अधर्म: Difference between revisions
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Revision as of 20:29, 16 October 2022
(1) जीव तथा पुदगल की स्थिति में सहायक एक द्रव्य, अपरनाम अधर्मास्तिकाय । यह जीव और पुद्गल की स्थिति में वैसे ही सहकारी हाता है जैसे पथिक के ठहरने में वृक्ष की छाया । यह द्रव्य उदासीन भाव से जीव और पुद्गल की स्थिति में सहायक तो होता है किंतु प्रेरक नहीं होता महापुराण 24.133, 137, हरिवंशपुराण 4.3 ,7.2 वीरवर्द्धमान चरित्र 16.130
(2) सुखोपलब्धि में बाधक और नरक का कारण― पाप । दया, सत्य, क्षमा, शौच, वितृष्णा, ज्ञान, और वैराग्य, ये तो धर्म है, इनसे विपरीत बातें अधर्म है । महापुराण 5.19,114,10.15, पद्मपुराण 6.304