शिव: Difference between revisions
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<p id="1">(1) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.44, 25.74, 105 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.44, 25.74, 105 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राम का एक योद्धा । <span class="GRef"> पद्मपुराण 58.14, 17 </span></p> | <p id="2">(2) राम का एक योद्धा । <span class="GRef"> पद्मपुराण 58.14, 17 </span></p> | ||
<p id="3">(3) समवसरण के तीसरे कोट के दक्षिण द्वार का एक नाम । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.58 </span></p> | <p id="3">(3) समवसरण के तीसरे कोट के दक्षिण द्वार का एक नाम । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 57.58 </span></p> | ||
<p id="4">(4) लवणसमुद्र की दक्षिण दिशा में पाताल विवर के समीप स्थित उदक पर्वत का अधिष्ठाता देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.461 </span></p> | <p id="4">(4) लवणसमुद्र की दक्षिण दिशा में पाताल विवर के समीप स्थित उदक पर्वत का अधिष्ठाता देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.461 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
भूतकालीन तेरहवें तीर्थंकर - देखें तीर्थंकर - 5।
समाधिशतक/ टी.2/222/25 शिवं परमसौख्यं परम कल्याणं निर्वाणं चोच्यते। = परम कल्याण अथवा परम सौख्यमय निर्वाण को शिव कहते हैं।
समयसार / तात्पर्यवृत्ति/373-382/462/18 वीतरागसहजपरमानंदरूपं शिवशब्दवाच्यं सुखं = वीतराग परमानंद रूप सुख शिव शब्द का वाच्य है। ( परमात्मप्रकाश टीका/2/9 )।
द्रव्यसंग्रह टीका/14/47 पर उद्धृत-शिवं परमकल्याणं निर्वाणं ज्ञानमक्षयम् । प्राप्तं मुक्तिपदं येन स शिव: परिकीर्तित:।1। इति श्लोक कथितलक्षण: शिव:। = शिव यानी परम कल्याण निर्वाण एवं अक्षय ज्ञान रूप मुक्त पद को जिसने प्राप्त किया वह शिव कहलाता है।
भावपाहुड़ टीका/149/193/6 शिव: परमकल्याणभूत: शिवति लोकाग्रे गच्छतीति शिव:। = शिव: अर्थात् परम कल्याणभूत होता है, और लोक के अग्र भाग में जाता है वह शिव है।
पुराणकोष से
(1) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.44, 25.74, 105
(2) राम का एक योद्धा । पद्मपुराण 58.14, 17
(3) समवसरण के तीसरे कोट के दक्षिण द्वार का एक नाम । हरिवंशपुराण 57.58
(4) लवणसमुद्र की दक्षिण दिशा में पाताल विवर के समीप स्थित उदक पर्वत का अधिष्ठाता देव । हरिवंशपुराण 5.461