 5 श. 820 में पूरा किया था। तदनुसार इनका समय−ई. 897−930 (जीवंधरचंपू प्र./8/A. N. Up.); (<span class="GRef"> महापुराण/ </span>प्र. 35/पं. पन्नालाल)−देखें [[ इतिहास ]]/7/7। | ||
Line 12: | Line 13: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> शास्त्रों के जानकार अखंड चारित्रधारी एक मुनि । ये आचार्य गुणभद्र के प्रमुख शिष्य थे । इन्होंने उत्तरपुराण की रचना में सहायता देकर अपनी उत्कष्ट गुरु-भक्ति प्रकट की थी । <span class="GRef"> महापुराण </span>प्रशस्ति पद्य 28</p> | <div class="HindiText"> <p> शास्त्रों के जानकार अखंड चारित्रधारी एक मुनि । ये आचार्य गुणभद्र के प्रमुख शिष्य थे । इन्होंने उत्तरपुराण की रचना में सहायता देकर अपनी उत्कष्ट गुरु-भक्ति प्रकट की थी । <span class="GRef"> महापुराण </span>प्रशस्ति पद्य 28</p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Revision as of 16:57, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
पंचस्तूपसंघ की गुर्वावली के अनुसार (देखें इतिहास ) आप आचार्य गुणभद्र के प्रमुख शिष्य थे। राजा अकालवर्ष के समकालीन राजा लोकादित्य की राजधानी बंकापुर में रहकर, आचार्य गुणभद्र रचित अधूरे उत्तर पुराण को श्रावण कृ 5 श. 820 में पूरा किया था। तदनुसार इनका समय−ई. 897−930 (जीवंधरचंपू प्र./8/A. N. Up.); ( महापुराण/ प्र. 35/पं. पन्नालाल)−देखें इतिहास /7/7।
पुराणकोष से
शास्त्रों के जानकार अखंड चारित्रधारी एक मुनि । ये आचार्य गुणभद्र के प्रमुख शिष्य थे । इन्होंने उत्तरपुराण की रचना में सहायता देकर अपनी उत्कष्ट गुरु-भक्ति प्रकट की थी । महापुराण प्रशस्ति पद्य 28