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<div class="HindiText"> <p> यह चार प्रकार की होती है- क्रियादृष्टि, अक्रियादृष्टि, अज्ञानदृष्टि और विनयदृष्टि । इनमें क्रियादृष्टि (क्रियावादी) के एक सौ अरूपी, अक्रियादृष्टि (अक्रियावादी) के चौरासी, अज्ञानदृष्टि (अज्ञानवादी) के अड़सठ और विनयदृष्टि (विनयवादी) के बत्तीस प्रभेद होते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 47-48 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> यह चार प्रकार की होती है- क्रियादृष्टि, अक्रियादृष्टि, अज्ञानदृष्टि और विनयदृष्टि । इनमें क्रियादृष्टि (क्रियावादी) के एक सौ अरूपी, अक्रियादृष्टि (अक्रियावादी) के चौरासी, अज्ञानदृष्टि (अज्ञानवादी) के अड़सठ और विनयदृष्टि (विनयवादी) के बत्तीस प्रभेद होते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#47|हरिवंशपुराण - 10.47-48]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
यह चार प्रकार की होती है- क्रियादृष्टि, अक्रियादृष्टि, अज्ञानदृष्टि और विनयदृष्टि । इनमें क्रियादृष्टि (क्रियावादी) के एक सौ अरूपी, अक्रियादृष्टि (अक्रियावादी) के चौरासी, अज्ञानदृष्टि (अज्ञानवादी) के अड़सठ और विनयदृष्टि (विनयवादी) के बत्तीस प्रभेद होते हैं । हरिवंशपुराण - 10.47-48