वृषभसेन: Difference between revisions
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<span class="GRef"> महापुराण/ </span>सर्ग/श्लो.पूर्वभव नं. 7 में पूर्वविदेह में प्रीतिवर्धन राजा का सेनापति । (8/211); पूर्वभव नं. 6 में उत्तरकुरु में मनुष्य । (8/212) । पूर्वभव नं. 5 में ऐशान स्वर्ग में प्रभाकर नाम का देव । (8/214); पूर्वभव नं. 4 में अकंपनसेनिक । (8/216) । पूर्वभव नं. 3 में अधोग्रैवेयक में अहमिंद्र । (9/90, 92); पूर्वभव नं. 2 में राजा वज्रसेन का पुत्र ‘पीठ’ । (11/13) । पूर्वभव नं. 1 में सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र । (11/160) । वर्तमान भव में ॠषभदेव का पुत्र भरत का छोटा भाई । (16/2) । युगपत् सर्व भव-47/367-369 । पुरिमताल नगर का राजा था । भगवान् ॠषभदेव के प्रथम गणधर हुए । (24/171) । अंत में मोक्ष सिधारे । (47/399) । | <span class="GRef"> महापुराण/ </span>सर्ग/श्लो.पूर्वभव नं. 7 में पूर्वविदेह में प्रीतिवर्धन राजा का सेनापति । (8/211); पूर्वभव नं. 6 में उत्तरकुरु में मनुष्य । (8/212) । पूर्वभव नं. 5 में ऐशान स्वर्ग में प्रभाकर नाम का देव । (8/214); पूर्वभव नं. 4 में अकंपनसेनिक । (8/216) । पूर्वभव नं. 3 में अधोग्रैवेयक में अहमिंद्र । (9/90, 92); पूर्वभव नं. 2 में राजा वज्रसेन का पुत्र ‘पीठ’ । (11/13) । पूर्वभव नं. 1 में सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र । (11/160) । वर्तमान भव में ॠषभदेव का पुत्र भरत का छोटा भाई । (16/2) । युगपत् सर्व भव-47/367-369 । पुरिमताल नगर का राजा था । भगवान् ॠषभदेव के प्रथम गणधर हुए । (24/171) । अंत में मोक्ष सिधारे । (47/399) । | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1"> (1) तीर्थंकर वृषभदेव के पुत्र एवं पहले गणधर । वृषभदेव ने इन्हें गंधर्वशास्त्र पढ़ाया था । ये चार ज्ञान के धारी थे । सप्त ऋद्धियों से विभूषित थे । सातवें पूर्वभव में ये राजा प्रीतिवर्धन के मंत्री, छठे पूर्वभव में भागभूमि में आर्य, पांचवें में कनकप्रभ देव, चौथे में आनंद, तीसरे में अहमिंद्र, दूसरे में राजा वज्रसेन के पुत्र पीठ और प्रथम पूर्वभव में सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र थे । इस भव में ये चक्रवर्ती भरतेश के छोटे भाई हुए । इन्हें पुरिमताल नगर का राजा बनाया गया था । ये चरमशरीरी थे । इन्होंने वृषभदेव को केवलज्ञान प्रकट होने पर अन्य राजाओं के साथ उनकी वंदना की थी । उनसे संयम धारण करके उनके ही ये प्रथम गणधर भी हुए । आयु के अंत में कर्म नाश कर मुक्त हुए । <span class="GRef"> महापुराण 8.211-216, 9.90-92, 11.13, 160, 16. 2-4, 120, 24. 171-173, 47. 367-369, 369, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 4.32, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.23, 205, 12.55 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 40 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) तीर्थंकर वृषभदेव के पुत्र एवं पहले गणधर । वृषभदेव ने इन्हें गंधर्वशास्त्र पढ़ाया था । ये चार ज्ञान के धारी थे । सप्त ऋद्धियों से विभूषित थे । सातवें पूर्वभव में ये राजा प्रीतिवर्धन के मंत्री, छठे पूर्वभव में भागभूमि में आर्य, पांचवें में कनकप्रभ देव, चौथे में आनंद, तीसरे में अहमिंद्र, दूसरे में राजा वज्रसेन के पुत्र पीठ और प्रथम पूर्वभव में सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र थे । इस भव में ये चक्रवर्ती भरतेश के छोटे भाई हुए । इन्हें पुरिमताल नगर का राजा बनाया गया था । ये चरमशरीरी थे । इन्होंने वृषभदेव को केवलज्ञान प्रकट होने पर अन्य राजाओं के साथ उनकी वंदना की थी । उनसे संयम धारण करके उनके ही ये प्रथम गणधर भी हुए । आयु के अंत में कर्म नाश कर मुक्त हुए । <span class="GRef"> महापुराण 8.211-216, 9.90-92, 11.13, 160, 16. 2-4, 120, 24. 171-173, 47. 367-369, 369, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 4.32, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.23, 205, 12.55 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 40 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राजगृही का राजा । इसने तीर्थंकर मृनिसुव्रत को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 67.45 </span></p> | <p id="2">(2) राजगृही का राजा । इसने तीर्थंकर मृनिसुव्रत को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । <span class="GRef"> महापुराण 67.45 </span></p> | ||
<p id="3">(3) वत्स देश के कौशांबी नगर का एक सेठ । इसके मित्रवीर कर्मचारी ने अपने मित्र भीलराज से चंदना (चेटक की पुत्री) प्राप्त करके इसे ही सौंपी थी । भद्रा इसकी पत्नी थी । उसने चंदना के साथ अपने पति के अनुचित संबंध समझ कर पति के प्रवास काल में चंदना को सांकलों से बांध रखा था । यह चंदना की पुत्री के समान समझता था । प्रवास से लौटकर इसने चंदना को अपना पूर्ण सहयोग दिया था । इसका अपर नाम वृषभदत्त था । <span class="GRef"> महापुराण 75. 52-57, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 13. 84-88 </span></p> | <p id="3">(3) वत्स देश के कौशांबी नगर का एक सेठ । इसके मित्रवीर कर्मचारी ने अपने मित्र भीलराज से चंदना (चेटक की पुत्री) प्राप्त करके इसे ही सौंपी थी । भद्रा इसकी पत्नी थी । उसने चंदना के साथ अपने पति के अनुचित संबंध समझ कर पति के प्रवास काल में चंदना को सांकलों से बांध रखा था । यह चंदना की पुत्री के समान समझता था । प्रवास से लौटकर इसने चंदना को अपना पूर्ण सहयोग दिया था । इसका अपर नाम वृषभदत्त था । <span class="GRef"> महापुराण 75. 52-57, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 13. 84-88 </span></p> | ||
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Revision as of 16:57, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
महापुराण/ सर्ग/श्लो.पूर्वभव नं. 7 में पूर्वविदेह में प्रीतिवर्धन राजा का सेनापति । (8/211); पूर्वभव नं. 6 में उत्तरकुरु में मनुष्य । (8/212) । पूर्वभव नं. 5 में ऐशान स्वर्ग में प्रभाकर नाम का देव । (8/214); पूर्वभव नं. 4 में अकंपनसेनिक । (8/216) । पूर्वभव नं. 3 में अधोग्रैवेयक में अहमिंद्र । (9/90, 92); पूर्वभव नं. 2 में राजा वज्रसेन का पुत्र ‘पीठ’ । (11/13) । पूर्वभव नं. 1 में सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र । (11/160) । वर्तमान भव में ॠषभदेव का पुत्र भरत का छोटा भाई । (16/2) । युगपत् सर्व भव-47/367-369 । पुरिमताल नगर का राजा था । भगवान् ॠषभदेव के प्रथम गणधर हुए । (24/171) । अंत में मोक्ष सिधारे । (47/399) ।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर वृषभदेव के पुत्र एवं पहले गणधर । वृषभदेव ने इन्हें गंधर्वशास्त्र पढ़ाया था । ये चार ज्ञान के धारी थे । सप्त ऋद्धियों से विभूषित थे । सातवें पूर्वभव में ये राजा प्रीतिवर्धन के मंत्री, छठे पूर्वभव में भागभूमि में आर्य, पांचवें में कनकप्रभ देव, चौथे में आनंद, तीसरे में अहमिंद्र, दूसरे में राजा वज्रसेन के पुत्र पीठ और प्रथम पूर्वभव में सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र थे । इस भव में ये चक्रवर्ती भरतेश के छोटे भाई हुए । इन्हें पुरिमताल नगर का राजा बनाया गया था । ये चरमशरीरी थे । इन्होंने वृषभदेव को केवलज्ञान प्रकट होने पर अन्य राजाओं के साथ उनकी वंदना की थी । उनसे संयम धारण करके उनके ही ये प्रथम गणधर भी हुए । आयु के अंत में कर्म नाश कर मुक्त हुए । महापुराण 8.211-216, 9.90-92, 11.13, 160, 16. 2-4, 120, 24. 171-173, 47. 367-369, 369, पद्मपुराण 4.32, हरिवंशपुराण 9.23, 205, 12.55 वीरवर्द्धमान चरित्र 1. 40
(2) राजगृही का राजा । इसने तीर्थंकर मृनिसुव्रत को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 67.45
(3) वत्स देश के कौशांबी नगर का एक सेठ । इसके मित्रवीर कर्मचारी ने अपने मित्र भीलराज से चंदना (चेटक की पुत्री) प्राप्त करके इसे ही सौंपी थी । भद्रा इसकी पत्नी थी । उसने चंदना के साथ अपने पति के अनुचित संबंध समझ कर पति के प्रवास काल में चंदना को सांकलों से बांध रखा था । यह चंदना की पुत्री के समान समझता था । प्रवास से लौटकर इसने चंदना को अपना पूर्ण सहयोग दिया था । इसका अपर नाम वृषभदत्त था । महापुराण 75. 52-57, वीरवर्द्धमान चरित्र 13. 84-88