मध्यलोक: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
Anita jain (talk | contribs) mNo edit summary |
||
Line 16: | Line 16: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> लोक का दूसरा भाग । यह झालर के समान है । इसका दूसरा नाम तिर्यग्लोक हैं । यह पृथिवीतल के एक हजार योजन नीचे से निन्यानवें हजार योजन ऊपर तक विस्तृत है । इसमें जंबूद्वीप आदि असंख्यात द्वीप और लवणसमुद्र आदि असंख्यात समुद्र तथा पाँच मेरु, तीस कुलाचल, बीस गजदंत पर्वत, एक सौ सत्तर विजयार्ध गिरि, अस्सी वक्षार पर्वत, चार इषवकार पर्वत, दस कुरुद्रुभ, एक मानुषोत्तर पर्वत, एक सौ सत्तर | <div class="HindiText"> <p> लोक का दूसरा भाग । यह झालर के समान है । इसका दूसरा नाम तिर्यग्लोक हैं । यह पृथिवीतल के एक हजार योजन नीचे से निन्यानवें हजार योजन ऊपर तक विस्तृत है । इसमें जंबूद्वीप आदि असंख्यात द्वीप और लवणसमुद्र आदि असंख्यात समुद्र तथा पाँच मेरु, तीस कुलाचल, बीस गजदंत पर्वत, एक सौ सत्तर विजयार्ध गिरि, अस्सी वक्षार पर्वत, चार इषवकार पर्वत, दस कुरुद्रुभ, एक मानुषोत्तर पर्वत, एक सौ सत्तर बड़े देश और एक सौ सत्तर महानगरियाँ है । यहाँ मुक्ति के योग्य पंद्रह कर्मभूमियाँ, तीस भोगभूमियाँ, गंगा-सिंधु आदि महानदियाँ, ह्रदा आदि विभंग नदियाँ, पद्म आदि ह्रद, गंगाप्रपात आदि कुंड भी है । ह्रदों में अवस्थित कमल और उन पर निवासिनी श्री, ह्री आदि देवियां यही रहती है । अंजनगिरि आदि पर्वतों पर निर्मित बावन जिनालयों से शोभित आठवाँ नंदीश्वर द्वीप भी यहीं है । चंद्र, सूर्य, ग्रह, तारा और नक्षत्र-पांच प्रकार के असंख्यात ज्योतिष्क देव इसी लोक में 790 योजन की ऊँचाई और 110 योजन के बीच में रहते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.6, 5. 1-12, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 94-102 </span>देखें [[ तिर्यक्लोक ]]</p[[> | ||
</div> | </div> | ||
Line 27: | Line 27: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Revision as of 23:02, 10 October 2022
सिद्धांतकोष से
- मध्यलोक परिचय–देखें लोक - 3-6 ।
- मध्यलोक के नकशे–देखें लोक - 7.37
पुराणकोष से
लोक का दूसरा भाग । यह झालर के समान है । इसका दूसरा नाम तिर्यग्लोक हैं । यह पृथिवीतल के एक हजार योजन नीचे से निन्यानवें हजार योजन ऊपर तक विस्तृत है । इसमें जंबूद्वीप आदि असंख्यात द्वीप और लवणसमुद्र आदि असंख्यात समुद्र तथा पाँच मेरु, तीस कुलाचल, बीस गजदंत पर्वत, एक सौ सत्तर विजयार्ध गिरि, अस्सी वक्षार पर्वत, चार इषवकार पर्वत, दस कुरुद्रुभ, एक मानुषोत्तर पर्वत, एक सौ सत्तर बड़े देश और एक सौ सत्तर महानगरियाँ है । यहाँ मुक्ति के योग्य पंद्रह कर्मभूमियाँ, तीस भोगभूमियाँ, गंगा-सिंधु आदि महानदियाँ, ह्रदा आदि विभंग नदियाँ, पद्म आदि ह्रद, गंगाप्रपात आदि कुंड भी है । ह्रदों में अवस्थित कमल और उन पर निवासिनी श्री, ह्री आदि देवियां यही रहती है । अंजनगिरि आदि पर्वतों पर निर्मित बावन जिनालयों से शोभित आठवाँ नंदीश्वर द्वीप भी यहीं है । चंद्र, सूर्य, ग्रह, तारा और नक्षत्र-पांच प्रकार के असंख्यात ज्योतिष्क देव इसी लोक में 790 योजन की ऊँचाई और 110 योजन के बीच में रहते हैं । हरिवंशपुराण 4.6, 5. 1-12, वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 94-102 देखें तिर्यक्लोक </p[[>