अमिततेज: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) राजा अर्कक्रीति और उसकी रानी ज्योतिर्माला का पुत्र, सुतारा का भाई । त्रिपृष्ठ नारायण की पुत्री ज्योतिःप्रभा ने इसे तथा इसकी बहिन सुतारा ने त्रिपृष्ठ के पुत्र श्री विजय को स्वयंवर में वरण किया था । पिता के दीक्षित होने पर इसने राज्य प्राप्त किया, फिर अपने | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) राजा अर्कक्रीति और उसकी रानी ज्योतिर्माला का पुत्र, सुतारा का भाई । त्रिपृष्ठ नारायण की पुत्री ज्योतिःप्रभा ने इसे तथा इसकी बहिन सुतारा ने त्रिपृष्ठ के पुत्र श्री विजय को स्वयंवर में वरण किया था । पिता के दीक्षित होने पर इसने राज्य प्राप्त किया, फिर अपने बड़े पुत्र सहस्ररश्मि के साथ हीमंत पर्वत पर संजयंत मुनि के पादमूल में विद्याच्छेदन करने में समर्थ महाज्वाला आदि विद्याएं सिद्ध की । रथनूपुर नगर से आकर अशनिघोष को पराजित किया और अपनी बहिन सुतारा को छुड़ाया । <span class="GRef"> पांडवपुराण 4.85-95, 174-191 </span>यह पिता के समान प्रजा-पालक था और इस लोक और परलोक के हित कार्यों मे उद्यत रहता था । प्रज्ञप्ति आदि अनेक विद्याएँ इसे सिद्ध थी । दोनों श्रेणियों के विद्याधर राजाओं का यह स्वामी था । दमवर मुनि को आहार देकर इसने पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मुनि विपुलमति और विमल-गति से अपनी आयु मास मात्र की अवशिष्ट जानकर इसने अपने पुत्र अर्कतेज को राज्य दे दिया, आष्टाह्निका पूजा की और प्रायोपगमन में उद्यत हुआ तथा देह त्याग कर तेरहवें स्वर्ग के नंद्यावर्त नाम के विमान मे रविचूल नाम का देव हुआ । यहाँ से च्युत होकर वत्सकावती देश की प्रभावती नगरी में स्तिमितसागर और उनकी रानी वसुंधरा का अपराजित नाम का पुत्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 62.151, 411, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.228-248 </span></p> | ||
<p id="2">(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गमनवल्लभ नगर के राजा गगनचंद्र और उसकी रानी गगनसुंदरी का छोटा पुत्र । अमितवेग, अपरनाम अमितमति, इसका भाई था । <span class="GRef"> महापुराण 70.38-41, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.34-35 </span></p> | <p id="2">(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गमनवल्लभ नगर के राजा गगनचंद्र और उसकी रानी गगनसुंदरी का छोटा पुत्र । अमितवेग, अपरनाम अमितमति, इसका भाई था । <span class="GRef"> महापुराण 70.38-41, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.34-35 </span></p> | ||
<p id="3">(3) वज्रजंघ की अनुजा अनुंधरी का पति, चक्रवर्ती वज्रदंत का पुत्र और नारायण त्रिपृष्ठ का जामाता । यह पिता के साथ यशोधर योगींद्र के शिष्य गुणधर से दीक्षित हो गया था । <span class="GRef"> महापुराण 8.33 -34, 79, 85, 62.162 </span></p> | <p id="3">(3) वज्रजंघ की अनुजा अनुंधरी का पति, चक्रवर्ती वज्रदंत का पुत्र और नारायण त्रिपृष्ठ का जामाता । यह पिता के साथ यशोधर योगींद्र के शिष्य गुणधर से दीक्षित हो गया था । <span class="GRef"> महापुराण 8.33 -34, 79, 85, 62.162 </span></p> | ||
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Revision as of 18:10, 23 August 2022
सिद्धांतकोष से
महापुराण सर्ग संख्या 62/श्लो.नं.-अर्ककीर्तिका पुत्र था ॥152॥ अशनिघोष द्वारा बहन सुतारा के चुराये जाने पर महाज्वाला विद्या सिद्ध कर अशनिघोष को हराया ॥268-80॥ अनेकों विद्याएँ सिद्ध की और भोगों के निदान सहित दीक्षा ले तेरहवें स्वर्गमें देव हुआ ॥387-411॥ यह शांतिनाथ भगवान्का पूर्व का नवमां भव है।
पुराणकोष से
(1) राजा अर्कक्रीति और उसकी रानी ज्योतिर्माला का पुत्र, सुतारा का भाई । त्रिपृष्ठ नारायण की पुत्री ज्योतिःप्रभा ने इसे तथा इसकी बहिन सुतारा ने त्रिपृष्ठ के पुत्र श्री विजय को स्वयंवर में वरण किया था । पिता के दीक्षित होने पर इसने राज्य प्राप्त किया, फिर अपने बड़े पुत्र सहस्ररश्मि के साथ हीमंत पर्वत पर संजयंत मुनि के पादमूल में विद्याच्छेदन करने में समर्थ महाज्वाला आदि विद्याएं सिद्ध की । रथनूपुर नगर से आकर अशनिघोष को पराजित किया और अपनी बहिन सुतारा को छुड़ाया । पांडवपुराण 4.85-95, 174-191 यह पिता के समान प्रजा-पालक था और इस लोक और परलोक के हित कार्यों मे उद्यत रहता था । प्रज्ञप्ति आदि अनेक विद्याएँ इसे सिद्ध थी । दोनों श्रेणियों के विद्याधर राजाओं का यह स्वामी था । दमवर मुनि को आहार देकर इसने पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मुनि विपुलमति और विमल-गति से अपनी आयु मास मात्र की अवशिष्ट जानकर इसने अपने पुत्र अर्कतेज को राज्य दे दिया, आष्टाह्निका पूजा की और प्रायोपगमन में उद्यत हुआ तथा देह त्याग कर तेरहवें स्वर्ग के नंद्यावर्त नाम के विमान मे रविचूल नाम का देव हुआ । यहाँ से च्युत होकर वत्सकावती देश की प्रभावती नगरी में स्तिमितसागर और उनकी रानी वसुंधरा का अपराजित नाम का पुत्र हुआ । महापुराण 62.151, 411, पांडवपुराण 4.228-248
(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित गमनवल्लभ नगर के राजा गगनचंद्र और उसकी रानी गगनसुंदरी का छोटा पुत्र । अमितवेग, अपरनाम अमितमति, इसका भाई था । महापुराण 70.38-41, हरिवंशपुराण 34.34-35
(3) वज्रजंघ की अनुजा अनुंधरी का पति, चक्रवर्ती वज्रदंत का पुत्र और नारायण त्रिपृष्ठ का जामाता । यह पिता के साथ यशोधर योगींद्र के शिष्य गुणधर से दीक्षित हो गया था । महापुराण 8.33 -34, 79, 85, 62.162
(4) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के विद्युत्क्रांत नगर के स्वामी प्रभंजन विद्याधर और उसकी रानी अंजना देवी का पुत्र यह अखंड पराक्रमी, विजयार्ध के शिखर पर दायाँ पैर रखकर बायें पैर से सूर्य-विमान का स्पर्श करने मे समर्थ, शरीर को सूक्ष्म रूप देने में चतुर होने से विद्याधरों द्वारा अणुमान् नाम से अभिहित और सुग्रीव का प्राणप्रिय मित्र था । रात्र नामांकित मुद्रिका लेकर यह सीता को खोजने लंका गया था । राम ने इसे अपना सेनापति बनाया था । महापुराण 68.275-472 714-720 देखें अणुमान्