स्मृत्यंतराधान: Difference between revisions
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<li><span class="SanskritText"><span class="GRef"> राजवार्तिक/7/30/8/555/30 </span>अननुस्मरणं स्मृत्यंतराधानम् ।8। अनुस्मरणम् परामर्शनं प्रत्यवेक्षणमित्यनर्थांतरम्, इदमिदं मया योजनादिभिरभिज्ञानं कृतमिति, तदभाव: स्मृत्यंतराधानम् ।</span> =<span class="HindiText">मर्यादा का स्मरण न रखना स्मृत्यंतराधान है। (<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/31/369/6 </span>) अनुस्मरण, परामर्शन और प्रत्यवेक्षण ये एकार्थवाची हैं। यह यह मैंने योजनादि का प्रमाण किया था, उसका भूल जाना स्मृत्यंतराधान है।</span></li> | <li><span class="SanskritText"><span class="GRef"> राजवार्तिक/7/30/8/555/30 </span>अननुस्मरणं स्मृत्यंतराधानम् ।8। अनुस्मरणम् परामर्शनं प्रत्यवेक्षणमित्यनर्थांतरम्, इदमिदं मया योजनादिभिरभिज्ञानं कृतमिति, तदभाव: स्मृत्यंतराधानम् ।</span> =<span class="HindiText">मर्यादा का स्मरण न रखना स्मृत्यंतराधान है। (<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/31/369/6 </span>) अनुस्मरण, परामर्शन और प्रत्यवेक्षण ये एकार्थवाची हैं। यह यह मैंने योजनादि का प्रमाण किया था, उसका भूल जाना स्मृत्यंतराधान है।</span></li> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> दिग्व्रत का चौथा अतिचार-निश्चित की हुई मर्यादा का स्मरण न रखना अथवा उसका विस्मरण हो जाने पर किसी अन्य मर्यादा का स्मरण रखना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.177 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> दिग्व्रत का चौथा अतिचार-निश्चित की हुई मर्यादा का स्मरण न रखना अथवा उसका विस्मरण हो जाने पर किसी अन्य मर्यादा का स्मरण रखना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.177 </span></p> | ||
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Revision as of 16:59, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
- राजवार्तिक/7/30/8/555/30 अननुस्मरणं स्मृत्यंतराधानम् ।8। अनुस्मरणम् परामर्शनं प्रत्यवेक्षणमित्यनर्थांतरम्, इदमिदं मया योजनादिभिरभिज्ञानं कृतमिति, तदभाव: स्मृत्यंतराधानम् । =मर्यादा का स्मरण न रखना स्मृत्यंतराधान है। ( सर्वार्थसिद्धि/7/31/369/6 ) अनुस्मरण, परामर्शन और प्रत्यवेक्षण ये एकार्थवाची हैं। यह यह मैंने योजनादि का प्रमाण किया था, उसका भूल जाना स्मृत्यंतराधान है।
- दिग्व्रत का एक अतिचार है।-देखें दिग्व्रत ।
पुराणकोष से
दिग्व्रत का चौथा अतिचार-निश्चित की हुई मर्यादा का स्मरण न रखना अथवा उसका विस्मरण हो जाने पर किसी अन्य मर्यादा का स्मरण रखना । हरिवंशपुराण 58.177