वनमाला: Difference between revisions
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<li> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण/14/ </span>श्लोक<strong>−</strong>वीरक सेठ की स्त्री थी कामासक्तिवश । (17/84)। अपने पति को | <li> <span class="GRef"> हरिवंशपुराण/14/ </span>श्लोक<strong>−</strong>वीरक सेठ की स्त्री थी कामासक्तिवश । (17/84)। अपने पति को छोड़ राजा सुमुख के पास रहने लगी । (14/94) । वज्र के गिरने से मरी । आहारदान के प्रभाव से विद्याधरी हुई । (15/12-18) । इसी के पुत्र हरि से हरिवंश की उत्पत्ति हुई । (15/58) ।−देखें [[ मनोरमा ]]। </li> | ||
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<p id="3">(3) भरतक्षेत्र में अचलग्राम के एक सेठ की पुत्री । इसे वसुदेव ने विवाहा था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24.25 </span></p> | <p id="3">(3) भरतक्षेत्र में अचलग्राम के एक सेठ की पुत्री । इसे वसुदेव ने विवाहा था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24.25 </span></p> | ||
<p id="4">(4) भरतक्षेत्र के वैजयंतपुर के राजा पृथिवीधर और रानी इंद्राणी की पुत्री । यह लक्ष्मण में आसक्त थी । लक्ष्मण के चले जाने पर इसके पिता इसे इंद्रनगर के राजा बालमित्र को देना चाहते थे । पिता के इस निर्णय से दु:खी होकर यह आत्मघात करने के लिए वन में गयी । वहाँ इसने ज्यों ही आत्मघात का प्रयत्न किया त्यों ही लक्ष्मण ने वहाँ पहुँचकर इसे बचा लिया था । इस प्रकार इसकी लक्ष्मण से अकस्मात् भेट हो गयी थी और दोनों का संबंध हो गया था । यह लक्ष्मण की तीसरी पटरानी थी । इसके पुत्र का नाम अर्जुनवृक्ष था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 36.16-62, 94.18-23, 33 </span></p> | <p id="4">(4) भरतक्षेत्र के वैजयंतपुर के राजा पृथिवीधर और रानी इंद्राणी की पुत्री । यह लक्ष्मण में आसक्त थी । लक्ष्मण के चले जाने पर इसके पिता इसे इंद्रनगर के राजा बालमित्र को देना चाहते थे । पिता के इस निर्णय से दु:खी होकर यह आत्मघात करने के लिए वन में गयी । वहाँ इसने ज्यों ही आत्मघात का प्रयत्न किया त्यों ही लक्ष्मण ने वहाँ पहुँचकर इसे बचा लिया था । इस प्रकार इसकी लक्ष्मण से अकस्मात् भेट हो गयी थी और दोनों का संबंध हो गया था । यह लक्ष्मण की तीसरी पटरानी थी । इसके पुत्र का नाम अर्जुनवृक्ष था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 36.16-62, 94.18-23, 33 </span></p> | ||
<p id="5">(5) म्लेच्छराज द्विरद्दंष्ट्र की पुत्री । धातकीखंड द्वीप के ऐरावतक्षेत्र में शतद्वार के निवासी सुमित्र ने इसे विवाहा था । सुमित्र का मित्र प्रभव इसे देखकर कामासक्त हो गया था । सुमित्र ने मित्र प्रभव के दुःख का कारण अपनी स्त्री को समझकर इसे मित्र के पास भेज दिया था परंतु प्रभव इसका परिचय ज्ञातकर निर्वेद को प्राप्त हुआ । इस कलंक को धोने के अर्थ प्रमद अपना सिर काटने के लिए तलवार जैसे ही कंठ के पास ले गया था कि छिपकर इस कृत्य को देखने वाले सुमित्र ने अपने मित्र प्रभव का हाथ | <p id="5">(5) म्लेच्छराज द्विरद्दंष्ट्र की पुत्री । धातकीखंड द्वीप के ऐरावतक्षेत्र में शतद्वार के निवासी सुमित्र ने इसे विवाहा था । सुमित्र का मित्र प्रभव इसे देखकर कामासक्त हो गया था । सुमित्र ने मित्र प्रभव के दुःख का कारण अपनी स्त्री को समझकर इसे मित्र के पास भेज दिया था परंतु प्रभव इसका परिचय ज्ञातकर निर्वेद को प्राप्त हुआ । इस कलंक को धोने के अर्थ प्रमद अपना सिर काटने के लिए तलवार जैसे ही कंठ के पास ले गया था कि छिपकर इस कृत्य को देखने वाले सुमित्र ने अपने मित्र प्रभव का हाथ पकड़ लिया था । सुमित्र ने उसे आत्मघात के दु:ख समझाये और उसकी ग्लानि दूर की । <span class="GRef"> पद्मपुराण 12.26-49 </span></p> | ||
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Revision as of 12:18, 14 September 2022
सिद्धांतकोष से
- पद्मपुराण/36/ श्लोक - वैजयंतपुर के राजा पृथिवीधर की पुत्री थी । बाल्यावस्था से ही लक्ष्मण के गुणों में अनुरक्त थी ।15। राम-लक्ष्मण के वनवास का समाचार सुन आत्महत्या करने वन में गयी ।18, 19 । अकस्मात् लक्ष्मण से भेंट हुई ।41, 44 ।
- हरिवंशपुराण/14/ श्लोक−वीरक सेठ की स्त्री थी कामासक्तिवश । (17/84)। अपने पति को छोड़ राजा सुमुख के पास रहने लगी । (14/94) । वज्र के गिरने से मरी । आहारदान के प्रभाव से विद्याधरी हुई । (15/12-18) । इसी के पुत्र हरि से हरिवंश की उत्पत्ति हुई । (15/58) ।−देखें मनोरमा ।
पुराणकोष से
(1) कलिंग देश में दंतपुर नगर के वणिक वीरदत्त अपरनाम वीरक वैश्य की पत्नी । जंबूद्वीप के वत्स देश की कौशांबी नगरी का राजा सुमुख इसे देखकर आकृष्ट हो गया था । यह भी सुमुख को पाने के लिए लालायित हो गयी थी । अंत में यह सुमुख द्वारा हर ली गयी । इसने और राजा सुमुख ने वरधर्म मुनिराज को आहार देकर उत्तम पुण्यबंध किया । इन दोनों का विद्युत्पात से मरण हुआ । दोनों साथ-साथ मरे और मरकर उक्त आहार-दान के प्रभाव में विजयार्ध पर्वत पर विद्याधर-विद्याधरी हुए । महापुराण के अनुसार यह हरिवर्ष देश में वस्वालय नगर के राजा वज्रचाप और रानी सुप्रभा की विद्युन्माला पुत्री और सिंहकेतु की स्त्री थी । इसी के पुत्र हरि के नाम पर हरिवंश की स्थापना हुई । महापुराण 70. 65-77, हरिवंशपुराण 14.9-13, 41-42, 61, 95, 15. 17-18, 58, पांडवपुराण 7.121-122
(2) पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश के वीतशोक नगर के राजा महापद्म की रानी । यह शिवकुमार की जननी थी । महापुराण 76.130-131
(3) भरतक्षेत्र में अचलग्राम के एक सेठ की पुत्री । इसे वसुदेव ने विवाहा था । हरिवंशपुराण 24.25
(4) भरतक्षेत्र के वैजयंतपुर के राजा पृथिवीधर और रानी इंद्राणी की पुत्री । यह लक्ष्मण में आसक्त थी । लक्ष्मण के चले जाने पर इसके पिता इसे इंद्रनगर के राजा बालमित्र को देना चाहते थे । पिता के इस निर्णय से दु:खी होकर यह आत्मघात करने के लिए वन में गयी । वहाँ इसने ज्यों ही आत्मघात का प्रयत्न किया त्यों ही लक्ष्मण ने वहाँ पहुँचकर इसे बचा लिया था । इस प्रकार इसकी लक्ष्मण से अकस्मात् भेट हो गयी थी और दोनों का संबंध हो गया था । यह लक्ष्मण की तीसरी पटरानी थी । इसके पुत्र का नाम अर्जुनवृक्ष था । पद्मपुराण 36.16-62, 94.18-23, 33
(5) म्लेच्छराज द्विरद्दंष्ट्र की पुत्री । धातकीखंड द्वीप के ऐरावतक्षेत्र में शतद्वार के निवासी सुमित्र ने इसे विवाहा था । सुमित्र का मित्र प्रभव इसे देखकर कामासक्त हो गया था । सुमित्र ने मित्र प्रभव के दुःख का कारण अपनी स्त्री को समझकर इसे मित्र के पास भेज दिया था परंतु प्रभव इसका परिचय ज्ञातकर निर्वेद को प्राप्त हुआ । इस कलंक को धोने के अर्थ प्रमद अपना सिर काटने के लिए तलवार जैसे ही कंठ के पास ले गया था कि छिपकर इस कृत्य को देखने वाले सुमित्र ने अपने मित्र प्रभव का हाथ पकड़ लिया था । सुमित्र ने उसे आत्मघात के दु:ख समझाये और उसकी ग्लानि दूर की । पद्मपुराण 12.26-49