छद्मस्थ: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 4: | Line 4: | ||
<li><strong class="HindiText" name="1" id="1"> लक्षण</strong> <br> | <li><strong class="HindiText" name="1" id="1"> लक्षण</strong> <br> | ||
<span class="GRef"> धवला/1/1,1,19/188/10 </span><span class="SanskritText">छद्म ज्ञानदृगावरणे, तत्र तिष्ठंतीति छद्मस्था:।</span> =<span class="HindiText">छद्म ज्ञानावरण और दर्शनावरण को कहते हैं। उसमें जो रहते हैं, उन्हें छद्मस्थ कहते हैं। (<span class="GRef"> धवला 11/4,2,6,15/119/8 </span>), (<span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह टीका/44/189/3 </span>)। </span><br><span class="GRef"> धवला/13/5,4,17/44/10 </span><span class="SanskritText">संसरंति अनेन घातिकर्मकलापेन चतसृषुगतिष्विति घातिकर्मकलाप: संसार:। तस्मिन् तिष्ठंतीति संसारस्था: छद्मस्था:।</span> =<span class="HindiText">जिस घातिकर्मसमूह के कारण जीव चारों गतियों में संसरण करते हैं वह घातिसमूह संसार है। और इसमें रहने वाले जीव संसारस्थ या छद्मस्थ हैं। </span></li> | <span class="GRef"> धवला/1/1,1,19/188/10 </span><span class="SanskritText">छद्म ज्ञानदृगावरणे, तत्र तिष्ठंतीति छद्मस्था:।</span> =<span class="HindiText">छद्म ज्ञानावरण और दर्शनावरण को कहते हैं। उसमें जो रहते हैं, उन्हें छद्मस्थ कहते हैं। (<span class="GRef"> धवला 11/4,2,6,15/119/8 </span>), (<span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह टीका/44/189/3 </span>)। </span><br><span class="GRef"> धवला/13/5,4,17/44/10 </span><span class="SanskritText">संसरंति अनेन घातिकर्मकलापेन चतसृषुगतिष्विति घातिकर्मकलाप: संसार:। तस्मिन् तिष्ठंतीति संसारस्था: छद्मस्था:।</span> =<span class="HindiText">जिस घातिकर्मसमूह के कारण जीव चारों गतियों में संसरण करते हैं वह घातिसमूह संसार है। और इसमें रहने वाले जीव संसारस्थ या छद्मस्थ हैं। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> छद्मस्थ के भेद</strong><br>(छद्मस्थ दो प्रकार के हैं–मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि। सर्वलोक में मिथ्यादृष्टि छद्मस्थ भरे पड़े हैं। सम्यग्दृष्टि छद्मस्थ दो प्रकार के हैं–सराग व वीतराग। 4-10 गुणस्थान तक सराग छद्मस्थ हैं। और 11-12 गुणस्थान वाले वीतराग छद्मस्थ हैं। </span><span class="GRef"> धवला/7/2,1,1/5/2 </span><span class="PrakritText"> छदुमत्था ते दुविहा–उवसंतकसाया खीणकसाया चेदि।</span>=<span class="HindiText">(वीतराग) छद्मस्थ दो प्रकार के हैं–उपशांत कषाय और क्षीणकषाय।</span></li> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> छद्मस्थ के भेद</strong><br>(छद्मस्थ दो प्रकार के हैं–मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि। सर्वलोक में मिथ्यादृष्टि छद्मस्थ भरे पड़े हैं। सम्यग्दृष्टि छद्मस्थ दो प्रकार के हैं–सराग व वीतराग। 4-10 गुणस्थान तक सराग छद्मस्थ हैं। और 11-12 गुणस्थान वाले वीतराग छद्मस्थ हैं। </span><br> | ||
<span class="GRef"> धवला/7/2,1,1/5/2 </span><span class="PrakritText"> छदुमत्था ते दुविहा–उवसंतकसाया खीणकसाया चेदि।</span>=<span class="HindiText">(वीतराग) छद्मस्थ दो प्रकार के हैं–उपशांत कषाय और क्षीणकषाय।</span></li> | |||
<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> कृतकृत्य छद्मस्थ</strong> </span><br> | <li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> कृतकृत्य छद्मस्थ</strong> </span><br> | ||
<span class="GRef"> क्षपणासार/603 </span><span class="PrakritText"> चरिमे खंडे पडिदे कदकरणिज्जोत्ति भण्णदे ऐसो।</span> =<span class="HindiText">(क्षीणकषाय गुणस्थान में मोहरहित तीन घातिया प्रकृतियों का कांडक घात होता है। तहाँ अंत कांडक का घात होतैं याकौं कृतकृत्य छद्मस्थ कहिये। (क्योंकि तिनिका कांडकघात होने के पश्चात् भी कुछ द्रव्य शेष रहता है, जिसका कांडकघात संभव नहीं। इस शेष द्रव्य को समय-समय प्रति उदयावली को प्राप्त करके एक-एक निषेक के क्रम से अंतर्मुहूर्त काल द्वारा अभाव करता है। इस अंतर्मुहूर्त काल में कृतकृत्य छद्मस्थ कहलाता है। </span></li> | <span class="GRef"> क्षपणासार/603 </span><span class="PrakritText"> चरिमे खंडे पडिदे कदकरणिज्जोत्ति भण्णदे ऐसो।</span> =<span class="HindiText">(क्षीणकषाय गुणस्थान में मोहरहित तीन घातिया प्रकृतियों का कांडक घात होता है। तहाँ अंत कांडक का घात होतैं याकौं कृतकृत्य छद्मस्थ कहिये। (क्योंकि तिनिका कांडकघात होने के पश्चात् भी कुछ द्रव्य शेष रहता है, जिसका कांडकघात संभव नहीं। इस शेष द्रव्य को समय-समय प्रति उदयावली को प्राप्त करके एक-एक निषेक के क्रम से अंतर्मुहूर्त काल द्वारा अभाव करता है। इस अंतर्मुहूर्त काल में कृतकृत्य छद्मस्थ कहलाता है। </span></li> | ||
Line 31: | Line 32: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: छ]] | [[Category: छ]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Revision as of 14:11, 3 July 2023
सिद्धांतकोष से
- लक्षण
धवला/1/1,1,19/188/10 छद्म ज्ञानदृगावरणे, तत्र तिष्ठंतीति छद्मस्था:। =छद्म ज्ञानावरण और दर्शनावरण को कहते हैं। उसमें जो रहते हैं, उन्हें छद्मस्थ कहते हैं। ( धवला 11/4,2,6,15/119/8 ), ( द्रव्यसंग्रह टीका/44/189/3 )।
धवला/13/5,4,17/44/10 संसरंति अनेन घातिकर्मकलापेन चतसृषुगतिष्विति घातिकर्मकलाप: संसार:। तस्मिन् तिष्ठंतीति संसारस्था: छद्मस्था:। =जिस घातिकर्मसमूह के कारण जीव चारों गतियों में संसरण करते हैं वह घातिसमूह संसार है। और इसमें रहने वाले जीव संसारस्थ या छद्मस्थ हैं। - छद्मस्थ के भेद
(छद्मस्थ दो प्रकार के हैं–मिथ्यादृष्टि व सम्यग्दृष्टि। सर्वलोक में मिथ्यादृष्टि छद्मस्थ भरे पड़े हैं। सम्यग्दृष्टि छद्मस्थ दो प्रकार के हैं–सराग व वीतराग। 4-10 गुणस्थान तक सराग छद्मस्थ हैं। और 11-12 गुणस्थान वाले वीतराग छद्मस्थ हैं।
धवला/7/2,1,1/5/2 छदुमत्था ते दुविहा–उवसंतकसाया खीणकसाया चेदि।=(वीतराग) छद्मस्थ दो प्रकार के हैं–उपशांत कषाय और क्षीणकषाय। - कृतकृत्य छद्मस्थ
क्षपणासार/603 चरिमे खंडे पडिदे कदकरणिज्जोत्ति भण्णदे ऐसो। =(क्षीणकषाय गुणस्थान में मोहरहित तीन घातिया प्रकृतियों का कांडक घात होता है। तहाँ अंत कांडक का घात होतैं याकौं कृतकृत्य छद्मस्थ कहिये। (क्योंकि तिनिका कांडकघात होने के पश्चात् भी कुछ द्रव्य शेष रहता है, जिसका कांडकघात संभव नहीं। इस शेष द्रव्य को समय-समय प्रति उदयावली को प्राप्त करके एक-एक निषेक के क्रम से अंतर्मुहूर्त काल द्वारा अभाव करता है। इस अंतर्मुहूर्त काल में कृतकृत्य छद्मस्थ कहलाता है।
पुराणकोष से
अल्पज्ञ जीव । ये मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि दोनों प्रकार के होते हैं । सम्यग्दृष्टि सरागी भी होता है और वीतरागी भी । चौथे से दसवें गुणस्थान के जीव सरागी छद्मस्थ और ग्यारह तथा बारहवें गुणस्थान वाले वीतरागी छद्मस्थ होते हैं । महापुराण 21.10, हरिवंशपुराण 10. 106, 60. 336