विद्युद्द्रंष्ट: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
mNo edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ विद्युद्दृढ़ | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ विद्युद्राज | अगला पृष्ठ ]] | [[ विद्युद्राज | अगला पृष्ठ ]] | ||
Line 8: | Line 8: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: व]] | [[Category: व]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Revision as of 16:46, 7 September 2022
महापुराण/59/ श्लोक–पूर्व भव श्रीभूति, सर्प, चमर, कुर्कुट, सर्प, तृतीय नरक, सर्प, नरक, अनेक योनियों में भ्रमण, मृगशृंग। (313-315)। वर्तमान भव में विद्युद्द्रंष्ट नाम का विद्याधर हुआ, ध्यानस्थ मुनि संजयंतपर घोर उपसर्ग किया। मुनि को केवलज्ञान हो गया। धरणेंद्र ने क्रुद्ध होकर उसे सपरिवार समुद्र में डुबोना चाहा पर आदित्यप्रभ देव द्वारा बचा लिया गया। (116-132)।