पुरुषसिंह: Difference between revisions
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Revision as of 16:58, 18 October 2022
अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चतुर्थ काल में उत्पन्न पांचवाँ वासुदेव (नारायण) । यह तीर्थंकर धर्मनाथ के समय में हुआ था । महापुराण 61.56, हरिवंशपुराण 60.527, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 112 तीसरे पूर्वभव में यह राजगृह नगर का राजा था । अपने मित्र राजसिंह से पराजित होने के कारण इसने अपने पुत्र को राज्य दे दिया और कृष्णाचार्य से धर्मोपदेश सुनकर दीक्षित हो गया । अंत में संन्यासपूर्वक मरण कर यह माहेंद्र स्वर्ग में देव हुआ । महापुराण 61. 59-65 वहाँ से चयकर खंगपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा सिंहसेन और उसकी रानी अंबिका के पाँचवें नारायण के रूप में पुत्र हुआ । इसकी कुल आयु दस लाख वर्ष की थी जिसमें इसने तीन सौ वर्ष कुमारकाल में, एक सौ पच्चीस वर्ष मंडलीक अवस्था में, सत्तर वर्ष दिग्विजय में और नौ लाख निन्यानवे हजार पाँच सौ वर्ष राज्यशासन में बिताये थे । इसने प्रतिनारायण मधुक्रीड को मारा था । अंत में मरकर यह सातवें नरक में गया । महापुराण 61. 70-71, 74 42, पद्मपुराण 20. 218-228, हरिवंशपुराण 60. 526-527