वरवीर: Difference between revisions
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<span class="GRef"> महापुराण/ </span>सर्ग/श्लोक - ‘पूर्व भव सं. 7 में लोलुप नामक हलवाई था । (8/234) । पूर्व भव सं. 6 में नकुल हुआ । (8/241) । पूर्वभव सं. 5 में उत्तरकुरु में मनुष्य हुआ । (9/90) । पूर्व भव सं. 4 में ऐशानस्वर्ग में मनोरथ नामक देव हुआ । (9/187) । पूर्व भव सं. 3 में प्रभंजन राजा का पुत्र प्रशांत मदन हुआ । (10/152) । पूर्व भव सं. 2 में अच्युत स्वर्ग में देव हुआ । (10/172) । पूर्व वाले भव में अपराजित स्वर्ग में अहमिंद्र हुआ । (11/10)। अथवा सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र हुआ । (11/160) और वर्तमान भव में वरवीर हुआ । (16/3) । जिसका अपरनाम जयसेन भी था । (47/376) । [युगपत् समस्त भवों के लिए देखें [[ ]](47/376-377)] । यह ॠषभदेव के पुत्र भरत का छोटा भाई था । (16/3) । भरत द्वारा राज्य माँगने पर दीक्षा ले लो । (34/126) । भरत के मुक्ति जाने के पश्चात् मोक्ष सिधारे । (47/399) । | <span class="GRef"> महापुराण/ </span>सर्ग/श्लोक - ‘पूर्व भव सं. 7 में लोलुप नामक हलवाई था । (8/234) । पूर्व भव सं. 6 में नकुल हुआ । (8/241) । पूर्वभव सं. 5 में उत्तरकुरु में मनुष्य हुआ । (9/90) । पूर्व भव सं. 4 में ऐशानस्वर्ग में मनोरथ नामक देव हुआ । (9/187) । पूर्व भव सं. 3 में प्रभंजन राजा का पुत्र प्रशांत मदन हुआ । (10/152) । पूर्व भव सं. 2 में अच्युत स्वर्ग में देव हुआ । (10/172) । पूर्व वाले भव में अपराजित स्वर्ग में अहमिंद्र हुआ । (11/10)। अथवा सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र हुआ । (11/160) और वर्तमान भव में वरवीर हुआ । (16/3) । जिसका अपरनाम जयसेन भी था । (47/376) । [युगपत् समस्त भवों के लिए देखें [[ ]](47/376-377)] । यह ॠषभदेव के पुत्र भरत का छोटा भाई था । (16/3) । भरत द्वारा राज्य माँगने पर दीक्षा ले लो । (34/126) । भरत के मुक्ति जाने के पश्चात् मोक्ष सिधारे । (47/399) । | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> वृषभदेव के पुत्र और भरतेश के छोटे भाई । ये चरम-शरीरी थे । इनका अपर नाम जयसेन था । भरतेश द्वारा राज्य पर अधिकार किये जाने से इन्होंने राज्य त्याग कर अपने पिता से दीक्षा ले ली थी । ये भरतेश के मुक्ति प्राप्त करने के पश्चात् मुक्त हुए । ये सातवें पूर्वभव में लोलुप हलवाई थे । छठे पूर्वभव में नकुल हुए । पांचवें पूर्वभव में उत्तरकुरु में भद्रपरिणामी आर्य हुए । चौथे पूर्वभव में ऐशान स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव, तीसरे पूर्वभव में राजा प्रभंजन के प्रशांतमदन नामक पुत्र, दूसरे पूर्वभव में अच्छत स्वर्ग में देय और प्रथम पूर्वभव में अहमिंद्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 8.234, 241, 9.90, 187, 10.152, 172, 11. 160, 16. 3-4, 34.126, 47. 376, 399 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> वृषभदेव के पुत्र और भरतेश के छोटे भाई । ये चरम-शरीरी थे । इनका अपर नाम जयसेन था । भरतेश द्वारा राज्य पर अधिकार किये जाने से इन्होंने राज्य त्याग कर अपने पिता से दीक्षा ले ली थी । ये भरतेश के मुक्ति प्राप्त करने के पश्चात् मुक्त हुए । ये सातवें पूर्वभव में लोलुप हलवाई थे । छठे पूर्वभव में नकुल हुए । पांचवें पूर्वभव में उत्तरकुरु में भद्रपरिणामी आर्य हुए । चौथे पूर्वभव में ऐशान स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव, तीसरे पूर्वभव में राजा प्रभंजन के प्रशांतमदन नामक पुत्र, दूसरे पूर्वभव में अच्छत स्वर्ग में देय और प्रथम पूर्वभव में अहमिंद्र हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 8.234, 241, 9.90, 187, 10.152, 172, 11. 160, 16. 3-4, 34.126, 47. 376, 399 </span></p> | ||
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Revision as of 16:57, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
महापुराण/ सर्ग/श्लोक - ‘पूर्व भव सं. 7 में लोलुप नामक हलवाई था । (8/234) । पूर्व भव सं. 6 में नकुल हुआ । (8/241) । पूर्वभव सं. 5 में उत्तरकुरु में मनुष्य हुआ । (9/90) । पूर्व भव सं. 4 में ऐशानस्वर्ग में मनोरथ नामक देव हुआ । (9/187) । पूर्व भव सं. 3 में प्रभंजन राजा का पुत्र प्रशांत मदन हुआ । (10/152) । पूर्व भव सं. 2 में अच्युत स्वर्ग में देव हुआ । (10/172) । पूर्व वाले भव में अपराजित स्वर्ग में अहमिंद्र हुआ । (11/10)। अथवा सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र हुआ । (11/160) और वर्तमान भव में वरवीर हुआ । (16/3) । जिसका अपरनाम जयसेन भी था । (47/376) । [युगपत् समस्त भवों के लिए देखें [[ ]](47/376-377)] । यह ॠषभदेव के पुत्र भरत का छोटा भाई था । (16/3) । भरत द्वारा राज्य माँगने पर दीक्षा ले लो । (34/126) । भरत के मुक्ति जाने के पश्चात् मोक्ष सिधारे । (47/399) ।
पुराणकोष से
वृषभदेव के पुत्र और भरतेश के छोटे भाई । ये चरम-शरीरी थे । इनका अपर नाम जयसेन था । भरतेश द्वारा राज्य पर अधिकार किये जाने से इन्होंने राज्य त्याग कर अपने पिता से दीक्षा ले ली थी । ये भरतेश के मुक्ति प्राप्त करने के पश्चात् मुक्त हुए । ये सातवें पूर्वभव में लोलुप हलवाई थे । छठे पूर्वभव में नकुल हुए । पांचवें पूर्वभव में उत्तरकुरु में भद्रपरिणामी आर्य हुए । चौथे पूर्वभव में ऐशान स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव, तीसरे पूर्वभव में राजा प्रभंजन के प्रशांतमदन नामक पुत्र, दूसरे पूर्वभव में अच्छत स्वर्ग में देय और प्रथम पूर्वभव में अहमिंद्र हुए थे । महापुराण 8.234, 241, 9.90, 187, 10.152, 172, 11. 160, 16. 3-4, 34.126, 47. 376, 399