आहारविधि: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> आहार देने की विधि । इस विधि में आहार के लिए आये साधु को हाथ | <div class="HindiText"> <p> आहार देने की विधि । इस विधि में आहार के लिए आये साधु को हाथ जोड़कर पड़गाहना, आने पर पूजा कर उन्हें अर्ध चढ़ाना, नमोऽस्तु कहकर घर के भीतर ले जाना और उच्चासन पर बिठाकर पादप्रक्षालन करना, पूजा करना, यह सब करने के पश्चात् पुन: नमस्कार कर मन, वचन, काय से शुद्धि बोलकर श्रद्धा आदि गुण संपत्ति के साथ आहार दिया जाता है । जो भिक्षा मुनियों के उद्देश्य से तैयार की जाती है वह उनके योग्य नहीं होती । अनेक उपवास हो जाने पर भी साधु श्रावक के घर ही आहार के लिए जाते हैं और वहाँ प्राप्त हुई निर्दोष भिक्षा को मौन से खड़े रहकर ग्रहण करते हैं । दान-दाता में श्रद्धा, भक्ति, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा और त्याग ये सात गुण आवश्यक होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 8.170-173, 20.82, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 4.95-97 </span></p> | ||
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Revision as of 00:18, 6 August 2023
आहार देने की विधि । इस विधि में आहार के लिए आये साधु को हाथ जोड़कर पड़गाहना, आने पर पूजा कर उन्हें अर्ध चढ़ाना, नमोऽस्तु कहकर घर के भीतर ले जाना और उच्चासन पर बिठाकर पादप्रक्षालन करना, पूजा करना, यह सब करने के पश्चात् पुन: नमस्कार कर मन, वचन, काय से शुद्धि बोलकर श्रद्धा आदि गुण संपत्ति के साथ आहार दिया जाता है । जो भिक्षा मुनियों के उद्देश्य से तैयार की जाती है वह उनके योग्य नहीं होती । अनेक उपवास हो जाने पर भी साधु श्रावक के घर ही आहार के लिए जाते हैं और वहाँ प्राप्त हुई निर्दोष भिक्षा को मौन से खड़े रहकर ग्रहण करते हैं । दान-दाता में श्रद्धा, भक्ति, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा और त्याग ये सात गुण आवश्यक होते हैं । महापुराण 8.170-173, 20.82, पद्मपुराण 4.95-97