परस्परकल्याण: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> एक व्रत । इस व्रत की साधना के लिए कल्याणकों के पाँच, प्रातिहार्यों के आठ और अतिशयों के चौंतीस कुल सैंतालीस उपवासों को चौबीस बार गिनने पर उपलब्ध संख्यानुसार (ग्यारह सौ अट्ठाईस) उपवास किये जाते हैं । इसमें आरंभ में एक बेला (दो उपवास) और अंत में एक तेला (तीन उपवास) करना होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.124-125 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> एक व्रत । इस व्रत की साधना के लिए कल्याणकों के पाँच, प्रातिहार्यों के आठ और अतिशयों के चौंतीस, कुल सैंतालीस उपवासों को चौबीस बार गिनने पर उपलब्ध संख्यानुसार (ग्यारह सौ अट्ठाईस) उपवास किये जाते हैं । इसमें आरंभ में एक बेला (दो उपवास), और अंत में एक तेला (तीन उपवास) करना होता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.124-125 </span></p> | ||
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Revision as of 12:20, 14 November 2022
एक व्रत । इस व्रत की साधना के लिए कल्याणकों के पाँच, प्रातिहार्यों के आठ और अतिशयों के चौंतीस, कुल सैंतालीस उपवासों को चौबीस बार गिनने पर उपलब्ध संख्यानुसार (ग्यारह सौ अट्ठाईस) उपवास किये जाते हैं । इसमें आरंभ में एक बेला (दो उपवास), और अंत में एक तेला (तीन उपवास) करना होता है । हरिवंशपुराण 34.124-125