सामानिक: Difference between revisions
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<span class="SanskritText"><span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/3/65 </span>सामाणिया कलत्तसमा।65।</span> =<span class="HindiText">सामानिक देव इंद्र के कलत्र के समान होते हैं। (<span class="GRef"> त्रिलोकसार/224 </span>)।</span> | <span class="SanskritText"><span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/3/65 </span>सामाणिया कलत्तसमा।65।</span> =<span class="HindiText">सामानिक देव इंद्र के कलत्र के समान होते हैं। (<span class="GRef"> त्रिलोकसार/224 </span>)।</span> | ||
<p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/3/19/218/6 </span>समाने स्थाने भवा: सामानिका:।</span></p> | <p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/3/19/218/6 </span>समाने स्थाने भवा: सामानिका:।</span></p> | ||
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<p> देव । इंद्र भी इन्हें बड़ा मानते हैं । ये माता-पिता और गुरु के तुल्य होते हैं तथा अपनी मान्यतानुसार इंद्रों के समान ही सत्कार प्राप्त करते हैं । भोग और उपभोग की सामग्री इन्हें इंद्रों के समान ही प्राप्त होती है । केवल ये इंद्र के समान देवों को आज्ञा नहीं दे पाते । <span class="GRef"> महापुराण 10.189, 22.23-24, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.128, 14.28 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> देव । इंद्र भी इन्हें बड़ा मानते हैं । ये माता-पिता और गुरु के तुल्य होते हैं तथा अपनी मान्यतानुसार इंद्रों के समान ही सत्कार प्राप्त करते हैं । भोग और उपभोग की सामग्री इन्हें इंद्रों के समान ही प्राप्त होती है । केवल ये इंद्र के समान देवों को आज्ञा नहीं दे पाते । <span class="GRef"> महापुराण 10.189, 22.23-24, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 6.128, 14.28 </span></p> | ||
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Revision as of 16:58, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
तिलोयपण्णत्ति/3/65 सामाणिया कलत्तसमा।65। =सामानिक देव इंद्र के कलत्र के समान होते हैं। ( त्रिलोकसार/224 )।
सर्वार्थसिद्धि/3/19/218/6 समाने स्थाने भवा: सामानिका:।
सर्वार्थसिद्धि/4/4/239/1 आज्ञैश्वर्यवर्जितं यत्स्थानायुर्वीर्यपरिवारभोगोपभोगादि तत्समानं, तत्समाने भवा: सामानिका: महत्तरा: पितृगुरूपाध्यायतुल्या:।
1. समान स्थान या पद में जो होते हैं सो सामायिक कहलाते हैं। ( राजवार्तिक/3/19/3/183/31 )। 2. आज्ञा और ऐश्वर्य के अतिरिक्त जो आयु, वीर्य, परिवार, भोग और उपभोग हैं वे समान कहलाते हैं। उस समान में जो होते हैं वे सामानिक कहलाते हैं। ये पिता, गुरु और उपाध्याय के समान सबसे बड़े हैं। ( राजवार्तिक/4/4/2/212/17 )।
महापुराण/22/24 पितृमातृगुरुप्रख्या: संमतास्ते सुरेशिनाम् । लभंते सममिंद्रैश्च सत्कारं मान्यतोचितम् ।24। = ये सामानिक जाति के देव इंद्रों के पिता माता और गुरु के तुल्य होते हैं तथा ये अपनी मान्यता के अनुसार इंद्रों के समान ही सत्कार प्राप्त करते हैं।24।
जं.प./11/306 सामाणिया वि देवा अणुसरिसा लोगवालाणं। =सामानिक देव भी वैभव आदि में लोकपालों के सदृश होते हैं।
अन्य संबंधित विषय
- सामानिक देवों की देवियाँ-(देखें स्वर्ग - 3.7)
- इंद्रों के परिवार में सामानिक देवों का प्रमाण-देखें भवन , व्यंतर, ज्योतिषी और स्वर्ग।
पुराणकोष से
देव । इंद्र भी इन्हें बड़ा मानते हैं । ये माता-पिता और गुरु के तुल्य होते हैं तथा अपनी मान्यतानुसार इंद्रों के समान ही सत्कार प्राप्त करते हैं । भोग और उपभोग की सामग्री इन्हें इंद्रों के समान ही प्राप्त होती है । केवल ये इंद्र के समान देवों को आज्ञा नहीं दे पाते । महापुराण 10.189, 22.23-24, वीरवर्द्धमान चरित्र 6.128, 14.28