सुखसंपत्ति व्रत: Difference between revisions
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Revision as of 21:10, 27 October 2022
इस व्रत की विधि तीन प्रकार से कही है-उत्तम, मध्यम व जघन्य। उत्तमविधि-15 महीने तक 1 पडिमा, 2 दोज, 3 तीज, 4 चौथ, 5 पंचमी, 6 छठ, 7 सप्तमी, 8 अष्टमी, 9 नवमी, 10 दशमी, 11 एकादशी, 12 द्वादशी, 13 त्रयोदशी, 14 चतुर्दशी, 15 पूर्णिमा, 15 अमावस्या; इस प्रकार कुल 135 दिन के लगातार 135 उपवास उन तिथियों में पूरे करे। (व्रत.वि.सं. में 135 के बजाय 120 उपवास बताये हैं, क्योंकि वहाँ पंद्रह का विकल्प एक बार लिया है। नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप करे। ( वसुनंदी श्रावकाचार/368-372 ); (व्रत विधान सं./पृ.66) (किशनसिंह क्रियाकोष) मध्यमविधि-उपरोक्त ही 120 उपवास तिथियों से निरपेक्ष पाँच वर्ष में केवल प्रतिमास की पूर्णिमा और अमावस्या को पूरे करे। तथा नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप करे। (व्रत विधान सं./67); (किशनसिंह क्रियाकोष) जघन्यविधि-जिस किसी भी मास की कृ.1 से शु.1 तक 16 उपवास लगातार करे। नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य। (व्रतविधान सं./पृ.67); (किशनसिंह क्रियाकोष)।