अहमिंद्र: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="GRef">त्रिलोकसार गाथा 225</span><p class=" PrakritText ">....। भवणे कप्पे सव्वे हवंति अहमिंदया तत्तो ॥225॥</p> | |||
<p class="HindiText">= कल्प स्वर्ग के ऊपर के देव अहमिंद्र हैं, वे सभी समान ही है, उनमें किसी भी प्रकार से हीनाधिकता नहीं है। </p> | |||
<p>देखें [[ इंद्र ]]।</p> | <p>देखें [[ इंद्र ]]।</p> | ||
Line 25: | Line 29: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Revision as of 19:48, 17 February 2023
सिद्धांतकोष से
त्रिलोकसार गाथा 225
....। भवणे कप्पे सव्वे हवंति अहमिंदया तत्तो ॥225॥
= कल्प स्वर्ग के ऊपर के देव अहमिंद्र हैं, वे सभी समान ही है, उनमें किसी भी प्रकार से हीनाधिकता नहीं है।
देखें इंद्र ।
पुराणकोष से
कल्पातीत देव । ये देव नौ ग्रैवेयक, नौ अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में रहते हैं । ये देव ‘‘मैं ही इंद्र हूँ’’ ऐसा मानने वाले और असूया, परनिंदा, आत्मश्लाघा तथा मत्सर से दूर रहते हुए केवल सुखमय जीवन बिताते हैं । इनकी आयु बाईस से लेकर तैंतीस सागर प्रमाण तक की होती है । ये महाद्युतिमान्, समचतुरस्रसंस्थान, विकियाऋद्धिधारी अवधिज्ञानी, निष्प्रविचारी । (मैथुन रहित) और शुभ लेश्याओं वाले होते हैं । महापुराण 11. 141-146, 153-155,161, 218, पद्मपुराण 105.170, हरिवंशपुराण 3.150-151