सूत्रपाहुड़ गाथा 3: Difference between revisions
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Latest revision as of 19:55, 3 November 2013
१सुत्तं हि जाणमाणो भवस्स भवणासणं च सो कुणदि ।
सूई जहा असुत्त णासदि सुत्तेण सहा णो वि ॥३॥
सूत्रे ज्ञायमान: भवस्य भवनाशनं च स: करोति ।
सूची यथा असूत्रा नश्यति सूत्रेण सह नापि ॥३॥
आगे कहते हैं कि जो सूत्र में प्रवीण है, वह संसार का नाश करता है -
अर्थ - जो पुरुष सूत्र को जाननेवाला है, प्रवीण है, वह संसार में जन्म होने का नाश करता है, जैसे लोह की सूई सूत्र (डोरा) के बिना हो तो नष्ट (गुम) हो जाय और डोरा सहित हो तो नष्ट नहीं हो, यह दृष्टान्त है ॥३॥
भावार्थ - - सूत्र का ज्ञाता हो वह संसार का नाश करता है, जैसे सूई डोरा सहित हो तो दृष्टिगोचर होकर मिल जावे, कभी भी नष्ट न हो और डोरे के बिना हो तो दीखे नहीं, नष्ट हो जाय - इसप्रकार जानना ॥३॥