साधर्म्य समा: Difference between revisions
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<p class="SanskritText"><span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र | <p class="SanskritText"><span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र व भाष्य/4/1/2 </span> साधर्म्यवैधर्म्याभ्यामुपसंहारे तद्धर्मविपर्ययोपपत्ते: साधर्म्यवैधर्म्यसमौ।2।-निदर्शनं क्रियावानात्मा द्रव्यस्य क्रियाहेतुगुणयोगात् । द्रव्यं लोष्ट: क्रियाहेतुगुणयुक्त: क्रियावान् तथा चात्मा तस्मात्क्रियावानिति। एवं उपसंहृते: पर: साधर्म्येणैव प्रत्यवतिष्ठते निष्क्रिय आत्मा विभुनो द्रव्यस्य निष्क्रियत्वाद् विभु चाकाशं निष्क्रियं च तथा चात्मा तस्मान्निष्क्रिय इति।...विशेषहेत्वभावात्साधर्म्यसम: प्रतिषेधो भवति। विशेषहेत्वभावात्साधर्म्यसम: प्रतिषेधो भवति। अथ वैधर्म्यसम: क्रियाहेतुगुणयुक्तो लोष्ट: परिच्छिन्नो दृष्टो न च तथात्मा तस्मान्न लोष्टवत् क्रियावानिति।...विशेषहेत्वभावाद्वैधर्म्यसम:। वैधर्म्येण चोपसंहारे निष्क्रिय आत्मा विभुत्वात् क्रियावद् द्रव्यमविभु दृष्टं यथा लोष्टो न च तथात्मा तस्मान्निष्क्रिय इति वैधर्म्येण प्रत्यवस्थानं निष्क्रियं द्रव्यमाकाशं क्रियाहेतुगुणरहितं दृष्टं न तथात्मा तस्मान्न निष्क्रिय इति।...विशेषहेत्वभावाद्वैधर्म्यसम: क्रियावान् लोष्ट: क्रियाहेतुगुणयुक्तो दृष्ट: तथा चात्मा तस्मात् क्रियावानिति।-विशेष हेत्वभावात्साधर्म्यसम:।</p> | ||
<p class="HindiText">1. वादी द्वारा साधर्म्य की तरफ से हेतु का पक्ष में उपसंहार कर चुकने पर उस साधर्म्य के विपर्यय धर्म की उत्पत्ति करने से जो वहाँ दूषण उठाया जाता है वह <strong>साधर्म्यसम</strong> प्रतिषेध माना गया है। 2. और इसी तरह वादी द्वारा वैधर्म्य की तरफ से पक्ष में हेतु का उपसंहार कर चुकने पर पुन: प्रतिवाद द्वारा साध्य धर्म के विपर्यय की उपपत्ति हो जाने से वैधर्म्य या साधर्म्य की ओर से प्रत्यवस्थान दिया जाता है वह <strong>वैधर्म्यसमा</strong> जाति इष्ट की गयी है। 3. <strong>साधर्म्यसमा</strong> का उदाहरण-आत्मा क्रियावान् है क्योंकि यह एक द्रव्य है, और द्रव्य क्रिया हेतु गुण से युक्त होने के कारण क्रियावान् हुआ करता है। जैसे लोष्ट नाम का द्रव्य क्रियाहेतु गुण से युक्त होने के कारण क्रियावान् है। इस प्रकार वादी द्वारा साधर्म्य की तरफ से उपसंहार किया जा चुकने पर प्रतिवादी इसके विपर्यय में यों कह रहा है कि आत्मा निष्क्रिय है, क्योंकि, यह विभु है और विभुद्रव्य निष्क्रिय हुआ करता है, जैसे कि आकाश। विशेष हेतु के अभाव में 'साधर्म्यसमा' प्रतिषेध होता है। वैधर्म्य समा का उदाहरण-क्रियाहेतुगुण से युक्त लोष्ट तो परिच्छिन्न अर्थात् अव्यापक देखा जाता है, परमात्मा आत्मा तो वैसा नहीं है, इसलिए वह लोष्ट की भाँति क्रियावान् भी नहीं है। विशेष हेतु के अभाव में यह वैधर्म्यसमा जाति है। 4. अथवा वैधर्म्य की तरफ से उपसंहार किया जाने पर दोनों के उदाहरण ऐसे हैं-आत्मा निष्क्रिय है, क्योंकि वह विभु है। लोष्ट की भाँति अविभु द्रव्य ही क्रियावान् देखा जाता है, परंतु आत्मा वैसा नहीं है, इसलिए वह निष्क्रिय है, इस प्रकार वैधर्म्य के द्वारा ही प्रत्यवस्थान देता है कि निष्क्रिय आकाश द्रव्य ही क्रियाहेतु गुण से रहित देखा जाता है, परंतु आत्मा वैसा नहीं है, इसलिए वह निष्क्रिय नहीं है। विशेष हेतु के अभाव में यह वैधर्म्यसमा जाति है। क्रियावान् लोष्ट द्रव्य ही क्रियाहेतु गुण से युक्त देखा जाता है और क्योंकि आत्मा भी वैसा ही है, इसलिए वह क्रियावान् है। विशेष हेतु के अभाव में यह साधर्म्यसमा जाति है। (<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक/4/1/33/ </span>न्या.325/463/5 तथा न्या./329/470/7)।</p> | <p class="HindiText">1. वादी द्वारा साधर्म्य की तरफ से हेतु का पक्ष में उपसंहार कर चुकने पर उस साधर्म्य के विपर्यय धर्म की उत्पत्ति करने से जो वहाँ दूषण उठाया जाता है वह <strong>साधर्म्यसम</strong> प्रतिषेध माना गया है। 2. और इसी तरह वादी द्वारा वैधर्म्य की तरफ से पक्ष में हेतु का उपसंहार कर चुकने पर पुन: प्रतिवाद द्वारा साध्य धर्म के विपर्यय की उपपत्ति हो जाने से वैधर्म्य या साधर्म्य की ओर से प्रत्यवस्थान दिया जाता है वह <strong>वैधर्म्यसमा</strong> जाति इष्ट की गयी है। 3. <strong>साधर्म्यसमा</strong> का उदाहरण-आत्मा क्रियावान् है क्योंकि यह एक द्रव्य है, और द्रव्य क्रिया हेतु गुण से युक्त होने के कारण क्रियावान् हुआ करता है। जैसे लोष्ट नाम का द्रव्य क्रियाहेतु गुण से युक्त होने के कारण क्रियावान् है। इस प्रकार वादी द्वारा साधर्म्य की तरफ से उपसंहार किया जा चुकने पर प्रतिवादी इसके विपर्यय में यों कह रहा है कि आत्मा निष्क्रिय है, क्योंकि, यह विभु है और विभुद्रव्य निष्क्रिय हुआ करता है, जैसे कि आकाश। विशेष हेतु के अभाव में 'साधर्म्यसमा' प्रतिषेध होता है। वैधर्म्य समा का उदाहरण-क्रियाहेतुगुण से युक्त लोष्ट तो परिच्छिन्न अर्थात् अव्यापक देखा जाता है, परमात्मा आत्मा तो वैसा नहीं है, इसलिए वह लोष्ट की भाँति क्रियावान् भी नहीं है। विशेष हेतु के अभाव में यह वैधर्म्यसमा जाति है। 4. अथवा वैधर्म्य की तरफ से उपसंहार किया जाने पर दोनों के उदाहरण ऐसे हैं-आत्मा निष्क्रिय है, क्योंकि वह विभु है। लोष्ट की भाँति अविभु द्रव्य ही क्रियावान् देखा जाता है, परंतु आत्मा वैसा नहीं है, इसलिए वह निष्क्रिय है, इस प्रकार वैधर्म्य के द्वारा ही प्रत्यवस्थान देता है कि निष्क्रिय आकाश द्रव्य ही क्रियाहेतु गुण से रहित देखा जाता है, परंतु आत्मा वैसा नहीं है, इसलिए वह निष्क्रिय नहीं है। विशेष हेतु के अभाव में यह वैधर्म्यसमा जाति है। क्रियावान् लोष्ट द्रव्य ही क्रियाहेतु गुण से युक्त देखा जाता है और क्योंकि आत्मा भी वैसा ही है, इसलिए वह क्रियावान् है। विशेष हेतु के अभाव में यह साधर्म्यसमा जाति है। (<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक/4/1/33/ </span>न्या.325/463/5 तथा न्या./329/470/7)।</p> | ||
Revision as of 07:25, 16 July 2021
न्यायदर्शन सूत्र व भाष्य/4/1/2 साधर्म्यवैधर्म्याभ्यामुपसंहारे तद्धर्मविपर्ययोपपत्ते: साधर्म्यवैधर्म्यसमौ।2।-निदर्शनं क्रियावानात्मा द्रव्यस्य क्रियाहेतुगुणयोगात् । द्रव्यं लोष्ट: क्रियाहेतुगुणयुक्त: क्रियावान् तथा चात्मा तस्मात्क्रियावानिति। एवं उपसंहृते: पर: साधर्म्येणैव प्रत्यवतिष्ठते निष्क्रिय आत्मा विभुनो द्रव्यस्य निष्क्रियत्वाद् विभु चाकाशं निष्क्रियं च तथा चात्मा तस्मान्निष्क्रिय इति।...विशेषहेत्वभावात्साधर्म्यसम: प्रतिषेधो भवति। विशेषहेत्वभावात्साधर्म्यसम: प्रतिषेधो भवति। अथ वैधर्म्यसम: क्रियाहेतुगुणयुक्तो लोष्ट: परिच्छिन्नो दृष्टो न च तथात्मा तस्मान्न लोष्टवत् क्रियावानिति।...विशेषहेत्वभावाद्वैधर्म्यसम:। वैधर्म्येण चोपसंहारे निष्क्रिय आत्मा विभुत्वात् क्रियावद् द्रव्यमविभु दृष्टं यथा लोष्टो न च तथात्मा तस्मान्निष्क्रिय इति वैधर्म्येण प्रत्यवस्थानं निष्क्रियं द्रव्यमाकाशं क्रियाहेतुगुणरहितं दृष्टं न तथात्मा तस्मान्न निष्क्रिय इति।...विशेषहेत्वभावाद्वैधर्म्यसम: क्रियावान् लोष्ट: क्रियाहेतुगुणयुक्तो दृष्ट: तथा चात्मा तस्मात् क्रियावानिति।-विशेष हेत्वभावात्साधर्म्यसम:।
1. वादी द्वारा साधर्म्य की तरफ से हेतु का पक्ष में उपसंहार कर चुकने पर उस साधर्म्य के विपर्यय धर्म की उत्पत्ति करने से जो वहाँ दूषण उठाया जाता है वह साधर्म्यसम प्रतिषेध माना गया है। 2. और इसी तरह वादी द्वारा वैधर्म्य की तरफ से पक्ष में हेतु का उपसंहार कर चुकने पर पुन: प्रतिवाद द्वारा साध्य धर्म के विपर्यय की उपपत्ति हो जाने से वैधर्म्य या साधर्म्य की ओर से प्रत्यवस्थान दिया जाता है वह वैधर्म्यसमा जाति इष्ट की गयी है। 3. साधर्म्यसमा का उदाहरण-आत्मा क्रियावान् है क्योंकि यह एक द्रव्य है, और द्रव्य क्रिया हेतु गुण से युक्त होने के कारण क्रियावान् हुआ करता है। जैसे लोष्ट नाम का द्रव्य क्रियाहेतु गुण से युक्त होने के कारण क्रियावान् है। इस प्रकार वादी द्वारा साधर्म्य की तरफ से उपसंहार किया जा चुकने पर प्रतिवादी इसके विपर्यय में यों कह रहा है कि आत्मा निष्क्रिय है, क्योंकि, यह विभु है और विभुद्रव्य निष्क्रिय हुआ करता है, जैसे कि आकाश। विशेष हेतु के अभाव में 'साधर्म्यसमा' प्रतिषेध होता है। वैधर्म्य समा का उदाहरण-क्रियाहेतुगुण से युक्त लोष्ट तो परिच्छिन्न अर्थात् अव्यापक देखा जाता है, परमात्मा आत्मा तो वैसा नहीं है, इसलिए वह लोष्ट की भाँति क्रियावान् भी नहीं है। विशेष हेतु के अभाव में यह वैधर्म्यसमा जाति है। 4. अथवा वैधर्म्य की तरफ से उपसंहार किया जाने पर दोनों के उदाहरण ऐसे हैं-आत्मा निष्क्रिय है, क्योंकि वह विभु है। लोष्ट की भाँति अविभु द्रव्य ही क्रियावान् देखा जाता है, परंतु आत्मा वैसा नहीं है, इसलिए वह निष्क्रिय है, इस प्रकार वैधर्म्य के द्वारा ही प्रत्यवस्थान देता है कि निष्क्रिय आकाश द्रव्य ही क्रियाहेतु गुण से रहित देखा जाता है, परंतु आत्मा वैसा नहीं है, इसलिए वह निष्क्रिय नहीं है। विशेष हेतु के अभाव में यह वैधर्म्यसमा जाति है। क्रियावान् लोष्ट द्रव्य ही क्रियाहेतु गुण से युक्त देखा जाता है और क्योंकि आत्मा भी वैसा ही है, इसलिए वह क्रियावान् है। विशेष हेतु के अभाव में यह साधर्म्यसमा जाति है। ( श्लोकवार्तिक/4/1/33/ न्या.325/463/5 तथा न्या./329/470/7)।