पवनंजय: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
mNo edit summary |
||
Line 15: | Line 15: | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) तीर्थंकर अरनाथ का इस नाम का अश्व । <span class="GRef"> पांडवपुराण 7.23 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) तीर्थंकर अरनाथ का इस नाम का अश्व । <span class="GRef"> पांडवपुराण 7.23 </span></p> | ||
<p id="2">(2) भरत चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक रत्न यह रत्न उनका अश्व था । <span class="GRef"> महापुराण 37. 83-84, 179 </span></p> | <p id="2">(2) भरत चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक रत्न यह रत्न उनका अश्व था । <span class="GRef"> महापुराण 37. 83-84, 179 </span></p> | ||
<p id="3">(3) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित आदित्यपुर के राजा प्रहार और रानी केतुमती का पुत्र, अपर नाम वायुगति । इसका विवाह महेंद्रगिरि के राजा महेंद्र और रानी हृदय-गंगा की पुत्री अंजनासुंदरी से हुआ था । इसने अंजना की सखी मिश्रकेशी को अंजना से विद्युत्प्रभ की प्रशंसा करते हुए सुना था । इस घटना से कुपित होकर इसने विवाह के पश्चात् अंजना के साथ समागम न करने का निश्चय किया था । रावण का वरुण के साथ विरोध उत्पन्न हो जाने से रावण ने अपनी सहायता के लिए इसके पिता प्रह्लाद को बुलवाया था । इसने रावण के पास जाना अपना कर्त्तव्य समझकर पिता से इस कार्य की स्वीकृति प्राप्त की और यह वहाँ गया । जाते समय इसने अंजना को देखा था । यह अंजना पर इस समय भी कुपित ही था । रास्ते में इसे क्रौंच पक्षी की विरह व्यथा देव ने से अंजना का बाईस वर्ष का वियोग स्मरण हो आया और यह अपने किये पर बहुत पछताया । यह गुप्त रूप से रात्रि में अंजना से मिला । गर्भ की प्रतीति के लिए इसने अंजना को स्व-नाम से अंकित | <p id="3">(3) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित आदित्यपुर के राजा प्रहार और रानी केतुमती का पुत्र, अपर नाम वायुगति । इसका विवाह महेंद्रगिरि के राजा महेंद्र और रानी हृदय-गंगा की पुत्री अंजनासुंदरी से हुआ था । इसने अंजना की सखी मिश्रकेशी को अंजना से विद्युत्प्रभ की प्रशंसा करते हुए सुना था । इस घटना से कुपित होकर इसने विवाह के पश्चात् अंजना के साथ समागम न करने का निश्चय किया था । रावण का वरुण के साथ विरोध उत्पन्न हो जाने से रावण ने अपनी सहायता के लिए इसके पिता प्रह्लाद को बुलवाया था । इसने रावण के पास जाना अपना कर्त्तव्य समझकर पिता से इस कार्य की स्वीकृति प्राप्त की और यह वहाँ गया । जाते समय इसने अंजना को देखा था । यह अंजना पर इस समय भी कुपित ही था । रास्ते में इसे क्रौंच पक्षी की विरह व्यथा देव ने से अंजना का बाईस वर्ष का वियोग स्मरण हो आया और यह अपने किये पर बहुत पछताया । यह गुप्त रूप से रात्रि में अंजना से मिला । गर्भ की प्रतीति के लिए इसने अंजना को स्व-नाम से अंकित कड़ा दे दिया । यह कड़ा अंजना ने अपनी सास को भी दिखाया किंतु सान केतुमती ने अंजना को कुलटा कहकर घर से निकाल दिया पिता ने भी अंजना को आश्रय नहीं दिया । परिणामस्वरूप अंजना ने वन में ही एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम हनुमान् रखा गया था । इसने रावण के पास पहुँचकर उसकी आज्ञा से वरुण से युद्ध किया और उसे पकड़कर उसकी रावण से संधि करा दी । और खरदूषण को भी मुक्त कराया था । यह सब करने के पश्चात् घर आने पर अंजना से भेंट न हो सकने से यह बहुत दु:खी हुआ । शोक से व्याकुल होकर इसने अंजना के अभाव में वन में ही मर जाने का निश्चय किया था किंतु प्रतिसूर्य ने समय पर अंजना पर घटित घटना सुनाकर इसे अंजना से मिला दिया । अपनी पत्नी और पुत्र को पाकर यह अति आनंदित हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 15.6-217, 16. 59-237, 17.10-403, 18. 2-11, 54, 127-129 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Line 26: | Line 26: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: प]] | [[Category: प]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Revision as of 04:58, 15 September 2022
सिद्धांतकोष से
पद्मपुराण/15/ श्लोक आदित्यपुर के राजा प्रह्लाद का पुत्र था (8)। हनुमान का पिता था (307)।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर अरनाथ का इस नाम का अश्व । पांडवपुराण 7.23
(2) भरत चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में एक रत्न यह रत्न उनका अश्व था । महापुराण 37. 83-84, 179
(3) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित आदित्यपुर के राजा प्रहार और रानी केतुमती का पुत्र, अपर नाम वायुगति । इसका विवाह महेंद्रगिरि के राजा महेंद्र और रानी हृदय-गंगा की पुत्री अंजनासुंदरी से हुआ था । इसने अंजना की सखी मिश्रकेशी को अंजना से विद्युत्प्रभ की प्रशंसा करते हुए सुना था । इस घटना से कुपित होकर इसने विवाह के पश्चात् अंजना के साथ समागम न करने का निश्चय किया था । रावण का वरुण के साथ विरोध उत्पन्न हो जाने से रावण ने अपनी सहायता के लिए इसके पिता प्रह्लाद को बुलवाया था । इसने रावण के पास जाना अपना कर्त्तव्य समझकर पिता से इस कार्य की स्वीकृति प्राप्त की और यह वहाँ गया । जाते समय इसने अंजना को देखा था । यह अंजना पर इस समय भी कुपित ही था । रास्ते में इसे क्रौंच पक्षी की विरह व्यथा देव ने से अंजना का बाईस वर्ष का वियोग स्मरण हो आया और यह अपने किये पर बहुत पछताया । यह गुप्त रूप से रात्रि में अंजना से मिला । गर्भ की प्रतीति के लिए इसने अंजना को स्व-नाम से अंकित कड़ा दे दिया । यह कड़ा अंजना ने अपनी सास को भी दिखाया किंतु सान केतुमती ने अंजना को कुलटा कहकर घर से निकाल दिया पिता ने भी अंजना को आश्रय नहीं दिया । परिणामस्वरूप अंजना ने वन में ही एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम हनुमान् रखा गया था । इसने रावण के पास पहुँचकर उसकी आज्ञा से वरुण से युद्ध किया और उसे पकड़कर उसकी रावण से संधि करा दी । और खरदूषण को भी मुक्त कराया था । यह सब करने के पश्चात् घर आने पर अंजना से भेंट न हो सकने से यह बहुत दु:खी हुआ । शोक से व्याकुल होकर इसने अंजना के अभाव में वन में ही मर जाने का निश्चय किया था किंतु प्रतिसूर्य ने समय पर अंजना पर घटित घटना सुनाकर इसे अंजना से मिला दिया । अपनी पत्नी और पुत्र को पाकर यह अति आनंदित हुआ । पद्मपुराण 15.6-217, 16. 59-237, 17.10-403, 18. 2-11, 54, 127-129