भारत: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) जंबुद्वीप के सात क्षेत्रों में प्रथम क्षेत्र । इसका विस्तार 526-6/19 योजन है । इसके ठीक मध्य में विजयार्ध पर्वत है । इस पर्वत के दो अंतभाग पूर्व और पश्चिम समुद्रों का स्पर्श करते हैं । इसकी पूर्व-पश्चिम भुजाओं का विस्तार एक हजार आठ सौ बानवें योजन तथा कुछ अधिक | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) जंबुद्वीप के सात क्षेत्रों में प्रथम क्षेत्र । इसका विस्तार 526-6/19 योजन है । इसके ठीक मध्य में विजयार्ध पर्वत है । इस पर्वत के दो अंतभाग पूर्व और पश्चिम समुद्रों का स्पर्श करते हैं । इसकी पूर्व-पश्चिम भुजाओं का विस्तार एक हजार आठ सौ बानवें योजन तथा कुछ अधिक साढ़े सात भाग है । इसके छ: खंड है और उनमें निम्न देश हैं― कुरुजांगल, पंचाल, शूरसेन, पटच्चर, तुलिंग, काशी, कौशल्य, मद्रकार, वृकार्थक, सोल्व, आवृष्ट, त्रिगर्त, कुशाग्र, मस्त्य, कुणीयान्, कोशल और मोक । ये देश मध्य में है । बाल्हीक, आत्रेय, कांबोज, यवन, आभीर, मद्रक, क्वाथतीय, शूर, वाटवान्, कैकय, गांधार, सिंधु, सौबीर, भारद्वाज, दशेरुक, प्रास्थाल और तीर्णकर्ण ये उत्तर की ओर हैं । खड़ग, अंगारक, पौंड्र, मल्ल, प्रवक, मस्तक, प्राद्योतिष, वंग, मगध, मानवार्तिक, मलद और भार्गव ये देश पूर्व दिशा में और बाणमुक्त, बैदर्भ, माणव, सक्कापिर, मूलक, अश्मक, दांडीक, कलिंग, आंसिक, कुंतल, नवराष्ट्र, माहिषक, पुरुष और भोगवर्द्धन ये दक्षिण दिशा में तथा माल्य, कल्लीवनोपांत, दुर्ग, सूर्पार, कर्बुक, काक्षि, नासारिक, अगर्त, सारस्वत, तापस, माहेभ, भरुकच्छ, सुराष्ट्र और नर्मद ये देश पश्चिम में है । दशार्णक, किष्किंध, त्रिपुर, आवर्त, निषध, नैपाल, उत्तमवर्ण, वैदिक, अंतप, कौशल, पत्तन और विनिहात्र ये देश विंध्याचल के ऊपर तथा भद्र, वत्स, विदेह, कुश, भंग, सैतव और वज्रखंडिक ये देश मध्यप्रदेश के आश्रित है । इसके भारतवर्ष, भारतविजय और भरतक्षेत्र अपर नाम है । <span class="GRef"> महापुराण 3.24, 47, 53, 5.201, 12.2, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 2. 1, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.13, 17-18, 20, 44, 11.1, 64-65, 43.99 </span>देखें [[ भरतक्षेत्र ]]</p> | ||
<p id="2">(2) पांडवपुराण का अपर नाम । <span class="GRef"> पांडवपुराण 1. 71 </span></p> | <p id="2">(2) पांडवपुराण का अपर नाम । <span class="GRef"> पांडवपुराण 1. 71 </span></p> | ||
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Revision as of 14:06, 28 November 2022
(1) जंबुद्वीप के सात क्षेत्रों में प्रथम क्षेत्र । इसका विस्तार 526-6/19 योजन है । इसके ठीक मध्य में विजयार्ध पर्वत है । इस पर्वत के दो अंतभाग पूर्व और पश्चिम समुद्रों का स्पर्श करते हैं । इसकी पूर्व-पश्चिम भुजाओं का विस्तार एक हजार आठ सौ बानवें योजन तथा कुछ अधिक साढ़े सात भाग है । इसके छ: खंड है और उनमें निम्न देश हैं― कुरुजांगल, पंचाल, शूरसेन, पटच्चर, तुलिंग, काशी, कौशल्य, मद्रकार, वृकार्थक, सोल्व, आवृष्ट, त्रिगर्त, कुशाग्र, मस्त्य, कुणीयान्, कोशल और मोक । ये देश मध्य में है । बाल्हीक, आत्रेय, कांबोज, यवन, आभीर, मद्रक, क्वाथतीय, शूर, वाटवान्, कैकय, गांधार, सिंधु, सौबीर, भारद्वाज, दशेरुक, प्रास्थाल और तीर्णकर्ण ये उत्तर की ओर हैं । खड़ग, अंगारक, पौंड्र, मल्ल, प्रवक, मस्तक, प्राद्योतिष, वंग, मगध, मानवार्तिक, मलद और भार्गव ये देश पूर्व दिशा में और बाणमुक्त, बैदर्भ, माणव, सक्कापिर, मूलक, अश्मक, दांडीक, कलिंग, आंसिक, कुंतल, नवराष्ट्र, माहिषक, पुरुष और भोगवर्द्धन ये दक्षिण दिशा में तथा माल्य, कल्लीवनोपांत, दुर्ग, सूर्पार, कर्बुक, काक्षि, नासारिक, अगर्त, सारस्वत, तापस, माहेभ, भरुकच्छ, सुराष्ट्र और नर्मद ये देश पश्चिम में है । दशार्णक, किष्किंध, त्रिपुर, आवर्त, निषध, नैपाल, उत्तमवर्ण, वैदिक, अंतप, कौशल, पत्तन और विनिहात्र ये देश विंध्याचल के ऊपर तथा भद्र, वत्स, विदेह, कुश, भंग, सैतव और वज्रखंडिक ये देश मध्यप्रदेश के आश्रित है । इसके भारतवर्ष, भारतविजय और भरतक्षेत्र अपर नाम है । महापुराण 3.24, 47, 53, 5.201, 12.2, पद्मपुराण 2. 1, हरिवंशपुराण 5.13, 17-18, 20, 44, 11.1, 64-65, 43.99 देखें भरतक्षेत्र
(2) पांडवपुराण का अपर नाम । पांडवपुराण 1. 71