विरति: Difference between revisions
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Revision as of 15:51, 25 September 2022
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/7/1/342/5 तेभ्यो विरमणं विरतिः। = उनसे (हिंसादिक से) विरक्ति होना विरति है। ( राजवार्तिक/7/1/2/533/13 )।
पुराणकोष से
चित्त को कलुषित करने वाले राग आदि के नष्ट होने से उत्पन्न निस्पृहता । महापुराण 24.63